पृथ्वी घूमे धुरी पर, बदले दिन सँग रात।
चक्कर काटे सूर्य के, शीत उष्ण बरसात।
घेरे पृथ्वी को सदा, रेखाएँ हैं तीन।
बिन इनके बदले नहीं, ऋतुएँ देखो तीन।
मकर राशि में रवि गये, होती है संक्रांति।
भीषण शीत प्रकोप से, मिल जाती है शांति।
माघ मास उत्तम अधिक, मनें पर्व त्योहार।
आयेगी नव फसल अब, भर जायें घर बार।
पर्व खुशी से तब मने, तिल गुड़ लागे भोग।
खूब पतंगें नभ उड़ें, खुशियाँ बांटे लोग।
भाईचारा हो सदा, हर घर हो संपन्न।
इतना उपजे खेत में, कम न कहीं हो अन्न।
आशा सँग उल्लास ले, आती है संक्रांति।
खुशियाँ आये देश में, चेहरों पर हो कांति।
– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
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Photo Courtesy: Freepik
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