मेरी प्रिय मधु,
रजनी की इस बेला में जब सारा संसार सो रहा है और मैं अतीत के ख़ामोश पृष्ठों को दोहराने का प्रयत्न कर रहा हूं. इस नीरव क्षण के एकांत प्रहर में एक अत्यंत वेदना, एक विवशता मेरे हृदय में कोलाहल कर रही है. अंत में एक अतीत की स्मृति को भारी कर रही है. इस व्यथा भरे संसार में जहां टीस का साम्राज्य है और उसमें दो रतनारी आंखें तैर रही हैं. मैं उन्हें बेसुध-सा देख रहा हूं और सोच रहा हूं ‘कैसी है ये दुनिया?
कोई तो अपनी अधखिली आशाओं को लेकर चला जाए और कोई मुझ जैसा स्मृति चिह्न ही मिटा देना चाहे. स्मृति एक दर्दनाक पुकार है, जिसे कोई सुन नहीं सकता. ऐसी पीड़ा है, जिसे कोई देख नहीं सकता. जिसकी कोई दवा नहीं. मैंने उस दो रतनारी आंखोंवाली से प्रेम किया था. क्या प्रेम का उपहार यही होता है? हृदय से स्मृति को चिपटाए रखूं, तो चोट पहुंचती है और स्मृति को भूलना चाहूं, तो जीवन खाली-खाली-सा लगता है. फिर भी इस वेदनाभार के सम्मान को सहन करूंगा, क्योंकि यह तुम्हारा प्रेमोपहार जो है.
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अचानक ही तुम मेरी जीवन सरिता में आ मिली थीं. मुझे सब याद है, मैं सार्वजनिक पुस्तकालय में बैठा समाचार पत्र पढ़ रहा था… अचानक तुम्हारी मधुर आवाज़ मेरे कानों में पड़ी. मैंने पहली बार तुम्हें पानी के नल पर पानी भरते देखा. हम एक-दूसरे की आंखों में देखते रहे और सारी दुनिया भूल गए. तुम्हारी गागर छलक रही थी. तुम और मैं बेसुध से एक-दूसरे की आंखों में खो गए थे. तुम्हारे उस क्षणिक मिलन के असीम सुख को तुम्हारे पास खड़ी सहेली ने झकझोर दिया और तुम घबराई-सी गागर लेकर भाग गईं. आज तक मेरे हृदय में उस सुखद क्षण की अमिट छाप है, जो समयान्तर नहीं मिटा सका.
उस दिन के बाद मैं प्रतिदिन कितनी बार तुमसे आंखों ही आंखों में मिला. लेकिन समाज हमारे अद्भुत मिलन पर हंसने लगा. इतना होते हुए भी हमारा प्रेममिलन मुक्त वायु की तरह स्वतंत्र था. अपनी मूक भाषा हम ही समझ पाते थे. मैंने उन सुखी क्षणों को अपने जीवन का स्थाई अंग बनाना चाहा, पर ऐसा न हुआ.
समाज के ईर्ष्यालु लोगों ने और तुम्हारे घरवालों ने तुम्हारा बाहर आना बंद कर दिया. आख़िर में तुम्हारा मन अकुलाया और तुम्हारी भावनाएं पत्र द्वारा मिलीं. आंखों का मिलन बंद होने के पश्चात् हमारा पत्र मिलन शुरू हुआ. अचानक ही फिर एक दिन तुम्हें पानी भरते हुए देखा. उन आंखों के मिलन में दर्द और ख़ुशी दोनों थी.
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धीरे-धीरे पत्र मिलन पर भी पाबंदी हो गई और पता चला कि तुम्हारी शादी तय हो गई. तुम शोक में थी और मेरा दिल कराह रहा था. शादी तो शरीर की हो गई, पर प्रेम का संबंध तो आत्मा से है… जिस वस्तु का संबंध तन से है, वह वासना है, क्योंकि वासना बाह्य है. आत्मा का संबंध अमर है.
तुम हृदय में टीस लिए हुए अजनबी पति के साथ ससुराल चली गईं, जहां तुम्हें थोपी हुई ज़िंदगी जीना है. मैं तुम्हारी इस ज़िंदगी में दख़ल नहीं देना चाहता. हमारा प्रेम अमर है.
अलविदा! तुम्हारा वही सत्य प्रेमी.
– सत्यनारायण पवार
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