Short Stories

कहानी- पंचर का जोड़ (Short Story- Puncture Ka Jod)

यही एक पल जब यामिनी सभी बाहरी अदालतों के परे अपने भीतर है और अपनी ही सफ़ाई में कहने को उसके पास कुछ नहीं! इस पल को यहां से ताकती यामिनी ने ख़ुद को कार में इतना अकेला पाया है, जैसे मरीचिका में भटकती कोई हिरणी अब थकने लगी हो.

शहर में त्योहार का मतलब है- अतिरिक्त छुट्टी! रक्षाबंधन के दिन, सावन मेला घूमकर लौटते समय कार पंचर हो गई. चार साल की रोली कार की पिछली सीट पर, 12 साल के बड़े भाई आदी से इस होड़ में चिप्स के पैकेट निपटा रही है कि विजेता वही बनेगी. आदी का ध्यान चिप्स से ज़्यादा ईयरफोन लगाए अंग्रेज़ी गाने सुनने में है. अगली सीट पर मम्मी यामिनी सावन मेले से ख़रीदा सात सौ रुपए का जड़ाऊ कंगन सेट निहारने में मुग्ध है. हालात की गंभीरता से परेशान बच्चों के पापा मलय ने कार पास के पेट्रोल पंप की ओर बढ़ा दी.

उनके वहां पहुंचने से ऐन पहले, एक कार पेट्रोल पंप की पंचर की दुकान के आगे आकर रुकी. वहां पहले से ही एक कार का पंचर बन रहा है और अब पिछली दोनों कारें प्रतीक्षा में खड़ी हो गई हैं.

“अरे!” अगली कार के पीछे अपनी कार लगाते मलय को अब सहज चौंकना ही था और मलय को चौंकता देख यामिनी का ध्यान भी सहज ही उस ओर खिंचना ही था. अगली कार से जो युवक उतरा, वो मलय का छोटा भाई प्रखर है. पांच साल पहले, तथाकथित छोटी जाति की लड़की से प्रेम-विवाह करने के कारण उसे संयुक्त परिवार से अलग कर दिया गया था और तब से शायद वो कुल पांच बार भी घर न आया होगा. इस वक़्त कार में पिछली सीट पर उसका साढ़े चार साल का बेटा टीटू और उसकी पत्नी ज्योत्सना बैठी दिख रही है.

पीछे खड़ी कार में से मलय और यामिनी उन्हें चुपचाप देख रहे हैं.

“आदी, बेटा जाओ. जाकर अंकल के चरण स्पर्श करो.”

मलय की आवाज़ गंभीर है, लेकिन ऑनलाइन अंग्रेज़ी गानों के आनंद में लिप्त बेटे ने पिता को सुना ही नहीं. सुन भी लेता तो स्मृति पर ज़ोर डाल समझ रहा होता- कौन अंकल? लेकिन जिसे सचमुच समझ में आया, उसकी प्रतिक्रिया आदेश जितनी ही गंभीर थी. यामिनी ने सर्द आवाज़ में कहा, “आदी नहीं जाएगा.”

“क्यों?”

“क्योंकि चरण स्पर्श करने से पहले चरणों की योग्यता देखी जाती है.”

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“ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.”

मलय ने संयमित ढंग से कार का दरवाज़ा खोला. बीवी-बच्चों को कार में बैठा छोड़, कमर पर बेल्ट दुरुस्त करता प्रौढ़ बड़ा भाई अपने छोटे भाई की तरफ़ बढ़ चला, जो शायद अब तक उन्हें देख चुका है, पर न देखने का अभिनय कर रहा है.

यहां से यामिनी देख रही है, प्रखर ने अपने भाईसाहब के पैर छुए हैं और अपने बेटे को बुलाकर उससे भी उनके चरण स्पर्श करवाया. उस कार की अगली सीट पर देवरानी की झलक देखते ही ‘छोटी जात’ यामिनी ने अपना वही सदैव का जुमला बुदबुदाया, जो अपनी इस देवरानी-लड़की का घर में ज़िक्र सुनकर वो हमेशा कहती रही है.

यामिनी वहां हर्गिज़ नहीं जाएगी, लेकिन उसका मन उत्सुकता की सब हदें पार कर चला है- ‘वहां क्या बातें हो रही होंगी?’

उसने आदी को पापा के पास जाने को कहा, पर बेटे ने ईयरफोन के गाने से

स्वर-से-स्वर मिलाकर गाने के आनंद में फिर नहीं सुना.

“आदी, पापा के पास जाओ, अभी!” मां ने कंधा झिंझोड़ा, तो आदी को बेमन से उधर को जाना पड़ा.

यामिनी यहां से देख रही है- मलय ने छोटे भाई के सिर, कंधों, चेहरे पर पिता-सा हाथ फेरा है.

कार की पारदर्शी कांच के पार से दिख रहा है, आदी ने पिता के आदेश पर अपने अपरिचित से चाचा के चरण स्पर्श किए हैं.

इधर यामिनी के चेहरे का रंग और ढंग बदल गया और अब उसका पूरा ध्यान कार की अगली सीट पर है. कुछ ठीक से दिख नहीं रहा यहां पीछे से- कैसे कपड़े पहने होगी वो? सुना है पैंट-टीशर्ट, स्कर्ट-ब्लाउज़, टॉप-कैप्री सब पहनती है. और तो और कभी-कभी तो बाल भी लड़कों की तरह कटवाती है. यामिनी अपनी बंगाली तांत की साड़ी के ओपन पल्ले की पिन छूकर आश्‍वस्त हुई. लंबे बालों की संवरी चोटी को छू-छाकर देखा और पर्स में से छोटा आईना निकालकर अपने भारतीय नारी लुक-मेकअप का सरसरी तौर पर मुआयना किया, जिस पर गर्व करना जैसे उसके गृहिणी जीवन की एक बड़ी उपलब्धि है.

लेकिन अगले ही पल उसका ध्यान फिर कार की अगली सीट पर जा चिपका है- ‘देखो तो, जेठाई का कोई आव-आदर नहीं! लाख दूरी सही, हैं तो हम बड़े ही ना! बड़प्पन तो तब था, जब ख़ुद कार से उतरती और आकर पैर छू लेती, पर छोटी जातवाले क्या जानें ये संस्कार!’

यामिनी ने फिर मन-ही-मन उसे जीभर दुत्कारा. इस समय अम्माजी की बड़ी याद आ रही है. वे होतीं, तो यामिनी अंतत: विजेता की तरह साबित कर पाती.उनकी दुलारी छोटी बहू की ये असलियत! तीन बरस हुए, वे स्वर्ग सिधार गईं और मरते व़क्त भी घर की बड़ी बहू से उस बूढ़ी विधवा मां का यही रिरियाता-सा झगड़ा-रार कायम रहा कि प्रखर के बेटे-बीवी का इस घर में मान-सम्मान से आना-जाना हो जाए. वे कभी-कभार प्रखर के घर गईं भी. एक बार तो तीन दिन रह भी आई थीं और जब लौटीं, तो बड़ी बहू की नज़रें जैसे उनका कत्ल कर रही थीं.

यामिनी अपनी सीट पर शिकनभरी मुद्रा में बैठी लगातार उधर को ही देख रही है. मलय अपने छोटे भाई से बड़े ख़ुश होकर बतिया रहे हैं. कभी कंधा थपथपाते हैं, कभी उसकी बात पर हामी में सिर हिलाते हैं, जैसे बच्चों की उपलब्धियों को बड़े प्रोत्साहन देते हैं. प्रखर भइया अपनेपन और औपचारिकता के बीच गड़बड़ाए लगातार कुछ बोले जा रहे हैं. यामिनी यहां से ग़ौर कर रही है कि कार की अगली सीट पर बैठी स्त्री भी अपनी जगह से हर्गिज़ नहीं हिली है, ठीक वैसे ही जैसे वो!

रोली के चिप्स का पैकेट ख़त्म हुआ, तो वह बड़े भाई-पापा के पास जाने के लिए ज़ोर-ज़ोर से मचलने लगी, “पापा पास जाना! पापा पास जाना है!

आं आं ऽ ऽ!”

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इससे पहले कि मां उसे अपनी सीट पर खींचती और ज़ोर लगाकर या पीट-पाटकर चुप करा लेती, उसकी ऊंची मचलती आवाज़ अगली कार के आगे तक जा पहुंची. सबने इस तरफ़ देखा. पापा के इशारे पर आदी दौड़ा-दौड़ा आया है और बहन को गोद में उठा लिया है.

उसने भी बच्चों को उधर जाने से रोका नहीं. उसे बस अपने सम्पन्न कस्बाई मायके पक्ष के ताने याद आ रहे हैं. मामा के लड़के की शादी में… चाचा के पोते के दष्टोन में… बुआ की बेटी के चलावे-विदाई में, सब अवसरों पर उसके देवर के विजातीय प्रेम-विवाह में रिश्तेदारों की ज़बर्दस्त दिलचस्पी रही है सालों तक और अब भी इक्का-दुक्का कोई सवाल उछलता ही रहता है उस पर.

‘सुनते हैं मैला ढोनेवालों की जात से है यामी की देवरानी!’, ‘क्या बिन्नू, सनाढ्य ब्राह्मणों के यहां सबसे ही नीच जात! तुम्हारे कुल पर तो ऐसा अमिट दाग़ लग गया जैसे चंद्रमा का कलंक.’, ‘उसका बच्चा सरनेम क्या लिखता होगा दीदी?’, ‘बुरा न मानना बिटिया, पर अगर तुम्हारी देवरानी का तुम्हारी रसोई में आना-जाना, खाना-पीना होता हो, तो बता देना… हमारा धरम तो भ्रष्ट न हो.’ गर्वीली

यामिनी लज्जा से मर-मर जाती है.

ज़ेवर, साड़ी, मेकअप, शहरी जीवनशैली और पति की तरक़्क़ी के क़िस्से, सब धूल हो जाते, जब अपनों के बीच वो अपनी देवरानी की प्रतिनिधि की तरह पाती है ख़ुद को- छोटी जात! और ताबूत की आख़िरी कील थीं वे बातें जो कॉलोनी की पार्लरवाली ने उसे बताई थीं. देवरानी दो कॉलोनियां पार कर यहीं आती थी- शायद जानबूझकर ही… बकौल यामिनी की मम्मी के अनुमान के, ज़रूर वो पैतृक मकान में से, अपने पति को हिस्सा लेने के लिए भड़काया करती होगी.

बहरहाल, एक दशक पुरानी परिचित पार्लरवाली उसकी देवरानी की तारीफ़ कर रही थी कि वो अधिक महंगी सेवाएं लेती है पार्लर की, इसीलिए उससे अधिक मेनटेन’है. आवेश में जब यामिनी बता बैठी थी कि कैसे उस छोटी जात की लड़की ने उसके रत्न जैसे देवर को फंसाया, ब्याह से पहले ही गर्भवती होकर, तो पार्लरवाली ने उसकी देवरानी की उसके बारे में राय उसे बता दी थी, क्योंकि अतिरिक्त सेवाएं लेने के लिए उस दिन यामिनी ज़्यादा देर तक पार्लर में रुकी थी.

‘मामूली गृहिणियां वो भी कस्बों-गांवोंवाले बैकग्राउंड कीं, हम शहरी वर्किंग वुमन्स की क्या बराबरी कर सकती हैं? और इस शहर में इंग्लिश मीडियम से एमबीए करनेवालों के सामने कस्बे-देहात के कॉलेज की एमए हिंदी डिग्री भी कोई डिग्री है. वहां पढ़ाई होती ही क्या है, सर्टिफिकेट भर निकाल लेते हैं बस- अनपढ़ ही समझिए.’

यामिनी के कलेजे में बह्मास्त्र उतरता चला जाता है- अनपढ़ ही समझिए.

सबसे आगेवाली कार का पंचर बन चुका और वो जा चुकी है. प्रखर की कार के टायरों की हवा की भी कब की जांच हो चुकी है और अब पंचर बनानेवाला 10-12 साल का लड़का इस कार के पास आकर पंचर जांच रहा है़, पर दोनों भाई जैसे मौक़ा प माहौल सब भूल गए हैं और एक-दूसरे के साथ के इस हर क्षण को

भर-भर के जी रहे हैं. यामिनी यहां से एक दूसरा आश्‍चर्य भी देख रही है. आदी,

रोली और टीटू- वे बच्चे जो पहले कभी नहीं मिले, पल में ऐसे हिल-मिल गए हैं, जैसे साथ-साथ पले-बढ़े हों. कार में ठहरा वक़्त यामिनी से बर्दाश्त नहीं हो रहा. शायद अगली कार की उस सीट पर बुत बनी बैठी देवरानी से भी न हो रहा होगा.

यामिनी ने अपनी खिड़की के कांच को नीचे किया है और पेट्रोल पंप की

चहल-पहल को नज़रभर देखने लगी है. आसमान में ऐसे भरे बादल घुमड़ आए हैं कि बस अब छलके या तब छलके. हवा का दम सधा हुआ है, जैसे अपने बारे में लिए जा रहे किसी अहम् निर्णय को सुनती कोई घरेलू लड़की. पेट्रोल पंप पर दो-तीन लंबी कतारें हैं. छोटी कारों में अकेले बुज़ुर्ग, स्कूटियों पर सवार खिलखिलाती लड़कियां, स्टाइलिश बाइक पर ब्रांडेड चीज़ों से सजे नौजवान, दोनों तरफ़ से रोशनी देती मोमबत्ती-सी कामकाजी, सुपर वुमन मांएं, जिनकी स्कूटियों में आगे अबोध बच्चे खड़े हैं. इन कच्ची माटी भारतीयों को आधुनिकता अपने संग तराश हाथों से गढ़ रही है- महीन पाश्‍चात्य कारीगरी.

यामिनी का ध्यान फिर इधर को लौट आया है. आदी ख़ुश हो-होकर टीटू को अपनी राखियां दिखा रहा है- झिलमिल लाइटवाली राखी, अपने मनपसंद सुपरहीरो वाली राखी, चांदी की राखी… अपनी एक बहन से अपने मन की तीन-चार राखियां हर साल न बंधवा ले, तो आदी मम्मी का सिर चढ़ा दुलारा कैसे साबित हो?

यामिनी की बारीक़ नज़र उधर की हर एक गतिविधि पर है. अब प्रखर भइया का सेलफोन ये दूसरी-तीसरी बार ऐसे बजा है कि नंबर देखते ही कॉल काट दी है. ज़रूर कार में बैठी पत्नी मौन दबाव बना रही है. अब प्रखर भइया की मुद्रा अनुमति मांगने जैसी दिख रही है, लेकिन इससे पहले कि देवरानी की तरह यामिनी ने भी छुटकारे की राहतभरी सांस ली होती, उसे लगा मलय ने छोटे भाई को कुछ और देर ठहरने को कहा है. अब तीनों बच्चों को अपने पास बुलाया है.

‘हो क्या रहा है वहां?’

दो कारों में से दो बिल्कुल अलग-अलग व्यक्तित्व की स्त्रियां समान उतावलेपन से देख रही हैं.

मलय ने बेटे की कलाई से चांदी की राखी निकाल ली है. अब नन्हीं रोली के हाथों वही राखी टीटू की सूनी कलाई पर बंधवा रहे हैं. अपने पापा के इशारे पर टीटू ने बड़े पापा, बड़े भाई-बहन सबके पैर बारी-बारी से छुए हैं और मलय ने आगे बढ़कर छोटे भाई के बेटे को बांहों में भींच लिया है.

टीटू को गले से लगाए उसके बड़े पापा की बंद आंखों से आंसू बह चले हैं. यही एक पल है… यही जब ज्योत्सना अपने लिए मुख्य परिवार में सच्चा स्वागत देख रही है… यही एक पल जब यामिनी सभी बाहरी अदालतों के परे अपने भीतर है और अपनी ही सफ़ाई में कहने को उसके पास कुछ नहीं! इस पल को यहां से ताकती यामिनी ने ख़ुद को कार में इतना अकेला पाया है, जैसे मरीचिका में भटकती कोई हिरणी अब थकने लगी हो.

प्रखर भइया रुमाल से अपनी आंखों को पोंछ रहे हैं या दूर से बड़ी भाभी को भ्रम हो रहा है? और क्या ये भी सच है जो आंखें देख रही हैं? आधुनिका देवरानी कार से उतरी है. झुककर बड़े भाईसाहब के पैर छुए हैं… और अब मुस्कुराती हुई, इस कार की ओर चली आ रही है.

…इधर बनानेवाले ने पंचर का जोड़ बनाने का काम शुरू कर दिया है.

 

        इंदिरा दांगी

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Usha Gupta

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