कहानी- उपहार 2 (Story Series- Upahar 2)

“बाबू, दरवाज़ा खोलो. मेरा बच्चा पानी में मर जाएगा…”

ये तो सुभागी है.

मधुर ने बिना सोचे-विचारे दरवाज़ा खोल दिया. बच्चे को गुदड़ी में लपेटे हुए सुभागी बिना अनुमति के भीतर घुस आई.

“तुम?” टॉर्च के फोकस से सुभागी की आंखें तेज़ प्रकाश से झपक गईं.

उसके बाल कंधों पर फैले हुए थे. वो सिर पर हरदम कपड़ा बांधकर रखती थी, जो गीला हो गया था और उसने उतार दिया था.

मधुर पहली बार सुभागी को समीप से देख रहे थे.

उन्होंने तंबू की दिशा में टॉर्च की रोशनी डाली, जो वहां तक पहुंचने में सक्षम न हुई. सहसा बिजली कौंधी. मधुर ने देखा छोटा तंबू धराशायी हो चुका है और बड़े तंबू के खूंटे-रस्से हवा के प्रचंड वेग से अस्तित्व खो रहे हैं. तो जल्दी ही यह भी? क्या करना चाहिए? क्या टेकराम को आवाज़ दें कि एक कमरा खोल देता हूं रातभर को रह लो? पर पानी-हवा के शोर में आवाज़ उस तक नहीं पहुंचेगी. अंधेरे में कुछ सूझ नहीं रहा है और पानी बहुत तेज़ है. वहां जाकर इन्हें बुलाया नहीं जा सकता. कुछ नहीं हो सकता.

खिड़की बंदकर मधुर बिस्तर पर लेट गए. झपकी आने ही लगी थी कि लगा कोई दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है. बकरी ने धक्का दिया है या…

“बाबू, दरवाज़ा खोलो. मेरा बच्चा पानी में मर जाएगा…”

ये तो सुभागी है.

मधुर ने बिना सोचे-विचारे दरवाज़ा खोल दिया. बच्चे को गुदड़ी में लपेटे हुए सुभागी बिना अनुमति के भीतर घुस आई.

“तुम?” टॉर्च के फोकस से सुभागी की आंखें तेज़ प्रकाश से झपक गईं.

उसके बाल कंधों पर फैले हुए थे. वो सिर पर हरदम कपड़ा बांधकर रखती थी, जो गीला हो गया था और उसने उतार दिया था.

मधुर पहली बार सुभागी को समीप से देख रहे थे.

“क्या है? टेकराम कहां है?”

“दिन में सब लोग लोहरउरा (देहात) के बुधवारी हाट में सामान बेचने गए. अब तक पता नहीं. बच्चे को बुख़ार है. दोनों तंबू गिर गए. बाबू हम कहां जाएं?”

क्या करें? अकेली स्त्री को रखना ठीक होगा? चोरी करे, उन पर मोहिनी डाले, इज़्ज़त ख़राब करने जैसा झूठा आरोप लगाकर पैसे ऐंठे… इस जगह की परेशानियां ख़त्म क्यों नहीं होतीं?

सुभागी ने मानो उनकी दुविधा भांप ली, “हम बकरी के पास ओसारे में रह जाते, पर बाबू ओसारा गीला है.” वे साहसविहीन हो गए, मानो उनका चीरहरण किया जाना है. अकेली स्त्री, बच्चे को बुख़ार. इसे आश्रय न देना निष्ठुरता होगी.

“आ इधर.”

टॉर्च के प्रकाश में मार्ग प्रशस्त करते हुए मधुर ने सुभागी को अतिथिकक्ष में पहुंचा दिया. यहां बिस्तर के अलावा कुछ नहीं है. बिस्तर तो चुरा न ले जाएगी? अब ये जाने और इसका बच्चा. वे सुभागी को अंधेरे के हवाले कर शयनकक्ष में आ गए. सोने की कोशिश करने लगे. बच्चे का रोना व्यवधान दे रहा था. यह ख़ानाबदोश युवती आज रात्रि जागरण कराएगी.

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उन्हें याद आया, जब वे कचहरी चले जाते थे, तब सुभागी कभी-कभी निष्ठा के पास आ जाती थी. निष्ठा बताने लगती, “सुभागी मस्त लड़की है. कहती है, उसके पास बाल काले व घने करने की दवा है. नामर्दी और बांझपन को दूर करने, गोरा बनाने, दाद-खाज आदि की दवा है. उसकी सास पहाड़ से जड़ी-बूटी ढ़ू़ंढकर लाती हैं और कूट-छानकर दवा बनाती हैं. उसके पास ऐसे अभिमंत्रित गंडे-तावीज़ हैं कि पहन लो, तो कोई जंतर-मंतर, टोना-टोटका, भूत-प्रेत असर नहीं डाल पाते… जानते हो मधुर, सुभागी कहती है वह इतनी सुंदर है कि उसके दल के कई लड़के उससे शादी करना चाहते थे. पर उसे हेतराम अच्छा लगता था. हैसियत अच्छी है. अपने खच्चर, बकरी, लोहे के औजार बनाने और करतब दिखाने का हुनर. और क्या चाहिए? हे भगवान! इसकी ज़रूरतें कितनी कम हैं. कहती है कि उसे ये खुला मैदान और तालाब इतना अच्छा लगता है कि यहीं बस जाना चाहती है. पर एक जगह रहकर धंधा नहीं होता…”

मधुर इन बातों को अनसुना कर देते थे, पर आज सुभागी की उपस्थिति को अनदेखा नहीं कर पा रहे थे. मानव मनोविज्ञान विचित्र होता है. चाह रहे थे कि सो जाएं, पर सुभागी की उपस्थिति से मुक्त नहीं हो पा रहे थे. बच्चा अब भी रो रहा है. उसे बुख़ार है. कपड़े गीले होंगे, गीले कपड़े बुख़ार बढ़ा देंगे, वे उठे. पुराना तौलिया ढूंढ़ा.

“सुभागी.”

“हां बाबू.”

“ले तौलिया. बच्चे के कपड़े गीले होंगे. उसे इसमें लपेट ले.”

“हां बाबू. बोरा फट्टा हो, तो दो. बिछाकर पड़ी रहूंगी.”

लड़की सभ्य है. बिस्तर पर नहीं बैठी. बैठ जाती तो आपत्ति न कर पाते.

सुभागी को दरी दे अपने कमरे में आ गए. याद आया कपड़े सुभागी के भी गीले

होंगे, पर बार-बार उसके पास जाना अशोभनीय लगेगा. निष्ठा की साड़िया रखी हैं, पर कुर्ती-घाघरा पहननेवाली साड़ी का प्रयोग क्या जाने. ठीक है. शरण दे दी है, इतना ही अधिक सहानभूति पाकर मोहिनी न डालने लगे. क्या ये घुमन्तू स्त्रियां सचमुच मोहनी डालती हैं? आदमी को वश में करने की दवा है इनके पास? उ़फ्! नींद तो आज नहीं आएगी. जबकि नींद आनी चाहिए. कल व़क्त पर कचहरी पहुंचना होगा.

उन्हें लग रहा है नोटिस नहीं ली, पर वे इस ख़ानाबदोश परिवार पर ध्यान देते रहे हैं. जब से निष्ठा गई है, इनकी गतिविधियां देखना मनोरंजन का साधन बना हुआ है. सुभागी कपड़े का झूला बना, उसमें बच्चे को सुला देती है. दिनभर के काम के बाद मैदान में छिटकी हुक्का गुड़गुड़ाता रहता है. पूरा परिवार मिलकर गरम लोहे को खुरपी, हंसिया, कुल्हाड़ी की शक्ल देता है.

हेतराम बच्चे को हवा में उछालता है, जैसे उसमें जोश भर रहा हो.

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सुभागी हिण्डोलियम के बर्तनों में भोजन बनाती है. कभी-कभी हेतराम सुभागी को पीट देता है. वह ऊंचे स्वर में रोती है, पर ग़ुलाम-सा दिखनेवाला हेतराम सुभागी जैसी सुंदर ख़ानाबदोश युवती को क्यों पीटता है? नींद तो आज नहीं आएगी. मन बंजारा हो जाना चाहता है. सोचना नहीं चाहते, पर सोच रहे हैं कि सुभागी क्या कर रही होगी? सो गई होगी? डर नहीं रही होगी, वह अकेली और घर में अंधेरा, एकांत, एक पुरुष की मौजूदगी? बच्चा क्या सो गया?

     सुषमा मुनीन्द्र

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