कहते हैं, इंसान कितना भी चाहे, पर वो अपने पहले प्यार को कभी नहीं भुला पाता. पहले प्यार का एहसास, उसकी यादें उम्रभर जेहन में ज़िंदा रहती हैं. उम्र के किस मोड़ पर, कब कोई अपना-सा लगे कोई नहीं जानता. मुझे भी कहां पता था कि आज से बीस बरस पीछे छूट गई उन यादों की गलियों में मुझे फिर से भटकना पड़ेगा, जिन्हें मैं पीछे छोड़ आई थी.
आज उनके अचानक मिले इस संक्षिप्त पत्र ने फिर से मुझे उनके क़रीब पहुंचा दिया है. उनसे मेरी मुलाक़ात कॉलेज फंक्शन में हुई थी. वो मेरे सीनियर थे. मुलाक़ातें धीरे- धीरे दोस्ती में बदलीं और दोस्ती कब प्यार में बदल गयी, पता ही नहीं चला.
एक दिन वो मेरे पास आए और अपने प्यार का इज़हार कर दिया. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूं. दिल के ज़ज़्बात ज़बान तक लाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी. कैसे कहती उनसे कि उनके सिवा कोई ख़यालों में आता ही नहीं, उनके अलावा किसी और को चाहा ही नहीं. पर बात दिल की दिल में ही रह गयी, मैं उनसे कुछ नहीं कह पायी. मेरे जवाब न देने की स्थिति में उन्होंने अपना फ़ोन नंबर देते हुए कहा कि वो मेरे फ़ोन का इंतज़ार करेंगे.
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घर पहुंच कर आईने के सामने न जाने कितनी बार ख़ुद को उनके जवाब के लिए तैयार किया, पर दिल की बात ज़बान तक नहीं ला सकी. मैं जितना ही उनके बारे में सोचती, उतना ही ख़ुुद को उनके क़रीब महसूस करती.
लेकिन मेरे प्यार के परवान चढ़ने से पहले ही उसे मर्यादाओं की बेड़ी में जकड़ जाना पड़ा. माता- पिता ने रिश्ता पक्का करने के साथ-साथ शादी की तारीख़ भी पक्की कर दी. मुझमें विरोध करने का साहस नहीं था, इसलिए चुपचाप घरवालों की मर्ज़ी से शादी कर ली- जवाब देना तो दूर, आख़िरी बार उन्हें देखना तक नसीब न हुआ.
शादी के बाद ज़िम्मेदारियों के बोझ तले कभी- कभार पहले प्यार की यादें ताज़ा हो भी जातीं तो मैं उन्हें ख़ुुद पर हावी न होने देती. पति-ससुराल वालों से कोई शिकायत नहीं थी, फिर भी हमेशा ये लगता कि कहीं कुछ छूट गया है. पति बहुत प्यार करते, लेकिन फिर भी मेरे मन में किसी और का ख़याल रहता. मगर तक़दीर का लिखा कौन टाल पाया है. आज इतने सालों बाद अचानक उनका पत्र आया है जिसमें लिखा है-
प्रिये,
सदा ख़ुुश रहो. मैंने तुम्हारा बहुत इंतज़ार किया,पर अब और न कर सकूंगा, क्योंकि शरीर ने साथ न देने का ़फैसला कर दिया है. व़क़्त बहुत कम है, आख़िरी बार तुम्हें देखने की तमन्ना है. हो सके तो आ जाओ.
तुम्हारा-आकाश
पत्र पढ़कर मुझे अपने कायर होने का एहसास हो रहा है. मुझमें तो अब भी साहस नहीं कि मैं दुनिया वालों को क्या, उन्हें ही बता सकूं कि मैं उन्हें कितना प्यार करती हूं. आज एक बार फिर मुझे औरत होने का हर्जाना चुकाना है, अपने पहले प्यार की आख़िरी तमन्ना भी पूरी न करके. शायद ङ्गमेरी सहेलीफ के माध्यम से ही उन्हें मेरा जवाब मिल जाए- और उनकी ज़िंदगी से पहले उनका इंतज़ार ख़त्म
हो जाए.
– दीपमाला सिंह
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