समीर का दर्द से छटपटाना, जल बिन मछली की तरह तड़पना अनुराधा और उसके पूरे परिवार को खंड-खंड में तोड़ता था. पर उससे भी ज़्यादा खंड में तोड़नेवाली बात यह थी कि एक-दो दिन अस्पताल आने की औपचारिकता निभाकर सुरभि और उसके परिवारवाले दोबारा अस्पताल में नहीं आए थे. कभी-कभार फोन करके हालचाल पूछ लिया करते थे. एक महीना बीतते-बीतते फोन आने भी कम हो गए थे. आख़िर सुरभि और उसके परिवारवालों के मन में क्या था?
“हमें इस शादी के बारे में दोबारा सोचना चाहिए. एक मां होने के नाते मैं अपनी बेटी का जीवन सूली पर कैसे चढा सकती हूं..?”
“हां सुनंदा! तुम ठीक कह रही हो. मैं भी इस बारे में सोच रहा हूं!आख़िर सुरभि हमारी इकलौती बेटी है, हमने जो सोचकर विवाह तय किया था अब वैसी बात रही नहीं है… पता नहीं समीर कब तक बिस्तर से उठ सकेगा.. क्या वह सही रूप से अपना जीवन जी सकेगा? हमें इन सब बातों पर विचार करना होगा.“
दरवाज़े की ओट में खड़ी सुरभि माता-पिता की बातें सुन रही थी. उसके अंतर्मन में बहुत कुछ चल रहा था. एक तरफ़ उसका मन माता-पिता की दुविधा को अच्छी तरह समझ रहा था, तो दूसरी तरफ़ समीर के प्रति उसे गहरी सहानुभूति थी. पर संपूर्ण जीवन किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में… जो..? आगे वह सोच नहीं पा रही थी. माता-पिता ने उसे सब कुछ भुला कर आगे आनेवाली परीक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा, तो वह फिर से कॉलेज आने-जाने लगी. वहां भी लोग कई तरह के सवाल पूछते, जिनका उत्तर सुरभि के पास नहीं था. ऊपर से वह पुलिस के सवालों से भी तंग थी. कई बार पुलिस उससे उसके और समीर के रिश्ते, विगत में उसका कोई बॉयफ्रेंड या समीर की कोई गर्लफ्रेंड तो नहीं थी… इन सब सवालों पर कई बार पूछताछ कर चुकी थी, जिससे वो काफ़ी परेशान हो गई थी. पर वह करती भी क्या. “मनुष्य परिस्थिति का दास होता है…” ठीक ही कहती थी दादी, वह सोचती.
दोनों परिवार भीषण उहापोह में थे. समीर का इलाज बहुत अच्छी तरह से चल रहा था. माता-पिता ने पैसा पानी की तरह बहा दिया था. तरह-तरह की दवाइयां, प्लास्टिक सर्जरी किसी चीज़ में कोई कमी नहीं रखी थी. एक महीने में तीन सर्जरी हो चुकी थी, जिसने समीर को जीवन से विरक्त-सा बना डाला था. और ऐसी स्थिति में सुरभि का उसके पास नहीं आना और ना बात करना उसे बेहद खल रहा था. जिस दिन समीर बात करने लायक हुआ पुलिस ने उससे भी गहन पूछताछ की, पर वहां से भी कोई हल नहीं निकला.
समीर ने भीगी आंखों से मां को देखते हुए किसी तरह धीमी आवाज़ में कहा, “मैंने किसका क्या बिगाड़ा था मां! मैंने जीवन में आज तक किसी से ऊंची आवाज़ में बात भी नहीं की….तुम तो जानती हो… फिर मेरा दुश्मन कौन है… जिसने मेरी यह दुर्दशा कर दी?.. चेहरा देखा है मेरा… कैसा टेढा हो गया है… मेरे जिस सुंदर हाथ-पांव को तुम भगवान के हाथ-पांव कहा करतीं थीं… वह देखो… जलकर कैसे काले हो गए.. तुम्हारे बेटे ने अग्नि स्नान किया है मां! अग्नि स्नान!”
समीर फूट-फूटकर रो पड़ा था और अनुराधा का हृदय जैसे छलनी हो उठा था. ठीक ही तो कह रहा है समीर. उसने सचमुच अग्नि स्नान किया है…
डॉ. निरुपमा राय
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