कल अलमारी साफ करते-करते रुचिका फाइल्स भी ठीक करने में लग गई. जब से बेटे उत्सव का एडमिशन इंदौर में…
केमिस्ट्री का नीरस लेक्चर सुनते हुए नींद से आंखें बोझिल होने लगी थीं. मैं क्लास में लास्ट बेंच पर बैठा…
सालों पहले जब हमारे एम. ए का विदाई समारोह था तब हम सभी सहपाठी बेहद भावुक और उदास थे, क्योंकि सभी एक-दूसरे सेबिछड़ने वाले थे कल, कौन कहां होगा? किसी को भी पता नहीं था. मंच पर मैंने ‘मेरे ख्वाबों में जो आए, आ के मुझे छेड़ जाए...’ गीतगाया था उसके बाद लड़कों ने ‘तुझे देखा तो ये जाना सनम…’ गाने पर ग्रुप डांस किया था. विदाई समारोह समाप्त होते ही भीड़ में किसी ने चुपके से मुझे एक पर्ची पकड़ा दी थी और मैंने जल्दबाज़ी में वह पर्ची अपने पर्स में डालदी थी और उस पर्ची देनेवाले की शक्ल तक नहीं देख पाई थी और फिर भूल गई वह पर्ची. वह छोटी-सी पर्ची पर्स के कोने में पड़ी रहीऔर मुझे पता ही नहीं चला. एम. ए की परीक्षाओं के बाद कुछ महीनों ही बाद मेरी शादी हो गई और वह पर्स चला गया मेरी छोटी बहनके पास और मेरे पास आ गया नया पर्स. पुराना पर्स जब मेरे पास था, तब मैं हर पल एक बेचैनी-सी महसूस करती थी… लगता था जैसे कोई मुझे शिद्दत से याद कर रहा है, मुझसे कुछ कहना चाहता है… शादी के बाद भी मेरा वही हाल था. हर पल ऐसा महसूस होता था जैसे कोई मुझे दिल से याद कर रहा है, मेरी परवाह कर रहा है, मुझसे कुछ कहना चाह रहा है… ऐसा महसूस होता जैसे कोई मेरी रूह में बसा है और मैं उसे चाह कर भी अपने सेजुदा नहीं कर पा रही हूं. एक दिन छोटी बहन की चिट्ठी आई- दीदी, आपके पर्स में यह पर्ची मिली है. माफी चाहूंगी मैंने पढ़ ली है. आप पढ़ तो लेती. पता तो चलजाता आप पर मर मिटने वाला वह पर्चीवाला दीवाना कौन था? …तेरी हर अदा पर फिदा हूं, करीब होकर भी तुझसे जुदा हूं, बस तू महसूस कर मुझे, हर वक्त हर लम्हा तेरी रूह में बसा हूं...साथ हीदिल के आकार में लिखा था- तुझे देखा तो ये जाना सनम, प्यार होता है दीवाना सनम...पर्ची पढ़कर यह तो पता चल गया कि लड़कोंके ग्रुप डांस में से ही कोई होगा. उस पर्ची को दिल से लगाया और सच्चे दिल से दुआ की… …तू जहां भी हो, खुश और आबाद हो, बेहद शिद्दत से मैं भी हर वक्त और हर लम्हा तुझे महसूस करती हूं... और दोस्तों, आज भी मैं उसे महसूस कर रही हूं. जब अपने सहपाठियों से मुझे एल्यूमिनाई मीटिंग का निमंत्रण मिला तो फेसबुक कोदिल से सलाम किया, जिसकी वजह से आज यह कार्यक्रम आयोजित हो रहा है. आज मैं यहां वही विदाई समारोह वाला गाना- मेरेख्वाबों में जो आए आ के मुझे छेड़ जाए... गाऊंगी क्योंकि मुझे पूरा यकीन है वह पर्चीवाला यहां ज़रूर मौजूद होगा. गीत सुनाते वक्त मेरी नज़रें उसी पर्चीवाले को खोजती रहीं. गीत खत्म हो जाने के बाद संचालिका ने मुझे एक पर्ची थमाते हुए कहा, "संगीता, अपने बैच के सहपाठी संजीव ने दी है, जो इसी शहर में हैं. जब हम उसे निमंत्रित करने गए, तो उसने एक पर्ची देते हुए कहाहमारे बैच की संगीता इस कार्यक्रम में ज़रूर आएंगी और वही विदाई समारोह वाला गाना भी गाएंगी, आप उन्हें यह पर्ची दे देना. मैंअस्वस्थ होने की वजह से कार्यक्रम में शरीक नहीं हो पाऊंगा." उस पर्ची को मैंने अपनी मुट्ठी में ऐसे पकड़ लिया, जैसे मुझे कोई अनमोल ख़ज़ाना मिल गया हो. "इस वक्त संजीव कहां है?" "सिटी हॉस्पिटल में." बेतहाशा दौड़ पड़ी मैं हॉस्पिटल की ओर. रिसेप्शन पर संजीव का कमरा नंबर पता कर बदहवास-सी पहुंची तो वहां हंसता-मुस्कुराताज़िंदादिल संजीव सूखकर सिर्फ हड्डी का ढांचा मात्र रह गया था. उसे मैंने सिर्फ उसकी नीली आंखों से ही पहचाना, क्योंकि उसकी नीलीआंखों में वही सालों पुरानी कशिश और आकर्षण था, जिसकी वजह से क्लास की हर लड़की उस पर मिटती थी. "मुझे यकीन था संगीता, तुम ज़रूर आओगी.” फिर एकटक निहारते हुए बोला, "सच-सच बताना बीते सालों में तुमने मुझे कभी एक पलको भी महसूस किया ?” यह सुनकर रो पड़ी मैं और उसके सीने से लग सालों से जो महसूस करने का मौन सिलसिला था, वह पल भर में खत्म हो गया और साथही उसकी सांसों का सफर भी खत्म हो गया, जैसे ही डॉक्टर ने कहा "ही इज़ नो मोर" यह सुनकर बदहवास-सी चीख पड़ी मैं "संजीव, आई लव यू. हमारा पर्चीवाला इश्क हमेशा अमर रहेगा. तुम हमेशा मेरे साथ और पासरहोगे," कहते हुए मैंने उस पर्ची को अपने दिल से लगा लिया. डॉ. अनिता राठौर मंजरी --
कंपकपाती ठंड से परेशान होकर नाश्ता करने के बाद मैं छत पर चला आया. बाहर गुनगुनी धूप पसरी हुई थी जो बड़ी भली लग रही थी. मैं मुंडेर के पास दरी बिछाकर उस पर लेट गया. धूप चटक थी लेकिन मुंडेर के कारण हल्की सी छांव के साथ सुहावनी लग रही थी. ठंडसे राहत मिलते ही कंपकपी बंद हो गई. धूप की गर्माहट से कुछ ही समय में आंखें उनींदी होने लगी और मैं पलकें मूंदकर ऊंघने लगा. यूंभी पिछले साल भर से किताबों में सर खपा कर मैं बहुत थक चुका था और कुछ दिनों तक बस आराम से सोना चाहता था, इसलिए लॉकी परीक्षा देने के बाद अपनी मौसी के यहां कानपुर चला आया था. अभी हल्की-सी झपकी लगी ही थी कि अचानक मुंह पर पानी की बूंदे गिरने लगी. मैंने चौक पर आंखें खोली, आसमान साफ था. नीलेआसमान पर रुई जैसे सफेद बादल तैर रहे थे. तब मेरा ध्यान गया कि पानी की बूंदें मुंडेर से झर रही हैं. दो क्षण लगे नींद की खुमारी सेबाहर आकर यह समझने में कि पानी किसी के लंबे, घने काले बालों से टपक रहा है. शायद कोई लड़की बाल धोकर उन्हें सुखाने केलिए मुंडेर पर धूप में बैठी थी. एक दो बार खिड़की से झलक देखी थी. एक बार शायद गैलरी में भी देखा था, वह मौसी के पड़ोस वालेघर में रहती थी. उसके भीगे बालों से शैंपू की भीनी-भीनी सुगंध उठ रही थी. मैं उस सुगंध को सांसों में भरता हुआ अधखुली आंखों से उन काले घने भीगेबालों को निहारता रहा. बूंद-बूंद टपकते पानी में भीगता रहा जैसे प्रेम बरस रहा हो, सद्धयः स्नात प्रेम… कितना अनूठा एहसास था वह. भरी ठंड में भी पानी की वह बूंदें तन में एक गर्म लहर बनकर दौड़ रही थी. मेरे चेहरे के साथ ही मेरा मन भी उन बूंदों में भीग चुका था. तभी उसने अपने बालों को झटकारा और ढेर सारी बूंदें मुझ पर बरस पड़ी. मेरा तन मन एक मीठी-सी सिहरन से भर गया. मैं उठ बैठा. मेरेउठने से उसे मेरे होने का आभास हो गया. वह चौंककर खड़ी हो गई. उसके हाथों में किताब थी. कोई उपन्यास पढ़ रही थी वह धूप मेंबैठी. मुझे अपने इतने नज़दीक देखकर और भीगा हुआ देखकर वह चौंक भी गई और सारी बात समझ कर शरमा भी गई. उसे समझ हीनहीं आ रहा था कि इस अचानक आई स्थिति पर क्या बोले. दो पल वह अचकचाई-सी खड़ी रही और फिर दरवाज़े की ओर भागकरसीढ़ियां उतर नीचे चली गई. पिछले पांच दिनों में पहली बार उसे इतने नज़दीक से देखा था. किशोरावस्था को छोड़ यौवन की ओर बढ़ती उम्र की लुनाई से उसकाचेहरा दमक रहा था. जैसे पारिजात का फूल सावन की बूंदों में भीगा हो वैसा ही भीगा रूप था उसका. रात में मैं खिड़की के पास खड़ा था. इस कमरे की खिड़की के सामने ही पड़ोस के कमरे की खिड़की थी. सामने वाली खिड़की में रोशनीदेखकर मैंने उधर देखा. उसने कमरे में आकर लाइट जलाई थी और अलमारी से कुछ निकाल रही थी. उसने चादर निकाल कर बिस्तर पररखी, तकिया ठीक किया और बत्ती बुझा दी. मैं रोमांचित हो गया, तो यह उसका ही कमरा है, वह मेरे इतने पास है. मैं रात भर एकरूमानी कल्पना में खोया रहा. देखता रहा उसके बालों से बरसते मेह को. एक ताज़ा खुशबूदार एहसास जैसे मेरे तकिए के पास महकतारहा रात भर. मैं सोचता रहा कि क्या उसके मन को भी दोपहर में किसी एहसास ने भिगोया होगा, क्या वह भी मेरे बारे में कुछ सोच रहीहोगी? जवाब मिला दूसरे दिन छत पर. जब मैं छत पर पहुंचा, तो वह पहले से ही छत पर खड़ी इधर ही देख रही थी. हमारी नज़रें मिली औरउसने शरमा कर नज़रें झुका लीं. कभी गैलरी में, कभी खिड़की पर हमारी नज़रें टकरा जाती और वह बड़े जतन से नज़रें झुका लेती. उनझुकी नज़रों में कुछ तो था जो दिल को धड़का देता. नज़रों का यह खेल एक दिन मौसी ने भी ताड़ लिया. मैंने उन्हें सब कुछ सच-सच बता दिया. फिर तो घर में बवाल मच गया और मुझेसज़ा मिली. सज़ा उम्र भर सद्धयः स्नात केशों से झरती बूंदों में भीगने की और मैं भीग रहा हूं पिछले छब्बीस वर्षों से, उसके घने कालेबालों से झरते प्रेम के वे सुगंधित मोती आज भी मेरे तन-मन को सराबोर कर के जीवन को महका रहे हैं और हम दोनों के बीच का प्रेमआज भी उतना ही ताज़ा है, उतना ही खिला-खिला जैसा उस दिन पहली नज़र में था, एकदम सद्धयः स्नात. विनीता राहुरीकर
ओस से भीगा वह कमरा, लगा हवा ने मुट्ठी में मनहूसियत को दबोच लिया है. मौसम की वह नमी अचानक…
पहला अफेयर: काश, तुम समझे होते (Pahla Affair: Kash Tum Samjhe Hote) कभी-कभी अचानक कहे शब्द ज़िंदगी के मायने बदल…
पहला अफेयर: उसकी यादें दिल में समाए हूं (Pahla Affair: Uski Yaden Dil Mein Samaye Hoon) वह अक्सर कहा करता…
पहला अफेयर: पहले प्यार की आख़िरी तमन्ना (Pahla Affair: Pahle Pyar ki Akhri Tamanna) कहते हैं, इंसान कितना भी चाहे,…
पहला अफेयर: ख़ामोशियां चीखती हैं... (Pahla Affair: Khamoshiyan Cheekhti Hain) हमारी दोस्ती का आग़ाज़, शतरंज के मोहरों से हुआ था.…
पहला अफेयर: मंज़िल (Pahla Affair: Manzil) आज भी दिल का एक कोना सुरक्षित है उसके लिए, जो मेरे लिए केवल…
पहला अफेयर: ख़ूबसूरत फरेब (Pahla Affair: Khoobsurat Fareb) घर में आर्थिक तंगी से मेरी पढ़ाई छूट गई थी. बस, गुज़र-बसर…
पहला अफेयर: लम्हे तुम्हारी याद के (Pahla Affair: Lamhe Teri Yaad Ke) प्यार, यूं तो इस शब्द से हर शख़्स…