“… बात एक थप्पड़ से लगनेवाली चोट की नहीं, बल्कि उससे उद्घोषित होनेवाले नाद की थी कि अब गीतेश ने या तो मुझे छोटा समझ लिया है या अपने आपको बड़ा. यह असंतुलन एक बार उत्पन्न होने के पश्चात कभी घटता नहीं, बल्कि बढ़ता ही जाता है. जब रथ का धराशायी होना अवश्यंभावी हो, तो उसकी यात्रा का यथाशीघ्र परित्याग कर देना ही ज़्यादा सुरक्षित विकल्प होता है और मैंने इसी विकल्प का चुनाव किया.’’
… ‘‘वो… छोटी सी कहानी है.’’ दामनी मैम के चेहरे पर दर्द की रेखाएं फैल गईं. किंतु जल्द ही उन्होंने अपने को संभाल लिया और मेज पर रखी बिस्किट का प्लेट दीपा की ओर बढ़ाते हुए बोलीं, ‘‘एक दिन छोटी-सी बात पर गीतेश ने मुझे थप्पड़ मार दिया. मैं उसी दिन उसके बंगले को छोड़ कर चली आई. फिर तलाक़ ले लिया.’’
‘‘आपने छोटी-सी बात पर तलाक़ ले लिया?’’ दीपा का मुंह आश्चर्य से फैल गया.
‘‘तुम मेरी स्टूडेंट थी, लेकिन अब कुलीग हो इसलिए तुमसे खुलकर बात कर सकती हूं.’’ दामनी मैम ने अपनी आंखों के कोरों को पोंछा फिर बोलीं, ‘‘मैं गीतेश को आज भी प्यार करती हूं और वह भी मुझे करता होगा.’’
‘‘तो फिर?’’
‘‘यह तो फिर ही तो सारी समस्याओं की जड़ है.’’ दामनी मैम ने दीपा के चेहरे की ओर देखा. फिर कोल्ड ड्रिंक्स का गिलास उठा, दो-तीन घूंट भरने के बाद बोलीं, ‘‘पति-पत्नी, गृहस्थी के रथ के दो पहिए. यह रथ स्थिर गति से तभी चल सकता है, जब दोनों पहिए बराबर हों. एक पहिए के छोटा या दूसरे के बड़ा होने पर रथ का डांवाडोल होना अवश्यंभावी है. बात एक थप्पड़ से लगनेवाली चोट की नहीं, बल्कि उससे उद्घोषित होनेवाले नाद की थी कि अब गीतेश ने या तो मुझे छोटा समझ लिया है या अपने आपको बड़ा. यह असंतुलन एक बार उत्पन्न होने के पश्चात कभी घटता नहीं, बल्कि बढ़ता ही जाता है. जब रथ का धराशायी होना अवश्यंभावी हो, तो उसकी यात्रा का यथाशीघ्र परित्याग कर देना ही ज़्यादा सुरक्षित विकल्प होता है और मैंने इसी विकल्प का चुनाव किया.’’
कहते-कहते दामनी मैम का सारा तनाव गायब हो गया और उनके चेहरे पर अभूतपूर्व शांति छा गई. दीपा ने अंदर-ही-अंदर अपने पंखों को तौला फिर बोली, ‘‘मैम, क्या क्षमा कर देना बेहतर विकल्प नहीं होता?’’
‘‘क्षमा समतुल्य या छोटे को दी जाए, तभी सार्थक होती है. अहंकारी को क्षमा निरर्थक है, क्योंकि वह इसे दूसरे की सहृदयता नहीं, अपितु अपनी जीत समझता है. फिर उसकी प्रवृत्ति और अधिक हिंसक होती जाती है.’’ दामनी मैम ने कटु सत्य उजागर किया.
‘‘क्या आपको कोई दिक़्क़त महसूस नहीं होती?’’ दीपा अभी भी संतुष्ट नहीं हो पा रही थी.
‘‘दो बुरे में से किसी एक का चुनाव करना हो, तो तुम क्या करोगी?’’
दीपा ने कोई उत्तर नहीं दिया. वह ख़ामोश ही रही. दामनी मैम भी इस विषय पर ज़्यादा बात नहीं करना चाहती थीं. उन्होंने जल्दी ही डिनर लगवा दिया. डिनर कर दीपा हॅास्टल लौट पड़ी.
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उसके चेहरे पर एक अजीब-सी बेचैनी छाई हुई थी और सीढ़ियां चढते समय उसके पैर कांप से रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे वह बहुत दूर से दौड़ कर आ रही हो. कमरे में आ उसने हांफते हुए सूटकेस खोला. सामने ही एक बड़ा-सा लिफ़ाफ़ा रखा हुआ था. कांपते हाथों से उसने उसमें रखे काग़ज़ों को बाहर निकाला और उसके पन्नों को पलटने लगी. अचानक उसकी पलकों से एक बूंद टपक कर उन कागजों पर जा गिरी.
इसी के साथ दीपा के चेहरे के भाव बदल गए.
‘नहीं, वह इन मोतियों को बाहर निकाल कमज़ोर नहीं बनेगी’. उसने अपनी पलकों को पोंछा और तेजी से हर पन्ने पर हस्ताक्षर करने लगी. उसके बाद उनकी फोटो खींच प्रखर भैया को व्हाट्सअप पर भेज दिया. राहत की सांस लेते हुए उसने उन काग़ज़ों को लिफ़ाफ़े में वापस रखा और उस पर रवीश का पता लिखने लगी.
असंतुलित रथ की हमसफ़र वह भी नहीं बनेगी. लिफ़ाफ़े को बंद कर उसने मेज पर फेंका और बिस्तर पर लुढ़क गई. उस रात बहुत दिनों बाद उसे चैन की नींद आई.
संजीव जायसवाल ‘संजय’
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