कहानी- पराई ज़मीन पर उगे पेड़ (Short Story- Parai Zamin Par Uge Ped)

“तुम जानते हो तुम्हारा व्यक्तित्व, बोलचाल का तरीक़ा, हर एक के साथ तुम्हारी ज़रूरत से ज़्यादा इंटीमेसी दिखाना सामनेवाले को हर बार ग़लतफ़हमी में डाल देता है. तुम्हारे व्यवहार के धोखे में आकर सामनेवाला अपने आप को तुम्हारी ज़िंदगी में बहुत ज़्यादा इंपॉर्टेंट समझने लगता है. इससे हमारा रिश्ता प्रभावित होता है.” स्वाति बार-बार उसे कहती.

ऐसा कुछ नहीं है. मैं जानता हूं तुम मेरे लिए क्या हो, मेरे मन में तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता.” अमृत सपाट स्वर में कहता.

“कुछ पेड़ अचानक ही ज़मीन पर अपने आप उग आते हैं और ज़मीन में बड़ी गहराई तक अपनी जड़ें जमा लेते हैं. इसमें किसका कसूर है, ज़मीन का या फिर पेड़ों का?”
“न ज़मीन का और न ही पेड़ों का.” अमृत ने अनमने स्वर में उत्तर दिया था.
“ज़मीन तो अपनी जगह पड़ी रहती है, हवा में उड़ते बीज आकर उस पर गिर जाते हैं. भावनाओं की बारिश में बीज कब अंकुरित हो जाते हैं, ज़मीन को पता ही नहीं चलता.”
अमृत के जवाब पर सामनेवाले ने फिर से सवाल किया, “तो कसूर हवा का है, जो बीजों को उड़ाकर ज़मीन पर गिरा देती है, ये भी नहीं देखती कि किस पेड़ के बीज हैं और किसकी ज़मीन है.”
“कसूर हवा का भी नहीं है. उसे तो पता ही नहीं होता कि वह क्या उड़ाकर ले जा रही है और किसकी ज़मीन पर कौन-सा बीज गिरा रही है.” अमृत ने बीयर का खाली मग नीचे रखा और सवाल करनेवाले से विदा लेकर बार से बाहर आ गया. लौटकर ऑफ़िस जाना है. रास्ते में पान मसाले का एक पाउच ख़रीदकर मुंह में डाला.
ऑफ़िस पहुंचते ही शैली से दिनभर के कॉल्स के बारे पूछ-बताकर अमृत अपने केबिन में जाकर बैठ गया. फ़ाइलें देखते हुए, फ़ोन अटेंड करते हुए, वह देख रहा था कि शैली का पूरा ध्यान उसी की ओर था. बहुत दिनों से वह गौर कर रहा था कि शैली के कपड़े दिन-ब-दिन चटकीले होते जा रहे हैं, चेहरे पर मेकअप की परतें बढ़ती जा रही हैं, हाव-भाव बदल रहे हैं.
अमृत जब तक ऑफ़िस में होता है, शैली किसी-न-किसी बहाने से उसके आसपास मंडराती रहती है. केबिन के शीशे के दरवाज़े के ठीक उस पार बैठी शैली की आंखें दरवाज़े के इस पार बैठे अमृत पर ही टिकी रहती हैं.
“मे आइ कम इन?” शैली ने पूछा और बिना जवाब का इंतज़ार किए ही जाकर अमृत की सीट के पास खड़ी हो गई और झुककर फाइल दिखाने लगी. डियो और परफ्यूम की मिली-जुली तेज़ गंध अमृत की सांस में भर गई. फाइल के पन्ने पलटते हुए शैली की कोहनी कई बार अमृत के कंधे से छू गई.
पहले शैली दूर खड़ी होती थी. एक-एक इंच पास खिसकते हुए कब अमृत के कंधे तक पहुंच गई, उसे पता ही नहीं चला. पहले वह अपनी कोहनी अमृत के कंधे से छू जाने पर झिझक जाती थी, फिर झिझकना छूट गया.
अब शैली जान-बूझकर अमृत के कंधे, उंगलियों को छूती रहती है. क्या पाना चाहती है शैली अमृत के कंधे को छूकर? शैली कॉफी के बारे में पूछ रही थी…
अमृत ने घड़ी देखी. बीयर पीकर काफ़ी व़क़्त बीत चुका था, उसने हां कह दिया. शैली दो कप कॉफी बना लाई. कॉफी पीते हुए शैली अपने परिवार की द़िक़्क़तों के बारे में बताती रहती थी. अमृत दिलचस्पी से सुनता था. पुरुष दूसरी औरतों के दुख और आंसू नहीं देख सकता, ये उसकी कमज़ोरी है. अमृत में यह कमज़ोरी कुछ ज़्यादा है.

यह भी पढ़ें: रिश्तों की बीमारियां, रिश्तों के टॉनिक (Relationship Toxins And Tonics We Must Know)

शैली अमृत की यह कमज़ोरी भांप गई है, तभी वह समय मिलते ही अमृत के सामने अपनी परेशानियों का रोना रोने बैठ जाती है. शैली शिद्दत से चाहती है अमृत की उंगलियां उसके आंसू पोंछें और आंसू पोंछते हुए वे गालों से होती हुई शैली के कानों की लटों तक पहुंच जाएं. अमृत की उंगलियों को अपने गालों से कानों तक का सफ़र करवाने के लिए शैली आजकल हर संभव प्रयास कर रही है. दराज़ों को खोलने के बहाने कुर्सी की पीठ की बजाय अमृत के कंधे पर हाथ रख देती है या अमृत की बगल में झूल जाती है.
कॉफी ख़त्म हो चुकी थी. अमृत ने कप नीचे रखा और अपने काम निपटाने चल दिया. वो जानता था शैली यहीं चिपकी रहेगी. न ख़ुद काम करेगी न उसे करने देगी. शैली को आगे के काम के बारे में समझाकर वह निकल गया. शैली का चेहरा उतर गया…
रात में अमृत गैलरी में आकर बेंत की कुर्सी पर बैठ गया. स्वाति को चांद की रोशनी में गैलरी में बैठना बहुत पसंद था. चाहे जितनी रात गहरा जाए, वह दस मिनट तो यहां बैठने का समय निकाल ही लेती थी. अमृत तब जाकर कमरे में सो जाता था, जब स्वाति यहां बैठती थी.
अब जब स्वाति नहीं है, तो अमृत रोज़ यहां आकर बैठता है. जब स्वाति थोड़ी देर गैलरी में बैठने की ज़िद करती थी, तब अमृत खीझ जाता था. लेकिन जब से स्वाति गई है, अमृत रोज़ गैलरी में आकर बैठता है. जाने कितनी देर तक बैठा रहता है, फिर भी नींद नहीं आती, रात नहीं ढलती. लगता है समय जैसे रुक गया है.
अजीब बात है, स्वाति की ओर पीठ करके अमृत कितनी चैन से सोता था, सीधे सुबह ही आंख खुलती थी. लेकिन जब से स्वाति गई है, अमृत को नींद नहीं आती. रातभर पीठ की ओर पलंग पर एक खालीपन-सा चुभता रहता है, तब अमृत स्वाति की ओढ़ी हुई चादर अपने ऊपर कसकर लपेट लेता.
अमृत ने एक सिगरेट सुलगाई और एक लंबा कश लिया. दिन में पूछा गया सवाल अचानक ही अमृत के सामने आकर खड़ा हो गया, ज़मीन पर पेड़ों के बारे में.
शैली के अंदर की ज़मीन पर भी कुछ उग रहा है, वह महसूस कर रहा था. पिछले कई महीनों से ख़ासतौर पर जब से स्वाति गई है, शैली ही अपनी ज़मीन को बहुत ज़्यादा फैलाव दे रही है, एक के बाद एक पेड़ उगाती चली जा रही है…
“तुम जानते हो तुम्हारा व्यक्तित्व, बोलचाल का तरीक़ा, हर एक के साथ तुम्हारी ज़रूरत से ज़्यादा इंटीमेसी दिखाना सामनेवाले को हर बार ग़लतफ़हमी में डाल देता है. तुम्हारे व्यवहार के धोखे में आकर सामनेवाला अपने आप को तुम्हारी ज़िंदगी में बहुत ज़्यादा इंपॉर्टेंट समझने लगता है. इससे हमारा रिश्ता प्रभावित होता है.” स्वाति बार-बार उसे कहती.
“ऐसा कुछ नहीं है. मैं जानता हूं तुम मेरे लिए क्या हो, मेरे मन में तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता.” अमृत सपाट स्वर में कहता.
“कभी मार्क किया है तुमने, शैली मुझे कैसी नज़र से देखती है? ऐसा लगता है जैसे मुझ पर हंस रही है कि तुम हो ही क्या? तुम्हारे पति के लिए तुम मायने ही क्या रखती हो? उसमें तुम्हें लेकर अपने आप पर इतना ज़्यादा कॉन्फ़िडेंस कैसे डेवलप हो गया अमृत?” स्वाति अब बिफरने लगी थी.
“ऐसा कुछ भी नहीं है. ये सिर्फ तुम्हारी ग़लत सोच है, जिसे मैं बदल नहीं सकता.” अमृत के पास कहने को कुछ नहीं होता, तो वह स्वाति की सोच को ग़लत बताकर बात वहीं ख़त्म कर देता.

यह भी पढ़ें: 20 बातें जो पुरुष स्त्रियों से चाहते हैं (20 Things Men Really Want In A Women)

“तुम ग़लत कर रहे हो अमृत. तुम स़िर्फ हमारे रिलेशनशिप के साथ ही धोखा नहीं कर रहे, बल्कि उस लड़की को बढ़ावा देकर उसकी भावनाओं से भी खेल रहे हो.” स्वाति कहने से अपने आप को रोक नहीं पाई.

“मैं किसी के भी साथ ऐसा नहीं करता. तुम्हें तो आदत हो गई है हर एक के साथ मेरा नाम जोड़ने की.”
“मेरी हर एक के साथ तुम्हारा नाम जोड़ने की आदत नहीं है, तुम्हारी आदत है हर किसी के साथ ऐसा रिलेशन डेवलप कर लेने की.” स्वाति कहना चाहती थी, लेकिन तब तक अमृत कमरे से बाहर जा चुका होता था.
स्वाति ने पास ही के शहर में नौकरी करने का निर्णय कर लिया था. उसने किराए का मकान भी ले लिया था. पहले स्वाति हर आठ दिन में अपने घर आ जाती थी, फिर धीरे-धीरे उसने आना कम कर दिया. जब भी आती, अमृत के उगाए हुए पेड़ों के जंगल उसके सामने आ जाते और उसका दम घुटने लगता…
अमृत की ज़मीन पर उगे आर्या के पेड़ों को वह अपना नसीब मानकर बैठी रहे या ऋषि की ज़मीन पर अपना नया बगीचा बनाए.
क्या ऋषि उम्रभर ऋषि ही रहेगा? या कुछ समय बाद वह अमृत बन जाएगा.
अमृत की भीतरी ज़मीन पर पराए पेड़ों का घना जंगल था. अमृत के साथ रहते-रहते स्वाति को समय-समय पर उन जंगलों के बारे में पता चला है. दूसरों के अंदर पनपते उन पेड़ों के बारे में भी पता चला, जिनके बीज अमृत के व्यवहार से पनपे थे.
पहले अमृत के अंदर स्वाति के मनचाहे पेड़ों का बगीचा था, जिसके सारे पेड़ स्वाति की पसंद के थे. लेकिन एक दिन अचानक आर्या ने स्वाति का भ्रम तोड़ दिया. स्वाति के लिए बगीचा तैयार करने के बहुत पहले से ही अमृत की ज़मीन पर आर्या ने अपने बीज बो दिए थे. उन पेड़ों की जड़ें इतनी अधिक गहरी और मज़बूत थीं कि स्वाति का कोमल बगीचा उखड़ने लगा.
अब तो जब भी स्वाति अमृत की ज़मीन पर उतरती, अपने आप को आर्या के पेड़ों के बीच पाती. आर्या, फिर स्नेहा, फिर शैली… अमृत ने अपने अंदर न जाने कितने जंगल बना रखे थे.
अमृत की ज़मीन के उन कंटीले जंगलों में भटकते-भटकते स्वाति थक गई थी. उनके कांटों से छलनी हो गई थी, इसलिए वह दूर चली आई थी. अमृत से दूर, ताकि ताज़ी हवा में खुलकर सांस ले सके.
श्रीकांत को क्या कभी आर्या की ज़मीन पर पराए पेड़ों के जंगल दिखाई नहीं दिए होंगे? क्यों और कैसे श्रीकांत उन जंगलों को इतनी आसानी से सह लेता है? या फिर आर्या श्रीकांत के पहुंचने तक अमृत के जंगलों का रास्ता चतुराई से बंद कर देती है या आर्या ने अपने जंगलों को दो अलग-अलग हिस्सों में सफ़ाई से बांट रखा है. जब मौक़ा हो अमृत के जंगल में, जब मन हो श्रीकांत के साथ उसकी ज़मीन पर. कोई इतनी सफलतापूर्वक अपने दो हिस्से कैसे कर सकता है? पर कुछ लोग कर लेते हैं, जैसे अमृत.
उसने तो न जाने अपने आप को कितने हिस्सों में बांट दिया है. स्वाति अपने आप को कभी भी अलग-अलग हिस्सों में बांट नहीं पाई. यदि दूसरे पेड़ उगाने हों, तो उसे पहला जंगल पूरा साफ़ करके ज़मीन खाली करनी होगी…
“आ गया सामान?” ऋषि ने अंदर आते हुए पूछा, “सॉरी ज़रा काम से चला गया था, पर तुम तो रुक सकती थीं. शाम को साथ ही में चलते.”
चाय, फिर साथ में डिनर बनाना, बीच-बीच में नोक-झोंक और बातें…
फिर रात में गैलरी में चांद की रोशनी में बैठकर कॉफी. स्वाति का दिन अच्छा गुज़रा. आजकल ऋषि के साथ ज़िंदगी वैसी ही हल्की-फुल्की और ख़ुशनुमा हो गई है, जैसी शुरुआती दिनों में अमृत के साथ थी. हंसते-खेलते साथ में घर के काम करना, बातें करना… ठंडी-ठंडी छांव के बीच से झरती कच्ची-पक्की गुनगुनी धूप जैसे.
क्या करे स्वाति?
अमृत की ज़मीन पर उगे आर्या के पेड़ों को वह अपना नसीब मानकर बैठी रहे या ऋषि की ज़मीन पर अपना नया बगीचा बनाए.
क्या ऋषि उम्रभर ऋषि ही रहेगा? या कुछ समय बाद वह अमृत बन जाएगा.
अमृत भी पहले-पहले ऋषि जैसा ही था, पर धीरे-धीरे… क्या समय बीतने पर ऋषि भी अमृत बन जाएगा?…
“ये क्या है शैली? हर काम में ग़लती. तुम्हारा ध्यान कहां रहता है आजकल?” अमृत ने बिल शैली के सामने फेंकते हुए कहा, “जाओ, फिर से बनाकर लाओ.”
शैली ग़ुस्से से मुंह फुलाकर अमृत के केबिन से बाहर चली गई. अमृत भुनभुनाता हुआ वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया.
“जब देखो तब बस बैठे-बैठे शीशे के उस पार से यहीं देखती रहती है या फिर केबिन में बैठे रहने के बहाने ढूंढ़ती रहती है. काम में कौड़ी का ध्यान नहीं है. कल इसके आने के पहले इसका टेबल दरवाज़े के सामने से साइड में शिफ्ट करवाना पड़ेगा.”
अमृत के मोबाइल की रिंग बजी. आर्या का फोन था. झल्लाकर अमृत ने फोन काट दिया. दो मिनट बाद रिंग फिर बजी.
उसके दो मिनट बाद फिर, अमृत बुरी तरह से चिढ़ गया. फोन रिसीव करके बोला, “मीटिंग में हूं. घर पहुंचकर बात करूंगा.”…
अब तक अमृत अपने बीज पराई ज़मीनों पर उगाता आया था. इसी में उसे अपना पुरुषार्थ सार्थक होते दिखता था. आज तक कोई भी अमृत के उगाए पेड़ों को काटने का दुस्साहस नहीं कर पाया, लेकिन स्वाति ऐसा दुस्साहस कर सकती है. उसकी ज़मीन में अमृत के बीजों को भस्म करने का तेज है और अगर ऐसा हुआ, तो अमृत हार जाएगा और अपनी हार अमृत बर्दाश्त नहीं कर सकता.
पिछले कई महीनों से अमृत देख रहा था स्वाति का व्यवहार बदल रहा है. पहले स्वाति हर आठ-दस दिनों में घर आ जाती थी. दो दिन भी रहती तो अपने बच्चे की तरह घर को दुलारती, अमृत का बिखरा सामान सहेजती, घर आकर अमृत से मिलकर उसके चेहरे पर एक आंतरिक ख़ुशी छलकती रहती थी.
लेकिन अब उन कामों में उसका पहले-सा मन नहीं रहा. दो दिनों के लिए ही आती है और उसमें भी न जाने किससे बात करती रहती है फोन पर. अमृत के पूछने पर टाल जाती है. गैलरी या बरामदे में अमृत से दूर खड़ी होकर किसी से बात करते हुए स्वाति के चेहरे पर वही ख़ुशी छलकती है, वही भाव रहते हैं, जो आर्या से बात करते हुए अमृत के चेहरे पर रहते हैं. पिछले तीन महीनों से स्वाति घर नहीं आई. फोन भी हमेशा अमृत ही करता है और उसके कान महसूस करने लगे हैं, स्वाति के स्वर में धीरे-धीरे गहराती हुई तटस्थता को, उभरती हुई औपचारिकता को…
घर आकर अमृत सीधे गैलरी में जाकर बैठ गया. स्वाति को किसी भी तरह से घर वापस लाना होगा. अमृत जानता है, स्वाति अमृत नहीं है. उसकी ज़मीन पर एक साथ कई पेड़ नहीं उग सकते. अगर वह किसी और के बीजों को उगाने के लिए ज़मीन तैयार कर रही होगी, तो वह पहले अमृत के पेड़ों को जड़-मूल से साफ़ करके ही दूसरे के लिए ज़मीन तैयार करेगी. इसीलिए अमृत स्वाति से मन ही मन घबराता है, चाहे ऊपर से यह बात कभी भी उसने प्रकट नहीं की हो.
और आजकल अमृत साफ़-साफ़ समझ रहा है, देख रहा है- स्वाति के अंदर कुछ तो उग रहा है. शायद उन बीजों का स्रोत अमृत को पता है. एक-दो बार स्वाति के यहां देखा था. तब ज़्यादा देर तक सामना नहीं हुआ था, पर शायद वही होगा. अमृत उस रात बिना खाए ही सो गया, स्वाति की चादर ओढ़कर.
दूसरे दिन शैली ऑफिस पहुंची, तो देखा उसका टेबल अमृत के केबिन के सामने से शिफ्ट हो चुका है. शैली को समझ में नहीं आ रहा था कि उसने आख़िर ऐसा क्या गुनाह कर दिया है, जो अमृत अचानक ही उससे इतना नाराज़ रहने लग गया.
पहले भी शैली काम में ग़लतियां करती थी, लेकिन अमृत ख़ुद ही करेक्शन कर लेता था. शैली को कुछ नहीं कहता था. जब भी अमृत ऑफिस में होता, किसी न किसी बहाने से शैली को अपने केबिन में बुलवाता और घंटों बातें करता रहता. घंटों की इन्हीं बातचीत और अमृत के स्पेशल अटेंशन ने शैली के मन में उसके लिए भावनाएं जगा दीं, तो इसमें शैली का क्या दोष?
क्यों आज तक अमृत अपने व्यवहार से हर समय शैली के मन में यह एहसास जगाता आया है कि वह उसके लिए कुछ ख़ास जगह रखती है और अब जब शैली अमृत के इतने क़रीब आ गई है, तो अमृत क़दम-दर-क़दम उससे दूर चला जा रहा है. अमृत जब ऑफिस पहुंचा, तब शैली नीता के पास बैठकर अपना रोना रो रही थी.
अमृत भुनभुनाते हुए अपने केबिन में आकर बैठ गया. “ये लड़कियां भी अजीब होती हैं. ज़रा-सा हंस-बोल लो, तो मान बैठती हैं कि सामनेवाले को इनसे प्यार हो गया है. जैसे कि आदमियों को और कोई काम ही नहीं है. किसी से हंसना-बोलना भी गुनाह हो गया है. हंसने-बोलने का लोग ग़लत ही मतलब निकालकर बैठ जाते हैं. चाहे आर्या हो, शैली हो या स्नेहा…” आर्या को पक्का विश्‍वास है कि अमृत के जीवन में आर्या से अधिक कोई महत्व नहीं रखता, स्वाति भी नहीं. परिस्थितिवश आर्या की शादी पहले हो गई, नहीं तो अगर वह अमृत को पहले मिली होती तो अमृत उसी से शादी करता.
इस बात से अमृत भी इनकार नहीं कर सकता कि यदि वह श्रीकांत से पहले आर्या से मिला होता, तो वह उससे शादी कर लेता. यही वजह है कि वह कई बार बुरी तरह से चिढ़ जाने के बाद भी आर्या को छोड़ नहीं पा रहा. शायद कभी छोड़ भी नहीं पाएगा.

यह भी पढ़ें: इन 9 आदतोंवाली लड़कियों से दूर भागते हैं लड़के (9 Habits Of Women That Turn Men Off)

आर्या अमृत की इस कमज़ोर नस को पहचान चुकी है. तभी वह अमृत द्वारा झिड़क दिए जाने के बाद भी उसका पीछा नहीं छोड़ती है. लेकिन इन सभी सच के ऊपर एक और सच है, जो अमृत बहुत अच्छे से जानता है और मानता है. आर्या से वह कभी भी शादी नहीं कर सकता और आर्या स्वाति नहीं है. आर्या ही क्या, कोई भी स्वाति की जगह नहीं ले सकता.
आर्या अमृत के साथ से ख़ुश है, क्योंकि पति के अलावा भी एक और पुरुष का उसे अटेंशन मिल रहा है. लेकिन आर्या अगर उसकी पत्नी होती, तो अमृत के ऐसे रिश्ते को वह कभी भी सहन नहीं करती. वह अपने अधिकार की ज़मीन पर किसी दूसरे के पेड़ों को उगते नहीं देख पाती. जैसे स्वाति की ज़मीन पर किसी और के पेड़ों के उगने की आशंका अमृत के जीवन में एक तिलमिलाहट पैदा करती जा रही है. आदमी की फ़ितरत भी अजीब होती है.
अब तक अमृत अपने बीज पराई ज़मीनों पर उगाता आया था. इसी में उसे अपना पुरुषार्थ सार्थक होते दिखता था. आज तक कोई भी अमृत के उगाए पेड़ों को काटने का दुस्साहस नहीं कर पाया, लेकिन स्वाति ऐसा दुस्साहस कर सकती है. उसकी ज़मीन में अमृत के बीजों को भस्म करने का तेज है और अगर ऐसा हुआ, तो अमृत हार जाएगा और अपनी हार अमृत बर्दाश्त नहीं कर सकता.
रात में अमृत गैलरी में बैठ गया. स्वाति से बहुत देर तक बातें करके अभी-अभी उसने फ़ोन रखा था. इन दिनों वह रोज़ ही रात में देर तक स्वाति से बातें करता है. उसे एहसास दिलाता रहता है कि वह उसे कितना चाहता है, उसे स्वाति की कितनी ज़रूरत है. आख़िरकार अमृत ने एक फैसला किया. वो ज़िम्मेदारी अपने सिर पर लेने का, जिससे वह आज तक बचता आया है. वो ज़िम्मेदारी, जिसके लिए स्वाति अब तक तरस रही थी और अमृत उसका बोझ नहीं चाहता था. अब स्वाति टाल रही है, पर अमृत के पास और कोई चारा नहीं है. वो ज़िम्मेदारी ही स्वाति को हमेशा के लिए, हर परिस्थिति में अमृत के साथ बांधकर रख सकती है.
शैली या आर्या तो बहुत आती-जाती रहेंगी, पर स्वाति उसे दोबारा नहीं मिलेगी. अमृत जानता था, इसलिए वह उसे खो नहीं सकता. एक नए बंधन में जकड़कर उसे दोबारा इस घर और अमृत के साथ उसकी ज़मीन पर लाकर बसाना ही होगा. अमृत कल सुबह-सुबह ही स्वाति के पास पहुंच जाएगा. अमृत अंदर जाकर स्वाति की चादर लपेटकर सो गया. अमृत के अंदर की ज़मीन पर स्वाति के पेड़ लहलहा रहे थे.

 

अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करें – SHORT STORIES

डॉ. विनीता राहुरीकर
Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कामाच्या ठिकाणी फिटनेसचे तंत्र (Fitness Techniques In The Workplace)

अनियमित जीवनशैलीने सर्व माणसांचं आरोग्य बिघडवलं आहे. ऑफिसात 8 ते 10 तास एका जागी बसल्याने…

April 12, 2024

स्वामी पाठीशी आहेत ना मग बस…. स्वप्निल जोशीने व्यक्त केली स्वामीभक्ती ( Swapnil Joshi Share About His Swami Bhakti)

नुकताच स्वामी समर्थ यांचा प्रकट दिन पार पडला अभिनेता - निर्माता स्वप्नील जोशी हा स्वामी…

April 12, 2024

कहानी- जादूगरनी (Short Story- Jadugarni)

"ऐसे नहीं पापा, " उसने आकर मेरी पीठ पर हाथ लगाकर मुझे उठाया, "बैठकर खांसो……

April 12, 2024

एकच प्रश्‍न (Short Story: Ekach Prashna)

प्रियंवदा करंडे आजींच्या मनात नुसतं काहूर उठलं होतं. नुसता अंगार पेटला होता. हे असं होणं…

April 12, 2024
© Merisaheli