व्यंग्य- मैं और मेरा किचन (Vyangy- Main Aur Mera Kitchen)


इस किचन के बाहुपाश से निकलना बड़ा ही मुश्किल है. किसी ने कहा है कि व्यक्ति के दिल का रास्ता पेट से होकर गुज़रता है, पर यह जिस किसी ने कहा है उसने यह बात बड़ी ही ख़ूबसूरती से छुपा ली कि इस पेट से दिल तक के रास्ते में किचन नाम का एक बड़ा स्पीड ब्रेकर भी आता है…और पिछले लगभग दो सालों से यह स्पीड ब्रेकर, हर महिला के जीवन में बहुत अच्छे से रच-बस गया है.

मैं और मेरा किचन… अक्सर यह बातें करते हैं, अगर तुम ना होते तो ऐसा होता… अगर तुम ना होते तो वैसा होता… तुम ना होते तो मैं कुछ कहती… मुझे कुछ खाली समय मिलता और मैं भी पैर फैलाकर टीवी देख लेती, ना कोई मुझसे पूछता कि आज खाने में क्या बना है? और ना ही बर्तनों के अंबार लगते.
इस किचन के बाहुपाश से निकलना बड़ा ही मुश्किल है. किसी ने कहा है कि व्यक्ति के दिल का रास्ता पेट से होकर गुज़रता है, पर यह जिस किसी ने कहा है उसने यह बात बड़ी ही ख़ूबसूरती से छुपा ली कि इस पेट से दिल तक के रास्ते में किचन नाम का एक बड़ा स्पीड ब्रेकर भी आता है…और पिछले लगभग दो सालों से यह स्पीड ब्रेकर, हर महिला के जीवन में बहुत अच्छे से रच-बस गया है.
चाइना से चला कोरोना वायरस जैसे ही भारत पहुंचा, सबसे पहला भूकंप भारतीय रसोईघरों में आया. इस भूकंप के शुरुआती झटके बेहद सुखद थे, जिसमें गृहिणियों ने इंटरनेट से देख-देखकर इतने व्यंजन बनाए कि बाज़ार से मैदा और बेसन खाली हो गए. हर किचन में गृहिणियों में इतना उत्साह और स्फूर्ति देखने को मिली कि देखते ही देखते, घर-घर में रेस्टोरेंट्स-सा खाना बनने लगा.
अरे भाई, इन पंचतारिका रसोइयों और खानसामाओं  के उत्साह और पाक कला कौशल को देखकर एक बार को लगा कि इन होटलों पर लॉकडाउन के चलते लगे ताले अब कभी ना खुल पाएंगे. इन रसोई वीरांगनाओं ने अचानक बरसों से धूल में पड़े अपने हथियार उठा लिए थे. हर घर में अब सिर्फ़ पनीर, दाल आदि के छौंकों की महक नहीं उठी, बल्कि यूरोपियन, कॉन्टिनेंटल, अरबी, फारसी पता नहीं और क्या-क्या पकना शुरू हुआ. भारत में आने के बाद कोरोना वायरस को एक बार तो ऐसा ज़रूर लगा होगा कि उसके आगमन की ख़ुशी में हर घर में प्रतिदिन उत्सव मनाया जा रहा है.
अरे भाई, अब आगे का भी तो हाल सुनिए, धीरे-धीरे ऑफिस… स्कूल वर्क फ्राॅम होम माध्यम से शुरू हुए. झाड़ू-पोछा, कपड़े, बर्तन आदि सब कामों को करने के बाद रसोई में नए-नए प्रयोग करनेवाले हमारे यह वैज्ञानिक थकने लगे थे. साथ ही किचन से निकलते मुगलई परांठे, गोलगप्पे, पिज्जा आदि पेट पर दिखने लगे थे. अब यथार्थ और वस्तुस्थिति यह है कि इस रसोईघर नामक जगह की सीमा में कोई प्रवेश नहीं करना चाहता.


कभी-कभी मैं दूर से रसोईघर को निहारती हूं… तो वह मुझे मुंह चिढ़ाता-सा नज़र आता है. मानो कह रहा हो, “बहन, मुझसे ना बच पाओगे. जब तक तुम्हारे शरीर में पेट है, मेरी सत्ता कायम रहेगी. ऐसे समय लगता है ईश्वर ने पेट और घर के डिज़ाइन में आर्किटेक्ट ने किचन क्यों डाल दी. कभी-कभी तो साजिश की बू आती है कि कहीं धोखे से शादियां पति की जगह किचन से तो नहीं करवा दी जाती. अगर ऐसा है, तो फिर तो तलाक़ की भी कोई उम्मीद नहीं. कोरोना काल ने तो इस रिश्ते को और भी प्रगाढ़ कर दिया है.


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जो काम सिर्फ़ पकने-पकाने तक सीमित था, अब बाज़ार से आई सब्ज़ियों को नहलाना-धुलाना… सुखाना… हाथों को पहले सैनिटाइज करना, फिर धोना आदि के चक्कर में यह काम कभी ख़त्म ही नहीं होता. बाज़ार से सब्ज़ी ख़रीद के लौटो, तो ऐसा लगता है कि थैले में कोई विस्फोटक बम है. जिसे सबसे पहले निष्क्रिय करना ज़रूरी है… और जब इतनी मेहनत-मशक्कत के बाद सब्ज़ी, रोटी, दाल, चावल बन कर तैयार होता है, तो बाहर से फ़रमाइश आती है कि आज कुछ अच्छा खाने का मन कर रहा है, कुछ अच्छा बना दो. अब इंटरनेट से कहो कि इस कुछ अच्छे की रेसिपी भी डालें ज़रा अपने यूट्यूब चैनल पर.
तो सौ बातों की एक बात यह है कि दुनिया गोल है. मसला जहां शुरू हुआ, फिर वहीं पर आकर ख़त्म होगा अर्थात रसोईघर या किचन. तो जो गृहिणियां या गृहस्थ भी… इस उद्देश्य से यह लेख पढ़ रहे हैं कि अंत में इस समस्या का समाधान ज़रूर लिखा होगा, तो उनकी अपेक्षाएं रेत के महल से ढहनेवाली है. चाहे जितने उपाय आज़मा ले… रसोई का गठबंधन ना तोड़ पाएंगे, क्योंकि यह किचन अवसरवादी नहीं, बल्कि आपके साथ बड़ी वफ़ादार है. तो आपके लिए यह अच्छा है कि किसी भी व्यक्ति के दिल तक पहुंचने का रास्ता पेट से ना गुज़रे और जब तक ऐसा ना हो मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं!

डिस्क्लेमर: यह लेख किसी व्यक्ति विशेष जिसे रसोई और पाक कला में सच्चा प्रेम है उसकी भावनाओं को आहत करने के लिए नहीं है. यह तो केवल मेरे जैसों की व्यथा है आप व्यंग्य समझकर हंस लीजिए.


– माधवी कठाले निबंधे




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Photo Courtesy: Freepik

Usha Gupta

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