कहानी- आम्रपाली 6 (Story Series- Aamrapali 6)

“बहुत चाहा शिव ने कि अपने ठीक रहते अपने जीवन में ही तुम सबको अपने जीवन का वह राज़ बता दे, लेकिन बेचारा हिम्मत न कर सका और अपने ही बच्चों की नाराज़गी की डर के आगे हार गया…”

”कैसा राज़…” शंकर आश्चर्य से बोला. समर, वरूण व शालिनी भी उत्सुकता से उनकी तरफ़ देखने लगे.

 

… देव ने सरस से मैनेजर और डाॅक्टर के फोन नंबर लेकर काॅल किया तो सरस की बात सच थी. उसके बाद केमिस्ट का नाम पूछ कर वहां पता करवाया, तो वह भी सच निकला. सरस और रचिता की कहानी चाहे सच प्रमाणित हो गई थी, पर कोई भी अभी तक उन पर पूर्ण रूप से विश्‍वास नहीं कर पा रहा था. सभी समझ रहे थे कि यह सचित्र कहानी गढ़ी गई है.
“पुरूराज, ज़रा पता करो माली को होश आया या नहीं. होश में आने पर जब तक उसके बयान न हो जाए, किसी को उससे मिलने न दिया जाए.” कहकर देव बाहर की तरफ मुड़ गया.
“जी सर, वहां पर पुलिस बल तैनात है.” पुरू बोला.
“मिस्टर सरस आपको और रचिता को तब तक हमारे साथ चलना पड़ेगा.” देव बोला.
“लेकिन क्यों इंस्पेक्टर…”
“क्योंकि गवाहों के बयानों के कारण आप शक के घेरे में हैं.” सरस बहुत कुछ बोलना चाहते हुए भी कुछ नहीं बोल पाया. उसने एक नज़र अभय बाजपेयी पर डाली और पुलिसवालों के साथ चला गया.
दो पुलिसवालों को बाहर तैनात कर शेष पुलिस की टीम वापस चली गई.
शिवप्रसादजी की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार, उनकी मृत्यु कनपटी पर घातक चोट के कारण हुई थी. अज्ञात के ख़िलाफ़ केस दर्ज कर लिया गया था. लेकिन रचिता और सरस शक के घेरे में थे. वे पुलिस के पहरे में थे. जगजीवन को अभी तक होश नहीं आया था और डाॅक्टर के अनुसार उसके चांसेज भी कम थे. सरस और रचिता अपने पक्ष में कुछ भी कह नहीं पा रहे थे.
सारा परिवार आज एक साथ शिवप्रसादजी के कमरे में बैठा सोच में डूबा था. बहुत देर से तर्क-विर्तक चल रहा था कि आख़िर पिताजी ने वसीयत कहां रख छोड़ी है.
“पिताजी ने एक बार बहुत पूछने पर किसी तरह बताया था कि उन्होंने वसीयत की है, लेकिन मैंने दिल्ली में अपने घर में सब जगह ढूंढ़ ली, मुझे तो कहीं नहीं मिली.” शंकर बोला.
“मैं तो सोचता था कि वसीयत ज़रूर आपके पास होगी, लेकिन आपके पास नहीं है तो फिर कहां है?” समर बोला.
”हां, अगर आपके पास नहीं, तो फिर कहां है?” वरूण और शालिनी दोनों एक साथ बोले.
”वसीयत मेरे पास है.” एकाएक चुपचाप बैठे अभय बाजपेयीजी अचानक बोले. वे चुपचाप एक तरफ़ बैठे इतनी देर से सबकी बातें सुन रहे थे.
”आपके पास…” चारों भाई-बहन उनकी बात सुनकर चौंक गए, “लेकिन आपके पास क्यों?”
”इसके पीछे भी एक दर्दभरी कहानी है, जो अब तुम लोगों को बतानी ही पड़ेगी.” अभय बाजपेयी सबके चेहरों पर एक नज़र डालते हुए बोले, “तुम्हारे पिता शिवप्रसाद मेरे बहुत गहरे दोस्त थे, इस बात को तुम सब हमेशा से जानते हो, लेकिन हमारा रिश्ता कितना गहरा था. आज तुम्हें पता चल जाएगा…” वे उठकर दो कदम चले फिर वापस बैठ गए. दो मिनट बाद उन्होंने फिर से कहना प्रारंभ किया,
”बहुत चाहा शिव ने कि अपने ठीक रहते अपने जीवन में ही तुम सबको अपने जीवन का वह राज़ बता दे, लेकिन बेचारा हिम्मत न कर सका और अपने ही बच्चों की नाराज़गी की डर के आगे हार गया…”
”कैसा राज़…” शंकर आश्चर्य से बोला. समर, वरूण व शालिनी भी उत्सुकता से उनकी तरफ़ देखने लगे.
”सरल स्वभाव का था मेरा दोस्त. बेहद भावुक मिजाज़ का. हरदम प्रसन्न रहने वाला. ख़ुश था अपनी पत्नी व चारों बच्चों के साथ, इस आम्रपाली में, लेकिन उसकी ख़ुशियों को ग्रहण लग गया उस वक़्त जब डाॅक्टर ने जया भाभी यानी तुम्हारी मां को अंतिम स्टेज का कैंसर बताया. उसने बहुत कोशिश की उन्हें बचाने की, पैसा पानी की तरह बहाया… लेकिन वे हम सबको छोड़कर चली गईं.”
पलभर के लिए चारों भाई-बहन की आंखों में मां के दिवंगत होने का दृश्य सजीव हो उठा, “तुम लोग अपनी किशोरावस्था से गुज़र रहे थे… थोड़े समय बाद तुम चारों तो अपनी पढ़ाई-लिखाई व अपनी मित्र मंडली के साथ व्यस्त होने लगे, लेकिन शिव की ज़िंदगी अकेली होने लगी. तुम्हारी बुआ ने एक बार शिव की दूसरी शादी की पेशकश की, तो तुम चारों भाई-बहन ने इसका पुरज़ोर विरोध किया था. तुम सब उस समय छोटे थे, लेकिन अब शायद शिव की जीवनसाथी की ज़रूरत को महसूस कर पाओगे.” अभय बाजपेयी थोड़ी देर के लिए ख़ामोश हो गए. चारों भाई-बहन को उनकी बात उचित लग रही थी. यहां तक कि कमरे में उपस्थित नई पीढ़ी के बच्चों को भी. शिव किसी तरह अकेले ही अपनी ज़िंदगी के पन्ने पलटने लगा. उस समय जगजीवन ने उसका बहुत ध्यान रखा और तुम बच्चों का भी.”
”इसमें कोई शक नहीं, इसीलिए पिताजी उसे कुछ रूपया देने को बोलते रहे हैं, पर अब तो जगजीवन भी…” समर ने बात अधूरी छोड़ दी.
”लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंज़ूर था… उन्हीं दिनों ऑफिस में ज्योति शिव के संपर्क में आई. वह गरीब साधारण-सी लड़की अपनी मां के साथ रहती थी और उसके ऑफिस में क्लर्क थी. दो अतृप्त आत्माओं की भावनात्मक व शारीरिक ज़रूरतें उन्हें पास आने के लिए मजबूर करने लगी और ज्योति गर्भवती हो गई. शिव जैसा आदर्श पुरुष किसी को मंझधार में नहीं छोड़ सकता था. उसने ज्योति से पंडित को बुलाकर शादी कर ली. गवाह के रूप में मैं, फोटोग्राफर व ज्योति की मां ही थी. मैंने शिव को ज्योति को आम्रपाली ले जाने के लिए बहुत कहा, पर तुम बच्चों की नाराज़गी का डर वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था, इसलिए उसने बाहर ही ज्योति व उसकी मां के लिए रहने का अच्छा प्रबंध कर दिया. हर तरह से देखभाल की. जब भी वह घर से लंबे टूर पर जाता, तो इसी बहाने कुछ दिन ज्योति व अपने बेटे के साथ बिता आता.”

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चारों भाई-बहन अपने दिवंगत पिता के जीवन की इस फिल्मी-सी कहानी को चुपचाप सुन रहे थे कि बेटे की बात सुनकर चौंक गए.
”बेटा? लेकिन कहां है वह बेटा… और पिताजी की दूसरी पत्नी…” शालिनी अभी भी इस कहानी पर विश्‍वास नहीं कर पा रही थी.
”ज्योति भी बहुत ज़्यादा साथ नहीं निभा पाई शिव का और बेचारा शिव फिर एक बार अकेला हो गया… थोड़े समय बाद उसकी मां भी चल बसी. अब शिव के सामने बेटे के लालन-पालन की समस्या पैदा हो रही थी. उस समय वह लगभग 12 साल का हो गया था. आख़िर शिव ने उसे हाॅस्टल में डाल दिया. वह पढ़ने में बेहद कुशाग्र बुद्वी का निकला. इंजीनियरिंग व एमबीए करके उसकी नौकरी मल्टीनेशनल कंपनी में लग गई. वह लंदन चला गया. अपनी साथ की लड़की से विवाह भी कर लिया, लेकिन शिव के हृदय में एक कसक हमेशा बनी रही कि वह ज्योति व उसके बेटे के साथ एक पिता व पति के रूप में न्याय नहीं कर पाया. भले ही उसने दूर से उसकी पूरी परवरिश की लेकिन पिता का प्यार नहीं दे पाया. बेटे का हक़ नहीं दे पाया. उसे और उसकी मां को आम्रपाली में प्रवेश नहीं दिला पाया.” कहते-कहते अभयजी की आंखें दोस्त की मजबूरी से अनायास ही भर गईं.
चारों भाई-बहन पिता की ज़िंदगी के इतने बड़े रहस्योद्घाटन से हतप्रभ थे.
“लेकिन वह बेटा कहां है और आपके पास क्यों रखवाई पिताजी ने वसीयत.” वरूण बोला.
“इसलिए क्योंकि यह आम्रपाली तुम्हारे पिताजी ने अपने उस बेटे के नाम किया था. बाकि की प्राॅपर्टी, बैंक बैंलेस वगैरह सब तुम चारों के नाम हैं.”
“क्या?” चारों के मुंह से एक साथ निकला, “लेकिन पिताजी ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया?”
“शायद ऐसा करके वे अपने उस बेटे के प्रति किए अन्याय का प्रतिकार करना चाहते थे. ज्योति के प्रति अनजाने में हुए अन्याय के पाप को धोना चाहते थे. उन्हें आम्रपाली लाने की अदम्य इच्छा होते हुए भी आम्रपाली नहीं ला पाया था मेरा दोस्त. बस, ऐसा करके अपनी आत्मा को शांति देना चाहता था, पर तुम सब इस पर ऐतराज करोगे इस बात का अंदेशा था उसे, इसलिए वसीयत मेरे पास रख छोड़ी.”
“लेकिन कहां है वह वसीयत… और पिताजी का वह बेटा…” शालिनी ने पूछा.
“वसीयत तो फिर दोबारा बदल दी गई है.” अभयजी बोले.
“दोबारा बदल दी गई, लेकिन किसने बदली पिताजी की वसीयत.” शालिनी आश्चर्य से बोली.
”उसी ने, जिसके नाम शिव ने वसीयत की थी यानी तुम्हारे चौथे भाई ने.”
“चौथे भाई ने… अब किसके नाम कर दी…” शंकर मायूसी से बोला.
“तुम सबके नाम यानी कि एक परिवार की संपत्ति रहेगा अब आम्रपाली. परिवार का जो सदस्य यहां रहना चाहता है रह सकता है.” सब आश्चर्यचकित हो अभयजी का चेहरा देख रहे थे.

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“लेकिन ऐसा क्यों किया उसने…” वरूण बोला.
“क्योंकि उसे आम्रपाली नही, बल्कि आम्रपाली में रहनेवाला अपना परिवार चाहिए था, जो उसे कभी मिला ही नहीं… वह और उसकी पत्नी दोनों उच्च पद पर कार्यरत हैं. उन्हें धन-संपत्ति का कोई मोह नहीं. जब मैने उसे आम्रपाली, शिव की उसके व उसकी मां के प्रति भावना के बारे में बताया, तो वह द्रवित हो गया. वह पिता से मिलने के लिए तड़प उठा, लेकिन जब तक उसके आने का पक्का हुआ, तब तक शिव को पैरालिटिक अटैक पड़ गया. यह सोच कर वह रुक गया कि कुछ कंडीशन सुधरने पर जाना ठीक रहेगा. इसी बीच चिंकी की शादी तय हो गई और शिव की इच्छा पर यह शादी आम्रपाली में होनी तय हो गई. उसे मानो मनचाही मुराद मिल गई. उसने आने का प्लान कर लिया और मुझसे इच्छा ज़ाहिर की कि उसे आम्रपाली नहीं चाहिए, बल्कि अपने भाई-बहन चाहिए, जिनके प्यार व सामीप्य के लिए वह जीवनभर तड़पता रहा. मैंने इसमें उसकी मदद की और उसे बहाने से इस घर में ले आया और साथ ही वसीयत बदलने में भी मदद की.”
”इस घर में… मतलब कि आम्रपाली में?” सबके मुंह से एक साथ निकला, ”लेकिन कहां है वह?”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…


सुधा जुगरान

 

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