हे प्रभु यदि तुम्हारे साथ भी मुझे कुछ कहने से पहले सोचना पड़े अर्थात अच्छे-बुरे सही-ग़लत का विचार करना पड़े…
कभी-कभी मैं कुछ नहीं भी कहती हूं तुम तब भी सुन लेते हो.. कैसे! कभी-कभी मैं कुछ कहती हूं तुम…
बारिश की बूंदों ने आज फिर दिल को गुदगुदाया है रिमझिम फुहारों ने मौसम को आशिक़ाना बनाया है ठंडी बयार…
एक चुप होती हुई स्त्री कहती है बहुत कुछ… तुलसी जताती है नाराज़गी नहीं बिखेरती वो मंजरी सारी फुलवारियां गुमसुम…
लिखा था धड़कते दिल से और दिया था कांपते हाथों से मैंने नजरें ज़मीन में ही गड़ा रखी थी फिर…
जिस दिन तमन्ना बड़ी और हौसला छोटा हो जाए समझना कि हार गए तुम जिस दिन राजनीति बड़ी और दोस्ती…
सांस, ख़ुशबू गुलाब की हो धड़कन ख़्वाब हो जाए उम्र तो ठहरी रहे हसरत जवान हो जाए बहार उतरे तो…
तेरी तस्वीर… मैं जहां में कुछ अनोखी चीज़ ढूंढ़ने निकला और शहर में मुझे सिर्फ़ आईना मिला जो मेरी बेबसी…
वह स्त्री.. बचाए रखती है कुछ 'सिक्के' पुरानी गुल्लक में पता नहीं कब से कभी खोलती भी नहीं कभी-कभार देखकर…
काश कि कभी तुमने अपने स्कूल के बस्ते को घर लौटते वक़्त मेरे कंधे पर रक्खा होता काश कि मैंने…
वृक्षों से ही वन बनते हैं, धरती हरी-भरी करते हैं। वर्षा के कारण हैं जंगल, जिससे होता सबका मंगल। वृक्षों…
मेरे प्रेम की सीमा कितनी है, क्या है तुम्हें क्या पता है? बहुत छोटी हैं वो मन की रेखाएं नाराज़…