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पहला अफेयर: उसकी यादें दिल में समाए हूं (Pahla Affair: Uski Yaden Dil Mein Samaye Hoon)

पहला अफेयर: उसकी यादें दिल में समाए हूं (Pahla Affair: Uski Yaden Dil Mein Samaye Hoon)

वह अक्सर कहा करता था… मैं आकाश की ऊंचाई को छूना चाहता हूं. इन बादलों में गुम हो जाने पर मैं उस मधुर आवाज़ का इंतज़ार करूंगा, जो तुम मुझे बुलाने के लिए दोगी. तुम गाओगी… न जाओ सैंया, छुड़ाके बहियां, कसम तुम्हारी मैं रो पड़ूंगी… और मैं गाऊंगा… सारंगा तेरी याद में नैन हुए बेचैन, मधुर तुम्हारे मिलन बिना दिन कटते न ही रैन… इसी तरह की अठखेलियों में हंसते-गाते हमारे दिन बीत रहे थे. सौरभ बहुत ही ज़िंदादिल इंसान था. मैंने उसे जितने क़रीब से देखा था, उससे ऐसा आभास होने लगा था कि हम दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं और एक-दूसरे के लिए ही हमारा जन्म हुआ है.

उन दिनों सौरभ और मैं रविन्द्र कॉलेज में बी.ए. अंतिम वर्ष में प़ढ़ते थे. सौरभ एयरविंग में सीनियर डिविज़न में था तथा कॉलेज की विंग का कैप्टन था. बुधवार और शनिवार को एयरविंग की परेड होती थी. उस ड्रेस में वो बहुत अच्छा लगता था और सुबह आते ही मुझे सैल्यूट करता था. उसकी इस हरकत पर पूरी क्लास में हंसी का फव्वारा फूट पड़ता था.

सौरभ कहता था, अवनि, तुम्हारे प्रति एक अनजाना-सा आकर्षण महसूस करता हूं मैं. एक किताब में भी पढ़ा था मैंने कि यूं तो दुनिया में करोड़ों स्त्री-पुरुष हैं, लेकिन किसी विशेष के प्रति हमारा आकर्षण इसलिए होता है, क्योंकि कुछ हार्मोन्स हमें आकर्षित करने के लिए प्रेरित करते हैं- और उससे आकर्षित होने को ही हम कहते हैं कि मुझे उससे प्यार हो गया है. दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं, उसके इंतज़ार में दिन-रात एक हो जाते हैं.

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फिर सौरभ ने एयरविंग के माध्यम से एयरक्राफ्ट की ट्रेनिंग शुरू कर दी थी. वह छोटे प्लेन उड़ाने लगा था. उसका सपना पायलेट बनकर वायुसेना में जाने का था, जहां वह हिमालय की ऊंची-ऊंची वादियों में उड़ सके. लेकिन जब भी वो प्लेन उड़ाने जाता, मेरा दिल बहुत डरता. एक अनजाने भय से मैं कांप जाती.

इसी बीच हमारे फाइनल ईयर की परीक्षाएं ख़त्म हो गई थीं. सौरभ ने वायु सेना में जाने के लिए फॉर्म भरा था, जिसमें उसका सिलेक्शन भी हो गया था. उस समय वो बहुत ख़ुश था. और बोला था, ङ्गङ्घबस मेरी ट्रेनिंग पूरी हुई, नौकरी लगी कि इसके बाद हमारी शादी पक्की समझो.फफ हमारे घरवालों को भी हमारी पसंद पर कोई ऐतराज़ नहीं था.

उसके जाने के बाद रात-रात मैं सौरभ की कुशलता की कामना किया करती थी. हर पल मन बोझिल-सा रहता था, किसी काम में मन नहीं लगता था.

दिसंबर की ठंडी सुबह थी वो. फ़ोन की घंटी लगातार बज रही थी, बेमन से मैंने फ़ोन का रिसीवर उठाया. फ़ोन कानपुर से था. सौरभ के पिताजी बोल रहे थे, अवनि, एक प्रशिक्षण उड़ान के दौरान सौरभ का प्लेन क्रेश हो गया है… इसके आगे कुछ सुुनने की मेरी हिम्मत नहीं हुई और रिसीवर मेरे हाथ से छूट गया.

सौरभ हम सबसे बहुत ऊंचाई पर पहुंच गया था. इस आकाश, इस ब्रह्मांड से भी ऊपर. एक सुखद स्वप्न की तरह कॉलेज की यादें अब केवल यादें ही रह गई हैं. सौरभ की ज़िंदादिली, हंसमुख स्वभाव इतने सालों के बाद भी ज़ेहन में अपना सुरक्षित स्थान बनाये हुए है.

– अवनि

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Geeta Sharma

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