रंग तरंग- भूखे इश्क़ न होत सजना… (Satire- Bhukhe Ishq Na Hot Sajna…)

”सिया उठो, सरगी का टाइम हो गया, मां बुला रही हैं.” मैंने जान-बूझकर करवट ले ली. मन ही मन भगवान से प्रार्थना की- ‘हे भगवान! अमित मुझे सोने दे. अपनी मां से ख़ुद ही कह दे, ‘नहीं रहेगी सिया भूखी, उसे सोने दो.’ पर अजी कहां, बेरहम ने उठाकर ही दम लिया. लम्बी उम्र जो करवानी है.

सोसाइटी में करवा चौथ की तैयारियां ज़ोरों पर है, बिल्डिंग लाल, पीली झालरों से सजी हुई है. लेडीज क्लब करवा चौथ के मूड में था, सब अपनी पुरानी महंगी साड़ियों को हवा, धूप दिखा रहीं है. मैं करण जौहर की मूवी की हीरोइन की तरह अपनी रोमांटिक लाइफ के करवा चौथ की रेटिंग ख़ुद तय करती हूं.
यह क्या बात हुई, सजो-धजो, छलनी पकड़ो, न उसमें अपना चेहरा समाय न उसका, सुबह पति भले ही फूटी आंख न भा रहा हो, पर शाम सात बजे छलनी में ही जैसे सारा प्यार, उसका चेहरा सिमट जाता है, जो सिर्फ़ कुछ ही पलों में गायब भी हो जाता है. वैसे मैंने शादी के पहले दिन ही इन्हें कह दिया था कि मुझसे फिल्मी करवा चौथ की उम्मीद न रखें. मेरे लिए करवा चौथ चिंता का विषय है. पहली करवा चौथ मुझे आज भी याद है. अमित को बहुत उम्मीद थी कि मैं भी यह व्रत धूमधाम से रखूंगी.
नहीं भाई, मैं लाइफ में सब कुछ कर सकती हूं, पर भूखी नहीं रह सकती. और वह कहते हैं न कि बंदा जिस चीज़ से भागता है, वही उसके सामने आ खड़ा होता है. वही हुआ जिसका डर था. अमित से शादी करके मैं बहुत ख़ुश थी (शायद वह भी).
हनीमून भी हो गया, सब कुछ लवी-डवी चल रहा था, पर फिर करवा चौथ ने दस्तक दे दी और मैं अलर्ट हो गई. सासू मां और जेठानी का इस त्योहार के लिए उत्साह देखकर मेरे दिल में उनके लिए जितना भी प्यार और सम्मान था, वह डगमगा गया.


अरे! कौन ख़ुश होता है भूखे रहने के लिए इतना! सासू मां जब कहतीं कि ‘हे भगवान्! हर जनम में यही पति देना.’ मैं मन ही मन कहती, ‘अरे! ऐसा ही क्यों! हर जनम में पति की नई वैरायटी क्यों नहीं हो सकती? एक जनम के लिए एक पति काफ़ी नहीं है क्या? हम तो वैरायटी के लिए किसी को देख भी लें, तो तोहमत लगती है. जेठानी की व्रत की लिस्ट पर नज़र डाली, तो मुझे लिस्ट अच्छी लगी. एक गोल्ड की चेन, नई साड़ी, मेहंदी, मैचिंग एक्सेसरीज़, पार्लर, नई चप्पल. उनसे ज़्यादा उनकी लिस्ट अच्छी लगी. फिर नीचे लिखा था व्रत का सामान. उस पर मैं चाह कर भी नज़र डाल ही न पाई.
और फिर वह दिन आ ही गया जब सुबह अमित ने मुझे झिंझोड़ा, ”सिया उठो, सरगी का टाइम हो गया, मां बुला रही हैं.” मैंने जान-बूझकर करवट ले ली. मन ही मन भगवान से प्रार्थना की- ‘हे भगवान! अमित मुझे सोने दे. अपनी मां से ख़ुद ही कह दे, ‘नहीं रहेगी सिया भूखी, उसे सोने दो.’ पर अजी कहां, बेरहम ने उठाकर ही दम लिया. लम्बी उम्र जो करवानी है. मैं उन्हें घूरते हुए रूम से निकल गई. दुष्ट मुस्कुराता रहा.


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सासू मां और जेठानी के साथ सरगी खाने बैठी, तो सोचा जमकर खा लूं, पता नहीं अब खाना कब नसीब हो. यह मेरे जीवन का पहला व्रत था. मेरे मायके में कभी कोई मुझे भूखा रख ही नहीं पाया. मैं दबाकर खा रही थी. मैंने तब तक खाया, जब तक मैं खा सकती थी. सुबह-सुबह मुझे ऐसे खाते देख वे दोनों मुस्कुराती रहीं. पता नहीं क्यों भूखे रहना मेरे लिए मौत के फ़रमान के बराबर है. भूख मुझे कभी भी ज़रा भी बर्दाश्त नहीं! जब खाना चाहिए तो चाहिए. मैं उन दोनों से बचाकर ड्रायफ्रूट्स छुपाकर ले आई.
भरपेट खाकर मैं सोने चली गई, तो अमित ने मेरे गले में बांहें डाल दी. मुझे करंट लगा. ये बांहें नहीं, मुझे भूख से क़ैद करने की जंजीरें हैं. मैं अमित को घूरती हुई करवट बदलकर सो गई. इस आदमी की वजह से ही सुबह-सुबह इतना भरकर ठूसना पड़ा है कि हालत ख़राब हो गई, पर यह क्या! सुबह साढ़े सात बजे दोबारा उठी, तो लगा पेट खाली है, अंतड़ियां कुलबुला रही हैं, भूख भी जाग रही है. मुझे अपने डाइजेशन पर नाज़ हो आया.
आज घर के पुरुषों ने पति प्रेम के चक्कर में दिखावे के तौर पर छुट्टी ले ली थी. मेरे मायके से मेरी मम्मी व्रत रखने का इंस्ट्रक्शन मैन्युअल फोन पर पढ़कर सुनाती रही. मुझे ठीक से व्रत रखने के निर्देश देती रहीं, जिन्हे मैं एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकालती रही. नौ बजे पुरुष वर्ग नाश्ता करने बैठा, तो गर्मागर्म परांठों की ख़ुशबू से मेरा ईमान डोल गया. मुंह में पानी आ गया. ऐसा लगा ज़िंदगी में जैसे कभी परांठे नहीं खाए. पेट में परांठा क्रांति उठ कर खड़ी हो गई. ‘सिया, आज ही परांठे खाने हैं. परांठे पैक किए और अपने रूम में लाकर छुपा दिए.
बारह बजते-बजते मेरे चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. पति पति नहीं, दुश्मन लगने लगा. सारे ससुरालवाले खूंखार जेलर. मौक़ा देखकर परांठों पर टूट पड़ी. परांठे खाकर हौसले वापस बुलंद हो गए. मुझे उस समय पति से ज़्यादा प्रिय परांठे लगे. थोड़ी देर बाद अमित बेडरूम में टीवी देख रहे थे. मैं वहीं लेटी हुई थी. अचानक उनकी नज़र मेरी शकल पर पड़ी. वे चौंके, प्यार से पूछा, ”कुछ चाहिए, सिया?” प्यार से उनके पूछने पर ही मेरी आंखें भर आईं.
अमित घबरा गए, ”क्या हुआ, सिया, कुछ चाहिए?”


मैं उठकर बैठ गई. मैंने झेंपते हुए कहा, “अमित, मैंने परांठे खा लिए. मैं भूखी नहीं रह सकती. यह व्रत अब करवा चौथ नहीं, कड़वा चौथ लग रहा है मुझे…” कहते कहते मैं रोने लगी.
अमित को जैसे हंसी का दौरा पड़ गया. बेड पर पेट पकड़-पकड़कर हंसे. उनकी प्रतिक्रिया पर मेरा रोना अपने आप रुक गया. हंसते-हसते बोले, ”मेरी भूखी पत्नी…” वह वहीँ बैठे ज़ोर-ज़ोर से हंसते रहे. फिर मैं भी हंस दी और कहा, “सुनो! आगे भी कोई व्रत मुझसे नहीं हो पाएगा…” उन्होंने भी “ठीक है.” कह दिया.
शाम को मैंने भी सज-धजकर चहकते हुए व्रत की कहानी सुनी. मेरी हंसी खाई-पीई थी. वे बात-बात पर भूखी-सी कुछ चिढ़ रही थीं. सब के साथ बैठकर पानी और चाय पिया.
अमित अच्छे पति साबित हुए. उन्होंने किसी को भनक नहीं लगने दी कि मैं भरे पेट से चांद को पूज रही हूं. मैंने अमित को रात में कहा, ”यार! तुमने तो आज दिल जीत लिया मेरा.”
हम दोनों ख़ूब हंसे. उसके बाद हुआ यह कि हमारा ट्रांसफर बैंगलुरू हो गया. हमारी आपस में ख़ूब जमी. हमारा प्यार ख़ूब फलाफूला, जिसके प्रमाण स्वरूप दो बच्चे हो गए.
धीरे-धीरे ससुराल और मायके में डॉक्टर का नाम लेकर यह बम फोड़ दिया कि हाइपर एसिडिटी के कारण डॉक्टर ने किसी भी तरह का व्रत रखने के लिए मना कर दिया है. जान छूटी, लाखों पाए. अब होता यह है कि हर साल करवा चौथ पर (उसके बाद कभी कड़वा चौथ नहीं लगा ) मैं शाम को सज-धज तो जाती हूं, मूवी देख आती हूं, डिनर बाहर कर लेते हैं. यह दिन कुछ अलग तरह से सेलिब्रेट कर लेते हैं. मेरा अनुभव है कि पति से प्यार भूखे पेट रहकर नहीं, भरे पेट से ज़्यादा अच्छी तरह किया जा सकता है. उसकी उम्र इस प्यार से ख़ुश रहकर भी लंबी हो सकती है.

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एक दिन मैंने अमित से अपने दिल की बात कुछ यूं कही, ”मैं 2121 की सिया हूं, मेरा करवा चौथ पर विश्वास बरक़रार है. पति प्रेम में पति को यमराज से मांग कर लाने में भी विश्वास है, पर मैं कर्मठ सिया हूं! पर न मैं आंख पर, न पेट पर पट्टी बांध कर जी सकती हूं. मेरी अपनी आकांक्षाएं और अभिलाषाएं हैं. मैं कमाऊंगी भी, खाऊंगी भी, प्यार भी करुंगी. हे पति परमेश्वर, यह मेरी पर्सनल मूवी है. न मैं करण जौहर की हीरोइन हूं, न टीवी के सोप ओपेरा की तीस बार करवा चौथ रखनेवाली एकता कपूर की सताई बहू. मैं सिया हूं और सिया ही रहना चाहती हूं. माय डियर हस्बैंड! मैं भूखे पेट इश्क़ नहीं कर सकती.”


अमित एक शानदार पति साबित हुए हैं. उन्हें मेरी यह स्पीच सुनकर प्यार कुछ ज़्यादा ही उमड़ आया. उन्होंने भी अपने उदगार कुछ यूं प्रकट किए, “हे सिया! अगर तुम्हारा भाषण ख़त्म हो गया हो, तो क्या मैं तुम्हारा मुखारविंद चूम सकता हूं?” और जुम्मा चुम्मा दे दे… गाने की तर्ज़ पर उनकी मस्ती शुरू हो गई, “यार, यह 2121 है… देख मैं आ गया… अब तू भी जल्दी आ… करवा चौथ से न घबरा… तू दे दे… हां, दे दे… चुम्मा चुम्मा दे दे सिया…”
और यह दिन हमारे लिए परमानेंट पार्टी डे में बदल गया. तो हे पति प्रेयसी सिया! इस 2121 के करवा चौथ में भूखी न रहियो…

पूनम अहमद


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Photo Courtesy: Freepik

Usha Gupta

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