कहानी- उपहार 3 (Story Series- Upahar 3)

मधुर समझ गए टेकराम अपने परिवार के लिए तरबूज लाया होगा. सुभागी ने पनाह देने की बात कही होगी. उपकार के बदले उपहार देने को कुछ न रहा होगा, तो तरबूज भेंट कर रहा है. ओह! संस्कार और सभ्यता इनमें भी है. विनय और सामाजिकता है. अनुग्रह और आग्रह है.

मानव मनोविज्ञान विचित्र होता है.

वर्जनाएं लुभाती हैं.

एकांत… अंधेरा… अंधड़… सुभागी… मिलकर मन को डांवाडोल कर रहे हैं, लेकिन यह ख़्याल अच्छा लग रहा है कि किसी कमरे के किसी कोने में एक रमणी मौजूद है. उन्होंने सुभागी को ध्यानपूर्वक नहीं देखा था, फिर भी याद रह गया कि उसके चिबुक पर तीन बुंदकियां गुदी हुई हैं, जो उसकी सुंदरता को बढ़ाती हैं. लंबे-घने काले बाल, भीगी देह, थका, उदास-पस्त मासूम चेहरा.

अचरज पर उन्हें लगा कि वे सुभागी की कामना पता नहीं कब से कर रहे हैं. जब से देखा है तब से, निष्ठा गई है तब से, सदियों से, ठीक इसी क्षण से…

वे अपने भीतर साहस भरने लगे. कोई ढोलक-ताशा बजाकर उनमें जोश और

स्फूर्ति भर दे. सौ-पचास थमा देंगे बच्चे को. डॉक्टर को दिखाकर दवा दिला देंगे. ख़ुश हो जाएगी. मौक़ा है फिर न होगा. मधुर उठे, पैरों में कंपन. अपने ही घर में चोरों-सी सतर्कता से चलते हुए शर्म आई, पर वे नहीं रुके. सुभागी ने दरवाज़ा बोल्ट न कर लिया हो. दरवाज़ा खुला था. तंबू में रहनेवाली दरवाज़े और सिटकनी का प्रयोग क्या जाने? क्या पता जान-बूझकर खुला छोड़ दिया हो? वही… मोहिनी डालने की कोशिश. दरवाज़े पर ठिठके खड़े मधुर भीतर की गतिविधियों का

अनुमान लगाने लगे… बच्चा कुनमुनाया और सुभागी का लाचार स्वर उन तक पहुंचा.

“जानती हूं तू भूखा है. मुझे न दूध मिलता है, न अच्छा खाना. तेरा पेट कैसे भरूं…?

तो बच्चा सोया नहीं है. इच्छा हुई बिलौटे को उठाकर फेंक दें. वैसे बच्चे की कुशलक्षेम के बहाने बात कर सकते हैं. कुछ कहना चाहा तो कंठ रुद्ध हो गया. अंगूठे के दबाव से टॉर्च प्रकाशमान हो गया. देखा सुभागी दरी पर पलथी मारे बैठी थी. बच्चा जोंक की तरह चिपका हुआ दूध पी रहा है. दूध की आपूर्ति नहीं हो रही है, इसीलिए ग़ुस्से में जबड़े भींचकर कुनमुना रहा है.

सुभागी प्रकाश के हमले से अचकचा गई. मधुर ने झटके से टॉर्च ऑफ कर दी. क्या करें? यहां आने का क्या कारण बताएं?

“बच्चा भूखा है सुभागी?” नहीं जानते कैसे बोल पाए.

“हां बाबू, पानी के कारण चूल्हा नहीं जला, दाल ही बनाकर पिला देती…”

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वे सुभागी को बच्चे से अलग कर दें. यह इस समय स्त्री नहीं मां है. स़िर्फ मां. लाचार मां, जो अपने बच्चे की भूख शांत नहीं कर पा रही है. इस व़क्त यह ममता में इतना डूबी है कि इसका स्पर्श करने का साहस उनमें नहीं है… इच्छा भी नहीं. वे सन्नाटे में कुछ क्षण खड़े रहे, फिर अपने कमरे में लौट आए. दिल पूरी क्षमता से धड़क कर बैठने को था. दिल पर हाथ रखे हुए बिस्तर पर बैठ गए. न जाने क्यों निष्ठा का ख़्याल आ गया. किसी भी दिन शुभ समाचार आ सकता है. सुभागी दूध पीते बच्चे की मां है. निष्ठा मां बननेवाली है. निष्ठा स्वस्थ शिशु को जन्म दे, इसलिए कितने उपाय किए गए हैं. निष्ठा पौष्टिक खाना खाए, सीढ़ियां न चढ़े, गिरने-पड़ने से बचे, तनावग्रस्त न रहे, ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें पढ़े, ताकि गर्भस्थ शिशु पर सकारात्मक प्रभाव पड़े और स्वस्थ, सुंदर व बुद्धिमान शिशु जन्मे. सुभागी इसके पास कुछ नहीं है. यह अपने बच्चे को ममता के अलावा कुछ नहीं दे सकती. इसे ममता के दायरे से खींचकर अपनी कामना की पूर्ति करना अमानवीय चेष्ठा होगी.

ओह…!

मधुर मानो पूरी तरह चेत में आ गए. उन्होंने पाया वे दूध में शक्कर घोल रहे हैं.

“सुभागी दूध लाया हूं. बच्चे को पिला दे. बचे तो तू पी जाना. तू दूध पीते बच्चे की मां है, तुझे दूध की ज़रूरत है.”

टॉर्च के चमकीले वृत्त में कैद सुंदर डबडबाई आंखें कृतज्ञता से निहार रही थीं.

“ले कटोरा और चम्मच.” झपट लिया, “यहां आने में डरी थी बाबू. बच्चे के कारण आई. तुम आसरा न देते तो बच्चा मर जाता… बाबू, तुम भले आदमी हो. बेटे का मुंह देखो.”

ओह! क्या करने जा रहे थे? बच्चे की प्राण रक्षा के लिए अंधेरी रात में यह निपट अकेली लड़की पनाह मांगने आई है और वे पनाह देने की मूल्य वसूली… ओह…!

दूसरे दिन मधुर कचहरी से लौटकर चाय पी रहे थे, तभी टेकराम आ गया. उसके हाथ में बहुत बड़ा तरबूज था. तरबूज को उनके पास रखकर कोहनी तक हाथ जोड़ अभिवादन करते हुए बोला, “हुज़ूर, कल हवा-पानी. नदी-नाला बह रहे थे. उसमें फंसे रहे. आज लौटे. सुभागी बताई तंबू पसर गए थे. आप आसरा दिए. बच्चा मर जाता हुज़ूर. हाट से लाया हुज़ूर आपके लिए.”

“नहीं…पर…”

“दिल न तोड़ें हुज़ूर.”

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मधुर समझ गए टेकराम अपने परिवार के लिए तरबूज लाया होगा. सुभागी ने पनाह देने की बात कही होगी. उपकार के बदले उपहार देने को कुछ न रहा होगा, तो तरबूज भेंट कर रहा है. ओह! संस्कार और सभ्यता इनमें भी है. विनय और सामाजिकता है. अनुग्रह और आग्रह है. सुभागी ने न चोरी की, न मोहिनी डाली, न ही इज़्ज़त ख़राब करने जैसा आरोप लगा भयादोहन किया. उन्होंने प्रणाम कर लौट रहे टेकराम को पुकारा “टेकराम, मैं बैजू से तरबूज कटवा रहा हूं. बच्चों को भेज दें. हम लोग मिलकर खाएंगे.

 

     सुषमा मुनीन्द्र

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