कहानी- उपहार 1 (Story Series- Upahar 1)

उस दिन उन्होंने जोख़िम भरे करतबों को मनोरंजन की दृष्टि से नहीं, भूख से जोड़कर देखा था. पेट के लिए लोग जान जोख़िम में डालते हैं और बदले में उतना नहीं पाते, जिससे इनकी आवश्यकता पूरी हो. वे करुण हो रहे थे शायद इसीलिए जब सुभागी घाघरा मटकाती बख़्शीश के लिए आई, तो उन्होंने सौ रुपए उत्साहित होकर दिए थे. अनुमान से अधिक बख़्शीश देखकर वह बड़ी अदा से हंसी थी. आज इस अंधड़-पानी में इन लोगों का पता नहीं क्या हाल होगा. इंद्र देव लगता है ज़िद पर आ गए हैं. पता नहीं किसका छप्पर उड़ा होगा, किसका घर ढहा होगा, पशु-पक्षी मरे होंगे, लोग भी… ये बंजारे क्या सुरक्षित होंगे?…

मजिस्ट्रेट मधुर मिश्रा आदिवासी क्षेत्र की इस तहसील में प्रथम नियुक्ति पर आए हैं. उन्हें लगता है कि यहां आकर वे परेशानियों से घिर गए हैं. पिछड़ेपन, अशिक्षा, अज्ञानता के साथ-साथ गवाहों से परेशानी अलग. क्या गवाही देते हैं, कठिनाई से समझ में आता है. साथ ही सबसे बड़ी परेशानी है यहां की मूसलाधार बारिश. सुबह तेज़ धूप थी, दोपहर में बादल, शाम को हवा ने वेग पकड़ा, रात तक झमाझम बरसात. उस पर बिजली गुल, क्रुद्ध मौसम के आसार परख अर्दली बैजू खाना बनाकर शाम को ही घर जा चुका है. मधुर की पत्नी निष्ठा प्रथम प्रसव के लिए इन दिनों मां के पास है, अतः खाना बैजू बनाता है.

मधुर को निष्ठा की याद आई. वो होती तो मिलकर अंधेरे और अंधड़ का सामना कर लेते. बगल में रहनेवाले बी.डी.ओ. ख़ान इस समय पिता के निधन पर सपरिवार कामटी गए हैं, वरना उनसे बातचीत कर कुछ संबल मिलता. ख़ान साहब रात की चौकसी के लिए अर्दली को रख गए हैं, जो शाम से शराब पीकर असुर नींद में डूब जाता है. मधुर को लगा इस तरह अकेले वे अब तक न हुए थे.

बस्ती से दूर अंग्रेज़ों के समय का यह विशाल बंगला है, जिसके एक हिस्से में मधुर रहते हैं, दूसरे हिस्से में ख़ान. बंगले के सामनेवाली दालान, जिसमें दोनों हिस्सों के प्रवेशद्वार खुलते हैं, बहुत बड़ी और कॉमन है. बंगले के सामने विशाल मैदान है, जिसमें वसंत पंचमी का मेला लगता है. इधर एक-डेढ़ माह से एक ख़ानाबदोश परिवार इस मैदान में ठहरा हुआ है. परिवार का मुखिया बूढ़ा टेकराम मधुर के बंगले के आंगन में उन्नत खड़े पीपल के पेड़ से बकरी के लिए पत्तियां ले जाता है.

मधुर को इन ख़ानाबदोश का ख़्याल आया. इस अंधड़-पानी से कैसे जूझ रहे होंगे? वे दालान में खुलनेवाली खिड़की पर आकर टोह लेने लगे. दोनों तंबू अंधेरे में गुम. बड़े तंबू में टेकराम, उसकी पत्नी, एक बेटी और छोटा बेटा रहता है. छोटे तंबू में टेकराम का बड़ा बेटा हेतराम उसकी 18-19 साल की पत्नी सुभागी और 6-8 माह का बच्चा रहता है. हेतराम, सुभागी से छोटा, बल्कि सुनहरी मूंछें और सामने के एक आधे टूटे दांत के कारण ग़ुलाम की तरह लगता है. बैजू बताता है, “नहीं हुज़ूर, वो सुभागी से बड़ा है. उसकी क़द-काठी मुलायम है, इसलिए छोटा लगता है. ये लोग हर साल यहां आते हैं. एक-दो महीना ठहरकर जाते हैं. पास में तालाब है, इतना बड़ा मैदान है, जगह इनको अच्छी लगती है. इनके खच्चरों को भी.”

मधुर हंस देते हैं, “खच्चर.”

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“हां हुज़ूर, जब टेकराम यहां से जाएगा, तब देखिएगा वो अपनी पूरी दुनिया दो खच्चरों पर लाद लेगा.” कचहरी जाते हुए मधुर को ख़ानाबदोश परिवार का कोई न कोई सदस्य तालाब के आस-पास मिल जाता है. कभी टेकराम खच्चरों को पानी पिलाता है, कभी उसकी बुढ़िया कुछ धोती-पछारती है, कभी सिर पर मिट्टी का घड़ा रखे हुए सुभागी उन्हें देखकर मुस्कुरा देती है, मधुर झिझककर मुंह फेर लेते हैं. बैजू आगे बताता है, “ये लोग पता नहीं क्या-क्या करते हैं. बच्चे चुराते हैं, कपड़ा-बर्तन चुराते हैं, कभी करतब दिखाएंगे, कभी गंडा-तावीज़, बाल काले करने की दवा, नामर्दी और बांझपन की दवा, कभी हंसिया-खुरपी बेचते हैं…”

मधुर को याद आया कि रविवार को इन लोगों ने करतब दिखाए थे. ख़ान और मधुर के परिवार के लिए बंगले से लाकर मैदान में कुर्सियां सजा दी गई थीं. दो बांसों के बीच ख़ूब तानकर बांधी गई रस्सी पर टेकराम की लड़की चल रही थी. टेकराम और हेतराम ढोलक-ताशा बजाते हुए मुंह से जोश भरी आवाज़ें निकाल रहे थे. छोटा लड़का पलटियां खा रहा था. टेकराम ने बताया था कि ढोलक-ताशा बजाकर, ध्वनियां निकाल, पलटियां खाकर कलाकारों में जोश-उत्साह, निर्भयता और स्फूर्ति भरी जाती है. वातावरण बनाया जाता है.

फिर हेतराम बीस फीट ऊंचे लकड़ी के खंभे के अंतिम सिरे पर जा चढ़ा था और सिरे पर पेट के बल लेटकर चकरी की तरह घूमने लगा था. हवाई ऊंचाई में घूमते हेतराम को सुभागी सांस रोककर देख रही थी. मधुर का ध्यान अनायास सुभागी की ओर चला गया था. सुभागी सुंदर है. हेतराम मवाली था. फिर हेतराम और पलटियां खानेवाले छोटे लड़के ने आग के छल्ले से आर-पार कूदकर दिखाया था. मधुर विस्मित थे. इनमें इतना दैहिक संतुलन और आत्मविश्‍वास कहां से आता है? कहां से आती है जुझारू वृत्ति और श्रमशीलता?

उस दिन उन्होंने जोख़िम भरे करतबों को मनोरंजन की दृष्टि से नहीं, भूख से जोड़कर देखा था. पेट के लिए लोग जान जोख़िम में डालते हैं और बदले में उतना नहीं पाते, जिससे इनकी आवश्यकता पूरी हो. वे करुण हो रहे थे शायद इसीलिए जब सुभागी घाघरा मटकाती बख़्शीश के लिए आई, तो उन्होंने सौ रुपए उत्साहित होकर दिए थे. अनुमान से अधिक बख़्शीश देखकर वह बड़ी अदा से हंसी थी.

आज इस अंधड़-पानी में इन लोगों का पता नहीं क्या हाल होगा. इंद्र देव लगता है ज़िद पर आ गए हैं. पता नहीं किसका छप्पर उड़ा होगा, किसका घर ढहा होगा, पशु-पक्षी मरे होंगे, लोग भी… ये बंजारे क्या सुरक्षित होंगे?… बकरी मिमियाने का स्वर उभरा. क्या टेकराम की बकरी है? बचाव के लिए दालान में चली आई.

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मधुर ने बिस्तर में रखी टॉर्च उठाई और खिड़की से रोशनी दालान में फेंककर बकरी को पुचकारा. बकरी को अवलंबन का बोध हुआ. उसने मिमियाकर पुचकार का उत्तर दिया. तेज़ तिरछी बौछार से दालान गीला हो चुका था. बकरी एक कोने का सहारा लिए खड़ी थी. बकरी का यह हाल है, तो उन ख़ानाबदोशों का क्या हाल होगा?

     सुषमा मुनीन्द्र

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