संघर्ष चल रहा है
युद्धीय स्तर पर
मन और बुद्धि के बीच
निरंतर संघर्ष..
विचार शक्ति का तर्क है कि
‘तुम्हें यूं याद करना
व्यर्थ है- पीड़ा दायक है
पागलपन भी
वह एक सपना था
मीठा ही सही
पर
बहुत पुराना
नामुमकिन है अब
उसको पाना
सपने टूटे तो
आहत करते हैं..
यह मन भी तो
पर कहां मौन है?
उत्तर है उसका
‘जीवन जिया जाता होगा
दिमाग़ी क़ानूनों से
मैं तो जानू बस
प्रीत की भाषा’
अजब टेढ़ी हैं इसकी राहें
है दलदल भी बहुत
ऊबड़-खाबड़ इस पथ पर
आंख मूंद चलोगे तो
घायल तुम ही हो जाओगे
रे मन..
पर यह मन
सुनकर भी अनसुनी कर देता है
मुस्कुराकर मन ही मन
अपने मन की ही करता है…
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