Relationship & Romance

पहला अफेयर- जनवरी की वह सर्द शाम (Love Story- January Ki Woh Sard Sham)

शादी के हवन में तुम्हारी बेवफ़ाई को स्वाहा करके एक नए हमसफ़र के साथ नई दुनिया बसा ली. लेकिन उस दुनिया में तुम्हें और तुम्हारी बेवफ़ाई को एक पल भी नहीं भूली थी.

जनवरी की एक सर्द शाम को चाय पीने की तलब हुई. घर की नहीं ढाबे की. हाईवे पर गाड़ी ने स्पीड पकड़ ली. गरमागरम चाय के दो घूंट पीते हुए तुम्हारे साथ बिताई इसी ढाबे की वह सर्द शाम याद आ गई… कोहरे को चीरते हाईवे पर दौड़ते वाहनों के शोर में भी तुम्हारे अंदर के शोर को मैंने सुन लिया था, “क्या बात है अगस्त्य? क्या सोच रहे हो?”
“ज़िंदगी में प्यार या पैसा दोनों में से किसी एक को चुनना है मुझे.” बेहद संजीदगी से बोला था तुमने.
“ऑफकोर्स, प्यार ही चुनोगे तुम.” मैंने प्यार से तुम्हारे सीने से लगते हुए कहा था.
“इस बात के लिए तुम इतना परेशान हो रहे हो? मैं आज ही घर पहुंच कर अपने मम्मी-पापा से हमारे रिश्ते की बात करती हूं. जल्दी ही वह रिश्ता लेकर तुम्हारे घर आएंगे.” तुम्हारे साथ भावी सपनों के सुनहरे संसार में खो गई थी मैं.
“पर आरुषि, मुझे प्यार नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसा चाहिए, क्योंकि पैसे के बिना दुनिया में कुछ भी नहीं है.”
“अगस्त्य…” मैं लगभग चीखते हुए तुम्हारा कंधा झिंझोड़ कर बोली, “प्लीज, इस तरह का मज़ाक मत करो. मुझे पसंद नहीं.”

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“नहीं आरुषि, ये मज़ाक नहीं सच है. मेरे लिए एक करोड़पति खानदान से रिश्ता आया है, जो मेरे साथ मेरे घर के सभी लोगों के सपने पूरा कर देगा. वो सपने जो मैं पूरी ज़िंदगी कोल्हू के बैल की तरह भी कमाऊं, तब भी पूरे नहीं कर सकता.”
“सबके सपनों को पूरा करने के लिए तुम अपने उन सुनहरे सपनों को दफ़न कर दोगे, जो हमने साथ-साथ देखे हैं.”
“सॉरी आरुषि, मेरी मजबूरी है. वैसे भी दुनिया में पैसे से बढ़कर कुछ भी नहीं है.”
“और प्यार?” मैंने ग़मगीन होते हुए कहा.
“ये तो टाइमपास का ज़रिया है.” तुम ढिठाई से हंसते हुए बोले थे.
ये सुनकर तो मैं अपना आपा खो बैठी, “यू चीटर…” कहते हुए घर वापस आ गई थी. पापा-मम्मी की पसंद के लड़के को स्वीकार कर लिया. शादी के हवन में तुम्हारी बेवफ़ाई को स्वाहा करके एक नए हमसफ़र के साथ नई दुनिया बसा ली. लेकिन उस दुनिया में तुम्हें और तुम्हारी बेवफ़ाई को एक पल भी नहीं भूली थी.
जनवरी की एक सर्द शाम को चाय पी रही थी. अचानक मोबाइल की घंटी घनघना उठी. कैंसर से जूझती ज़िंदगी की आख़िरी सांसें गिनती मां का फोन था. पश्‍चाताप भरे स्वर में बोली, “बेटा, मुझे माफ़ कर देना. मरते वक़्त झूठ नहीं बोलूंगी, अगस्त्य का प्यार सच्चा था. तुम्हारी क़सम देकर उसे तुमसे दूर जाने के लिए मैंने ही मजबूर किया था…” यह सुनते ही गर्म चाय की प्याली हाथ से छूट कर चकनाचूर हो गई और मुंह से एक दर्दनाक चीख निकल गई, “मां, तुमने ऐसा क्यों किया?” सिसकी भरते हुए मां कुछ न कह सकीं.

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अपने हर दोस्त से तुम्हारे बारे में पूछा. किसी को भी नहीं पता कि तुम कहां हो. सोशल मीडिया पर ढूंढ़ा, पर तुम कहीं नहीं मिले. अब जब भी तन्हा और उदास होती हूं, तो इसी ढाबे पर चाय पीते हुए तुम्हें जी भर कर याद कर
लेती हूं…

– डॉ. अनिता राठौर मंजरी


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Usha Gupta

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