कहानी- अग्नि स्नान 1 (Story Series- Agni Snan 1)

 

“कितनी बार कहा है कार धीरे चलाओ… पर वह मेरी बात सुनता ही कहां है?” अनुराधा कहती जा रही थी, रोती जा रही थी.
अस्पताल पहुंचते ही जिस हृदय विदारक सच से सब का सामना हुआ, उस सच ने पूरे परिवार को हिला कर रख दिया था.
“एसिड अटैक!” पर क्यों..? किसने..? कई प्रश्न थे जिसका उत्तर किसी के पास नहीं था. इस बात से केवल समीर पर्दा उठा सकता था, जो अभी गहन चिकित्सा केंद्र में जीवन और मृत्यु से जूझ रहा था.

 

 

 

 

 

“ऐसा कैसे हो सकता है? अभी-अभी तो मेरा बेटा हंसता-मुस्कुराता ऑफिस के लिए निकला था… फिर कैसे?.. कैसे अस्पताल पहुंच गया?” रो-रोकर अनुराधा का बुरा हाल था. कुछ देर पहले ही अस्पताल से फोन आया था कि समीर के साथ एक दुर्घटना हो गई है जल्द से जल्द वह लोग अस्पताल पहुंचें. पति और दोनों बेटियों के साथ वह भागती हुई सिटी हॉस्पिटल पहुंची. अनुराधा के पति बैंक मैनेजर थे और दोनों बेटियां दिल्ली में ही ससुराल में सुखी जीवन जी रही थीं. सुनते ही सब संज्ञाशून्य से अस्पताल की ओर दौड़ पड़े थे. पिछले एक महीने से अनुराधा के घर में आनंद उत्सव जैसा माहौल था. आख़िरकार उनके इकलौते बेटे की शादी दो महीने बाद होनेवाली थी. परसों ही धूमधाम से समीर और सुरभि की सगाई हुई थी. समीर एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था और सुरभि एमबीए के अंतिम वर्ष की छात्रा थी. दोनों परिवारों ने तय किया था कि सुरभि की परीक्षाएं होते ही विवाह संपन्न हो जाएगा. समीर और सुरभि की जोड़ी बहुत सुंदर लग रही थी. अनुराधा का हृदय आनंद हिंडोले झूल रहा था कि ये अप्रत्याशित घटना घट गई थी.

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उसे लग रहा था था कि समीर की कार का एक्सीडेंट हो गया है.
“कितनी बार कहा है कार धीरे चलाओ… पर वह मेरी बात सुनता ही कहां है?” अनुराधा कहती जा रही थी, रोती जा रही थी.
अस्पताल पहुंचते ही जिस हृदय विदारक सच से सब का सामना हुआ, उस सच ने पूरे परिवार को हिला कर रख दिया था.
“एसिड अटैक!” पर क्यों..? किसने..? कई प्रश्न थे जिसका उत्तर किसी के पास नहीं था. इस बात से केवल समीर पर्दा उठा सकता था, जो अभी गहन चिकित्सा केंद्र में जीवन और मृत्यु से जूझ रहा था.
एसिड अटैक इन दो शब्दों ने सबको सन्न कर दिया था. अनुराधा की विह्वलता की सीमा नहीं थी. कई बार उसने समीर के कमरे की शीशे की छोटी-सी खिड़की से झांक कर देखा था. आईसीयू के घने सन्नाटे में बिस्तर पर जडवत पड़े समीर को देखकर उनका कलेजा मुंह को आ रहा था. लंबा-चौड़ा, गोरा-चिट्टा समीर अनायास भाग्य की कठिन विडंबना से विकृत स्वरूप में आने पर विवश हो गया था.
“दाहिने तरफ़ का चेहरा, हाथ और सीने के साथ-साथ दाहिनी कमर के पास भी चमड़ी झुलस गई है. ईश्वर की कृपा मानिए आंखें बच गईं.. और श्वसन तंत्र को अधिक नुक़सान नहीं हुआ है.. हम पूरी कोशिश कर रहे हैं समीर स्वस्थ हो जाएगा, पर अभी आप सभी को बहुत दिनों तक धैर्य रखना होगा…“ डॉक्टर ने समझाया था, तो फूट-फूट कर रोती अनुराधा के मन में फिर यह प्रश्न कौंधा था, ‘आख़िर क्यों..? और किसने..? कौन ऐसा व्यक्ति है, जिसे समीर से इतनी दुश्मनी हो गई कि उसने उस पर इस तरह से वार किया? सीधा-सादा, दुनिया की सभी बुरी आदतों से निर्लिप्त मेरा इतना प्यारा बेटा.. आख़िर किसने एसिड अटैक किया?..’ अनुराधा सोचती जाती थी और उसके मन-मस्तिष्क में जैसे बवंडर-सा चलता जाता था.

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समीर के बारे में सुनकर सुरभि और उसका परिवार भी भागता हुआ अस्पताल पहुंचा था. सबके मन में सवाल था कि आख़िर किसने एक हंसते-खेलते परिवार को दुख के अगाध सागर में डूबा दिया था. पुलिस भी पूरे ज़ोर-शोर से आरोपी की तलाश में लग गई थी. घटना को एक सप्ताह बीत गया था, पर अब तक पुलिस के हाथ में कोई सुराग नहीं लगा था.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

डॉ. निरुपमा राय

 

 

 

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