कहानी- आम्रपाली 7 (Story Series- Aamrapali 7)

“लेकिन आपने यह सब पहले क्यों नहीं बताया. हमारी ग़लती से उस पर केस भी चल सकता है.”

“कोई मौक़ा ही नहीं बन पा रहा था. सोचा था शादी के बाद बताऊंगा, लेकिन शिव की हत्या व जगजीवन की हत्या के प्रयास ने गुत्थियां उलझा दीं.”

 

… “इतने दिनों से तुम्हारे साथ रहा… शादी का सारा काम संभाला… तुम लोगों के साथ परिवार के सदस्य की तरह रहा… तुम सबके प्यार-दुलार पाने के लिए तरसता रहा.”
“आप कहीं सरस की बात तो नहीं कर रहे.” एकाएक शंकर बोला.
“हां शंकर, वे सरस और रचिता ही हैं, जो तुम्हारे घर की शादी को किसी प्रोफैशनल्स की तरह नहीं, बल्कि चाचा-चाची की तरह निभा रहे थे.”
शंकर के सामने सब कुछ चलचित्र की तरह घूम गया. सरस-रचिता का बार-बार ख़र्चे को लेकर आश्वस्त करना… सरस का उस दिन रात में पिताजी से कुछ कहने की कोशिश करना… हर ज़िम्मेदारी को आगे बढ़कर निभाना… सबके साथ ख़ुशियां मनाना… होटल की बजाय घर पर ही रहना… अपनी मां का बड़ा-सा फोटो कमरे में रखना… ओह, इतना कुछ, और उन्हें पता भी न चला…
“लेकिन आपने यह सब पहले क्यों नहीं बताया. हमारी ग़लती से उस पर केस भी चल सकता है.”
“कोई मौक़ा ही नहीं बन पा रहा था. सोचा था शादी के बाद बताऊंगा, लेकिन शिव की हत्या व जगजीवन की हत्या के प्रयास ने गुत्थियां उलझा दीं.”
तभी शंकर के फोन की घंटी बज गई. शंकर ने काॅल रिसीव किया. हस्पताल से फोन था. जगजीवन को होश आ गया था और इस वक़्त वह अंदर इंस्पेक्टर देव को अपना बयान दे रहा था.
“ओह थैंक गाॅड.” शंकर के मुंह से निकला, “अब सब ठीक हो जाएगा… आख़िर वह कौन है, जिसने पिताजी को मारा है, इसका भी पता चल जाएगा.” जगजीवन के होश में आने से सब को उलझने सुलझती नज़र आने लगी थी. तीनों भाई हस्पताल की तरफ़ चल दिए.
तीनों भाई हस्पताल में दाख़िल हुए तो जगजीवन के बयान ख़त्म हो गए थे. डाॅक्टर उसे अटैंड कर रहे थे. देव अपने अस्सिटेंट पुरू के साथ हस्पताल के काॅरिडोर में खड़ा कुछ डिस्कस कर रहा था. उन्हें देख कर बोला, “अच्छा हुआ आप लोग आ गए… जगजीवन ने बयान दिया है कि उस दिन उसका दामाद बदमाश रंजीत उसके कमरे में आया था…” कहते हुए देव ने जो भी इस दिन हुआ था और जगजीवन ने बताया था सब कुछ तीनों भाईयों को बताया.
“ओह, यह सब तो हम सोच भी नहीं सकते थे… अगर जगजीवन को होश नहीं आता, तो दोनों हत्यायों का रहस्य, रहस्य ही रह जाता, क्योंकि रंजीत आम्रपाली के पीछे, घने पेड़ों की तरफ़ की दीवार से अंदर आया और गया… दामाद की बात पर जगजीवन बहुत शोर भी नहीं मचा पाया, लेकिन उसे भी नहीं पता रहा होगा कि वह इतना बड़ा कांड कर देगा.” शंकर बोला.
“हां, उसे शिवप्रसादजी की हत्या का पता नहीं था… वह चोरी तक की ही बात समझकर रंजीत से भिड़ा था और रंजीत ने उसे मारने की कोशिश कर दी…” देव बोला.
“लेकिन अब रंजीत कैसे पकड़ा जाएगा…” समर बोला.

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“जगजीवन ने उसके 2-3 ठिकानों के बारे में बता दिया है… उन जगहों पर पुलिस टीम रवाना हो गई हैं… उम्मीद है जल्दी ही पकड़ा जाएगा.” देव बोला.
“सर, एक निवेदन था. अब जब सब कुछ साफ़ हो गया है, तो हमें सरस पर कोई शक नहीं है. उसे छोड़ दीजिए.” शंकर बोला.
“पहले रंजीत को तो पकड़ में आने दो.” कहकर देव बाहर की तरफ़ चला गया.
तीनों भाई डाॅक्टर का इजाज़त लेकर जगजीवन से मिलने गए. जगजीवन उन्हें देखकर रोने को हो आया. उसे शिवप्रसादजी की इतनी दर्दनाक मौत का बहुत ग़म था, रंजीत के कृत्य से शर्मिंदा हो उसने किसी तरह दोनों हाथ उठाकर जोड़ दिए. शंकर ने उसके हाथ पकड़ मूक सांत्वना दी,
जगजीवन से मिलने के बाद तीनों भाई घर चले गए. सारा परिवार शादी के बाद की धमाचौकड़ी व शिवप्रसादजी की मौत के बाद एक साथ ख़ुशी व ग़म के झूले में झूलते नजदीक आ रहे थे. सरस के प्रति आर्कषण का भाव सबके मन में जन्म ले रहा था. आर्कषण धीरे-धीरे स्नेह में परिवर्तित हो रहा था. चारों भाई-बहन अब उम्र के ख़ास मुक़ाम पर पहुंच चुके थे और पिता की उस समय जीवनसाथी के जाने के बाद के अकेलेपन को समझ रहे थे. लेकिन समय तो अब लौट नहीं सकता. उस ग़लती को सुधारा जा सकता है, सरस व रचिता को अपनाकर. वह जिस प्यार से ज़िंदगीभर वंचित रहा, रिश्तों की वह गर्माहट उसे देकर. उन्हें इंतज़ार था कि कब रंजीत पकड़ा जाए और सरस व रचिता घर आ सकें.
अगले दिन की सुबह यूं तो सबके लिए एक आम सुबह थी, पर आम्रपाली की वह एक ख़ास सुबह थी. जब शंकर के मोबाइल ने बजकर यह ख़ुशख़बरी सुनाई कि रंजीत पकड़ा गया और उसने अपना ज़ुल्म कबूल कर लिया. उसे आलमारी की चाबी का सुराग घर में झाडू-पोंछा लगानेवाली नौकरानी से बातों बातों में पता चला था. वे आकर सरस व रचिता को घर ले जा सकते हैं.
“मैं जल्द से जल्द आता हूं…” शंकर को लगा, एक पहाड़-सा बोझ था हृदय पर, अचानक हल्का-फुल्का हो गया. सबने आम्रपाली को सरस के स्वागत के लिए तैयार किया. सरस व रचिता के कमरे को सजाया. ज्योति की फोटो को हाॅल में शिवप्रसादजी व जया की फोटो के साथ दीवार पर टांग दिया. शंकर और अभय बाजपेयीजी पुलिस चौकी चले गए.
सरस जब शंकर के सामने आया, तो आज शंकर की आंखों में अपने लिए बेइंतहा अनुराग पाकर उसकी आंखे छलछला गई. बड़ा भाई पिता समान होता है, यह सोच कर वह शंकर के पैरों में झुक गया. शंकर ने उसे कसकर बहुपाश में समेट लिया.
“मुझे माफ़ कर दो सरस. मेरे बिना बात के शक के कारण तुम्हें बहुत कष्ट उठाने पड़े.”
“बस भैया, अब पुरानी बातें हम सब भूल जाए. किसी की भी कोई ग़लती नहीं थी. परिस्थितिवश बहुत-सी बातें हो जाती हैं.”
“चलो घर चलें…” शंकर पैर छूती रचिता के सिर पर हाथ रखता हुआ बोला.
घर में पूरे परिवार ने आम्रपाली में उनका हृदयतल से स्वागत किया. हाॅल में पहुंचते ही मां-पिताजी की फोटो पर नज़र पड़ गई. आज आम्रपाली ने सिर्फ़ उसे ही नहीं, बल्कि उसकी मां को भी शिवप्रसादजी की पत्नी के तौर पर स्वीकार कर लिया था. उसने परम संतुष्टी से रचिता की तरफ़ देखा, रचिता ने धीरे से मुस्कुराकर गर्दन हिला दी. एक वहीं तो जानती थी, सरस के अंदर की बेचैनी को, जिसे आज करार मिल गया था. सरस पहले भी उन्हीं के बीच रह रहा था, पर बाहरी व्यक्ति की तरह, अब घर का सदस्य था. सबमें उन दोनों पर अपना प्यार उंडेलने की होड़ मची थी. रचिता व सरस उस प्यार में डूब-उतरा रहे थे.

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अगले दिन सरस को निकलना था. दिल्ली से उसकी फ्लाइट थी. दिल्ली तक टैक्सी से जाना था. सामान कार में लद चुका था. सब सरस व रचिता को विदा देने गेट पर खड़े थे. सबके गले मिल कर सरस शंकर के पैर छूकर गले लगा, तो शंकर उसे गले लगाकर बोला,
”सरस, यह आम्रपाली तुम्हारा ही है और तुम्हारा ही रहेगा और साथ ही इसमें रहनेवाले भी. तुम वादा करो कि साल में एक बार भारत ज़रूर आओगे और हम सपरिवार आकर आम्रपाली में रहकर रिश्तों की डोर को मज़बूत करेंगे. यह आम्रपाली हमारे परिवार की शान व पहचान हमेशा बना रहेगा. तुमने हमको अनजाने में बहुत कुछ सिखा दिया. हमारे पास सारे रिश्ते थे और हम उन्हें तवज्जो न देकर, आम्रपाली के मिट्टी, ईंट-पत्थर में निहित स्वार्थ व संपत्ति को ही सर्वोपरी मान रहे थे. भूल रहे थे कि आम्रपाली का वजूद हम से है. अब हम प्यार-स्नेह की इस विरासत को, परिवार व रिश्तों के रूप में संभाल कर रखेंगे.”
“ठीक है भैया मैं वादा करता हूं और वैसे भी आम्रपाली में मेरा परिवार मुझे हमेशा भारत आने के लिए आवाज़ देगा, तो मैं रुक कहां पाऊंगा.” सरस ने कहा, तो सबकी आंखें भीग गईं. टैक्सी चली जा रही थी. लेकिन परिवार के सभी सदस्य अभी भी अपनी गीली हो आई आंखों को पोंछ रहे थे.


सुधा जुगरान

 

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Usha Gupta

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