कहानी- तुम्हारी थोड़ी-सी बेसफ़ाई 3 (Story Series-Tumahri Thodi Si Besafai 3)

ये बोतल, ये ढक्कन, ये टिशू… इन सबसे बेख़बर नीलू मुझे अपने घर का क़िस्सा सुनाए जा रही थी. मुझे अच्छा लगा, चलो, इसने बुरा नहीं माना. तब वो गर्लफ्रेंड थी भई, गर्लफ्रेंड को नाराज़ करना किसको अच्छा लगता है? लेकिन अगला झटका जब मुझे लगा, तब स्थिति अलग थी. हम शादी करके हनीमून पर गए हुए थे.

 

 

 

… नीलू से मैं एक शादी में मिला था. बारात में आई सबसे आकर्षक लड़की पर मेरी ही नहीं, सबकी आंखें टिकी थीं. पता नहीं मैं उसके मासूम चेहरे पर फ़िदा हो गया था या उसके तैयार होने के ढंग पर. वो सबसे अलग दिख रही थी. जहां बाकी लड़कियां भारी-भरकम लहंगों को संभालती, ज़ेवरों से ढंकी हुई घबराई हुई दिख रही थीं, वहीं नीलू पीला अनारकली सूट पहने सबसे ख़ास दिख रही थी.
शादी से वापस आकर मेरी ज़िन्दगी के सारे रंग फीके पड़ गए थे, बस वही एक पीला रंग उभरकर आंखों के सामने नाचता रहता था. धीरे-धीरे वो रंग मेरी ज़िन्दगी में शामिल होने लगा था.
“आज तुम कितना लेट आई हो? टाइम देखो.” एक दिन डेट पर मैंने नीलू को टोका, तब तक वेटर दो कोल्ड ड्रिंक हमारे सामने रख गया था.
“कोई गेस्ट बैठा था, निकल ही नहीं पा रही थी घर से.” नीलू ने कोल्ड ड्रिंक उठाते हुए जवाब दिया. “अरररर…” पहला झटका तो मुझे वहीं लग गया था, ढक्कन में लगी जंग बोतल के मुंह में लगी हुई थी और नीलू उससे बेख़बर, बोतल को होंठों से लगा चुकी थी.
“ये.. एक मिनट.. ये गंदा है… ” मैंने मेज़ पर रखा टिशू पेपर उठाया और उसकी बोतल को झिझकते हुए पोंछ दिया. मुझे लगा कहीं वो झेंप ना जाए.
“पता है, वो जो गेस्ट आए थे ना घर पे, इतना खाते हैं, मम्मी तो बेचारी बना-बनाकर पक गईं.”
ये बोतल, ये ढक्कन, ये टिशू… इन सबसे बेख़बर नीलू मुझे अपने घर का क़िस्सा सुनाए जा रही थी. मुझे अच्छा लगा, चलो, इसने बुरा नहीं माना. तब वो गर्लफ्रेंड थी भई, गर्लफ्रेंड को नाराज़ करना किसको अच्छा लगता है? लेकिन अगला झटका जब मुझे लगा, तब स्थिति अलग थी. हम शादी करके हनीमून पर गए हुए थे.

 

यह भी पढ़ें: 10 उम्मीदें जो रिश्तों में कपल्स को एक- दूसरे से होती हैं, जो उन्हें बनाती हैं परफेक्ट कपल (10 Things Couples Expect In Relationship Which Make Them Perfect Couple)

 

“मैं कैसी लग रही हूं.” नीलू ने इतराते हुए मुझसे पूछा, मैंने सामान समेटते हुए एक नज़र देखकर रस्म अदा कर दी, “ऐज़ ब्यूटीफुल ऐज़ ऑलवेज़.”
मेरा ध्यान तो कमरे की हालत पर था. कोने में रखे सूटकेस एक-दूसरे पर लदे हुए सुस्ता रहे थे.
जूते-चप्पल एक के ऊपर एक चढ़कर भाईचारा बढ़ा रहे थे, पिछले दिन के उतारे हुए कपड़े एक कुर्सी पर ढेर बने रखे थे, शीशे के आगे लिपस्टिक का ढेर अपना एक अलग लॉस्ट एंड फाउंड विभाग बना चुका था. सबके ढक्कन अलग-थलग पड़े थे.
“अब चलो ना राघव. आएंगे ना रूम सर्विस वाले, ठीक कर देंगे.” मुझे सामान ठीक करते देख, नीलू बच्चे की तरह ठिनक रही थी.
मैं समझ गया था, जिस सफ़र पर मैं निकल पड़ा था, वो आसान नहीं था.
वक़्त आने पर सब कुछ ठीक हो जाता है, इसका असली मतलब क्या होता है, ये मुझे शादी के बाद पता चला. वक़्त सब कुछ ठीक नहीं कर देता है, बल्कि हमारी सहनशक्ति बढ़ा देता है, जैसे इन सालों में मेरी बढ़ चुकी थी. इस बीच हम दोनों को प्रमोशन भी मिल गया था. हम पति-पत्नी से मम्मा-पापा की रैंक तक आ गए थे…

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

 

लकी राजीव

लकी राजीव

 

 

 

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Usha Gupta

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