कहानी- आम की बर्फी 5 (Short Story- Aam Ki Barfi 5)

अचानक मेरी नज़र पास रखी आम की बर्फी पर पड़ी. दी गई चार में से मात्र एक शेष थी. वहां से मेरी नज़र उठी, तो फिर से युवती के उभरे हुए पेट पर जाकर टिक गईं. पलक झपकते सारा मामला मुझे स्पष्ट हो गया.

गर्भवती शिप्रा के लिए मेरा प्यार-दुलार, केयर सुमित्रा के मन के अपराधबोध को दिन-प्रतिदिन हवा दे रहे थे.

 

 

 

 

 

 

“… कल जब चौथे लॉकडाउन की घोषणा हुई, तो फोन पर मुझसे बतियाते यह फूट-फूटकर रो पड़ी थी. डर के साए में नई जगह अकेली रहती थक गई थी बेचारी. राशन पानी तो बेटा किसी तरह पहुंचा रहा है, पर… बच्ची ही तो है आख़िर… मां तो रही नहीं इसकी. मैंने सुझाया तेरे बाप के पास चली जा, पर वो कौन-सा धन्ना सेठ है. रोज कुआं खोदकर पानी पीनेवाले लोग हैं. मजदूरी की तलाश में वो तो ख़ुद मारा-मारा फिर रहा है…”
अचानक मेरी नज़र पास रखी आम की बर्फी पर पड़ी. दी गई चार में से मात्र एक शेष थी. वहां से मेरी नज़र उठी, तो फिर से युवती के उभरे हुए पेट पर जाकर टिक गईं. पलक झपकते सारा मामला मुझे स्पष्ट हो गया.
गर्भवती शिप्रा के लिए मेरा प्यार-दुलार, केयर सुमित्रा के मन के अपराधबोध को दिन-प्रतिदिन हवा दे रहे थे. ये बर्फी अवश्य इसने अपनी बहू के लिए रख छोड़ी थीं और रात के अंधियारे में इसे ये ही खिलाने बुलाया था. भावनाएं अमीरी-गरीबी की मोहताज़ नहीं होतीं. मेरा मन आत्मग्लानि से पानी-पानी हो उठा. मुझे एक बार भी इसकी बहू का ख़्याल क्यों नहीं आया? मैंने कभी उसके बारे में इससे पूछा ही नहीं कि वह कहां है, किस हाल में है? बस अपने परिवार में मगन रही… इसे मोबाइल दिया था, तो यह सोचकर कि कभी भी फोन कर बुला सकूं. इस त्रासदी के समय सर्वेंट क्वार्टर में रहने की इजाज़त दी, तो अपने स्वार्थ के लिए. यदि यह अपनी गर्भवती बहू को लेकर आती, तो हम शायद इसे नहीं रखते. शायद क्या निश्चित ही रवाना कर देते.

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इस भयावह त्रासदी के समय लोग क्या कुछ नहीं कर रहे हैं! यह सोचकर कि ज़िंदगी तब बेहतर होती है, जब आप ख़ुश होते हैं, लेकिन ज़िंदगी तब बेहतरीन होती है, जब आपकी वजह से लोग ख़ुश होते हैं. वे करोड़ों रुपए, खून, प्लाज्मा, वेंटीलेटर्स, पीपीई किट जाने क्या-क्या दान कर रहे हैं! माना हमारी उतनी औकात नहीं है, लेकिन किसी की मदद करने के लिए धन से ज़्यादा एक अच्छे मन की ज़रूरत होती है… मैंने राजन की आंखों में झांका. जानती थी मेरे मन में चल रहे झंझावात को वे अक्षरशः समझ रहे हैं. उनकी मूक सहमति पाकर मैंने सहमी-सी खड़ी सुमित्रा की बहू के सिर पर अपना वरदहस्त रख दिया. “डरने की आवश्यकता नहीं है. तुम जब तक चाहो अपनी सासू मां के साथ यहां रह सकती हो.”
आम की बर्फी की सी मिठास मेरे तन-मन में घुलती मुझे अद्भुत तृप्ति का एहसास करा रही थी. मानो कह रही हो कोमल होना हमारी कमज़ोरी नहीं ताक़त है.

अनिल माथुर

 

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