कहानी- किटी पार्टी 6 (Story Series- Kitty Party 6)

 

चुभते प्रश्न ने माहौल को भारी बना दिया था… किटी पार्टी में आज ससुराली निंदा रस में डूबने की इच्छा मर-सी गई थी. कोई कहे न कहे पर अनुभा का प्रश्न आईना दिखाता कह रहा था कि नारी की कोमलता तभी सार्थक है, जब वह हर भूमिका में मन की कोमलता को कायम रखे. जब फ़िक्र की रिमझिम में सास अपनी बहू के लिए और बहू अपनी सास के लिए भीगे तभी पूर्ण रूप से कहा जा सकेगा कि नियति ने नारी को कोमल मन प्रदान किया है.

 

 

 

 

“…मेरा किराएदार नील मेहरा शादीशुदा तीस-पैतीस साल का युवक है. जब कभी नील के माता-पिता उनके साथ रहने आते घर में कलह-सी रहती थी. उसकी पत्नी रोशनी, जो अपने मम्मी-पापा के आने से ख़ुशी से फूली नहीं समाती थी, उसका मुंह सास-ससुर के आने से फूल जाता… मैंने कई बार नील को अपने ही माता-पिता के साथ बड़ा रूखा-सा व्यवहार करते देखा था.
जब कभी नील को अपने माता-पिता के संग बेरुखी से पेश आते देखती, तो यही सोचती कि इसमें संस्कार नहीं है. अभी डेढ़ साल पहले उसके माता-पिता कुछ महीने इनके पास रहकर अपने गांव चले गए थे. क़रीब छह महीने पहले गांव में ही उसकी मां का देहांत हो गया. मां के देहांत के बाद मैंने नील को बहुत गुमसुम देखा…
सुखद आश्चर्य हुआ, जब नील अपने पिता को अपने घर लेकर आया. इस बात से नाराज़ रोशनी मायके चली गई. शायद वह अपने उस कदम से उस पर दबाव बनाना चाहती थी, पर नील नहीं झुका… मां के असमय जाने से उसके मन में उपजी ग्लानि थी या अपने कर्तव्यों के प्रति जगी चेतना; वह अपने पिता की अब ख़ूब सेवा करता है.
एक दिन मैं पति के साथ मिलने गई, तो देखा वो यूट्यूब में देखकर गाजर का हलवा बना रहा था… क्योंकि उसके पिता को गाजर का हलवा खाने का मन था.

 

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नाराज़ पत्नी मायके में है. पिता की देखरेख करने के लिए उसने घर में सीसी टीवी लगवा रखा है. ऑफिस में रहकर बूढ़े पिता पर मोबाइल से नज़र रखता है. वह सीढ़ी उतरकर लॉन में आते है, तो डर जाता है कहीं गिर न जाए… उस वक़्त मुझे फोन करके उन्हें अपने कमरे में बैठने की हिदायत देने को कहता है.
पिता के प्रति उसकी असुरक्षा की भावना और उन्हें अकेले देख मुझे दुख होता है. रोशनी पर बहुत ग़ुस्सा आता है. पहले जिस बेटे को माता-पिता के ऊपर झल्लाते देखा, आज उसे सेवा करते देखती हूं, तो मन में प्रश्न उठता है कि क्या वाक़ई नील मूल रूप से बुरा बेटा था… या पत्नी के दबाव में उसने अपने माता-पिता से दूरी बनाई थी.
बूढ़े पिता बेटे का घर टूटता देख दुखी है.
एक दिन मैं मिलने गई, तो रोते हुए बोले, “मैं गांव वापस जाना चाहता हूं. ये जाने नहीं देता… इसका परिवार टूट रहा है. मैं क्या करूं…” परसों रात रोशनी चार महीने बाद वापस आई. दोनों के बीच जमकर झगड़ा हुआ… नील और उसके पिता की स्थिति देखकर मन विचलित है.
ससुर को साथ न रखने के रोशनी के भी तो वही छोटे-छोटे मुद्दे हैं… उनका रहना-सहन, कुछ आर्थिक बोझ, ज़िम्मेदारियां… अपने एकांत में खलल… क्या करेगा नील? अपनी शादी बचाएगा या पुत्र होने का फ़र्ज़ निभाएगा? हम किस समाज की ओर जा रहें है…”
चुभते प्रश्न ने माहौल को भारी बना दिया था… किटी पार्टी में आज ससुराली निंदा रस में डूबने की इच्छा मर-सी गई थी. कोई कहे न कहे पर अनुभा का प्रश्न आईना दिखाता कह रहा था कि नारी की कोमलता तभी सार्थक है, जब वह हर भूमिका में मन की कोमलता को कायम रखे.

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जब फ़िक्र की रिमझिम में सास अपनी बहू के लिए और बहू अपनी सास के लिए भीगे तभी पूर्ण रूप से कहा जा सकेगा कि नियति ने नारी को कोमल मन प्रदान किया है. बिना किसी पूर्वाग्रह के उम्र के प्रत्येक पड़ाव में नारी द्वारा नारी के उत्थान हेतु निभाई भूमिका बिगड़ी चेन सुधारेगी… और उस वक़्त बेटों को भी असल कसौटी पर कसना संभव और सार्थक होगा.

मीनू त्रिपाठी

 

 

 

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