कहानी- ज़िंदगी के मुक़ाम 2 (Story Series- Zindagi Ke Muqam 2)

 

पर… यह सब तो एक छलावा था, अपने आप को छलने का. चारों तरफ़ नज़रें घुमाई, तो सब आज भी पहले की तरह ही यहां मौजूद थे, बस एक तुम्ही नहीं थे. वैसे भी तुम कभी भी मेरे प्यार की गहराई को समझ ही नही पाए. आज मेरी समझ में एक बात आ रही थी कि लोग ठीक ही कहते हैं, परिस्थितियां चाहे जितनी बदल जाए, पर औरत अपने प्रथम प्रणय की स्मृति को कभी भूला नहीं पाती है.

 

 

 

 

… सूर्य अस्तगामी हो चला था, जिससे रोशनी बुझने सी लगी थी और ठंड़ी बयार शरीर में सिहरन पैदा करने लगी थी. पर मैं बैठी रही उसी जगह पर, उसी तरह से जैसे कभी मैं बैठी तुम्हारा इंतज़ार किया करती थी. सामने ही धीमी गति से बह रही गंगा के स्वच्छ जल पर न जाने क्यों बार-बार तुम्हारा ही अश्क उभर रहा था. हृदय में जैसे कुछ पिघलने लगा था.

 

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एक हसरत-सी पैदा हुई कि तुम अपनी वही जानी-पहचानी मुस्कुराहट बिखेरते किसी भी पल आकर मुझे अपनी बांहों में समेट लो और आश्चर्य से कहो, ‘‘तुम लौट आई… मुझे पता था तुम मेरे बिना नहीं रह सकती. मैं भी अभी तक तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था.’’ मन की बातें आंखों में उतर आई थी और आंखें तुम्हे तलाशने लगी थी.
पर… यह सब तो एक छलावा था, अपने आप को छलने का. चारों तरफ़ नज़रें घुमाई, तो सब आज भी पहले की तरह ही यहां मौजूद थे, बस एक तुम्ही नहीं थे. वैसे भी तुम कभी भी मेरे प्यार की गहराई को समझ ही नही पाए. आज मेरी समझ में एक बात आ रही थी कि लोग ठीक ही कहते हैं, परिस्थितियां चाहे जितनी बदल जाए, पर औरत अपने प्रथम प्रणय की स्मृति को कभी भूला नहीं पाती है. क्या आज इतने बरस बाद, उस पुराने प्यार के आर्कषण ने ही मुझे यहां नहीं खींच लाया था?
कभी मैं तुमसे कितना प्यार करती थी. तुम्हारे बिना मैं अपने अस्तित्व की कल्पना ही नहीं कर पाती थी. भविष्य के हर योजना तुम से ही शुरू होती थी. इस तट के कितने ही ऐसे पेड़ हैं, जिन पर मेरे और तुम्हारे प्यार के दस्खत आज भी मौजूद थे, जिन्हें मैंने कभी तुम्हारा इंतज़ार करते हुए अपने हाथों से उकेरे थे कि इस प्रकृति का चर-अचर सभी मेरे प्यार के साक्षी होगें? सच कहूं, तो तुम्हारे प्यार का एहसास आज भी उतना ही ताजा है, जितना उन दिनों था. जब शाम का अंधेरा गहराने लगा, तो बेमन से मुझे उठना ही पड़ा.
घर आकर जब वॉशरूम से फ्रेश होकर निकली, तो कमला काॅफी बना लाई.
काॅफी का मग उठाकर लाॅन में आ बैठी. यहां भी तुम्हारे साथ बिताए पल मेरा पीछा कर रहे थे. कभी तुम्हारा साथ आकाश छूने की हिम्मत देता था. तुम्हारा ही साथ, तुम्हारा ही सहयोग था, जो मैं बीपीएससी की परीक्षा पास कर इतने ऊंचे पद पर आ गई थी. अब तो तुम्हारे प्यार के साथ मेरा हौसला भी दिल की गहराइयों में दफ़न हो गया था. फिर भी तुम्हे आश्चर्य होगा, मेरा मन आज भी यह मानने को तैयार नहीं कि तुम मेरे जीवन से दूर चले गए. दिल के किसी कोने में, आज भी एक आस बची है, अपने जीवन में तुम्हारे लौट आने की.
बहुत देर से जतन से छुपाए आंसू गालों तक बह आए थे.

 

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लाॅन का बल्ब बुझा कर मैं अंदर आ गई. कमला टेबल पर खाना रख कर जा चुकी थी. कमला के चले जाने से घर में गहरा सन्नाटा पसर गया था. एक बार फिर अकेले होने का एहसास मुझे शिद्दत से महसूस होने लगा था. रात में सोने गई, तो आंखों में नींद का नामोनिशन नहीं था. मुश्किल से नींद आई भी तो सुबह-सुबह नींद खुल गई. सोचा थोड़ी देर और सो लूं, पर सोने की सारी कोशिशें बेकार गई. मन एक बार फिर पुराने दिनों में लौटने लगा था ।

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

रीता कुमारी

 

 

 

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Usha Gupta

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