कहानी- एक अधूरी कहानी 1 (Story Series- Ek Adhuri Kahani 1)

अनन्या के पापा और मेरे पापा की दोस्ती धीरे-धीरे प्रगाढ़ होते हुए चाय-नाश्ते और साथ खाना खाने तक आ गई थी. हम दोनों की मम्मी बरसों पुरानी सहेलियों की तरह एक‌ साथ बाज़ार के चक्कर लगाने लगी थीं. बस हमारी ही दोस्ती नहीं हुई थी. मुझे देखते ही अनन्या मुंह बिचका लेती और मैं? मैं तो उस अक्खड़ लड़की से बात ही नहीं करना चाहता था.

 

 

मैं‌ सुबह को अगर‌ कोई‌ शक्ल देना चाहूं, तो गीले बाल‌ वाली अनन्या याद‌ आती है, दोपहर की गर्मी की अगर सूरत देखना चाहूं, तो चौके से रोटी बनाकर निकली, थकी-हारी अनन्या का पसीने से भीगा चेहरा याद आता है और अगर शाम के लाल-सिंदूरी रंग मिलकर एक शक्ल बना सकते, तो वो‌ हूबहू अनन्या का ही चेहरा होता… मेरा दिन, मेरी रात.. मेरे आठों पहर वही‌ तो थी, मेरी अनन्या! इस समय मेरे कांपते हाथों में उसकी सहेली की लिखी चिट्ठी थी, जिसको बार-बार पढ़ते समय शब्द मेरे आंसुओं से धुंधला जाते थे.
अमन,
तुम्हारा फोन नंबर शायद बदल गया है. बहुत दिनों तक ट्राई करने के बाद ये लेटर लिखना पड़ा. अनन्या तुमसे मिलना चाहती है. बहुत बीमार है. लेटर मिलते ही नीचे दिए गए पते पर पहुंच जाना. मेरा फोन नंबर भी दे रही हूं.
मनीषा
पता नहीं कब मैंने बैग में कपड़े रखे, कब एयरपोर्ट पहुंचा और कब मुंबई की फ्लाइट में बैठ गया. सब कुछ अपने आप होता जा रहा था! मनीषा की कही एक-एक बात कानों में गूंज रही थी. उसने बताया था अनन्या एडमिट है. मिलना चाहती है. फ्लाइट टेक ऑफ कर चुकी थी और साथ ही बचपन से लेकर जवानी तक, अनन्या के साथ बिताया एक-एक पल फिल्म की तरह मेरी आंखों के सामने से गुज़रने लगा था.
“ऐ लड़की! सुनो, तुम्हारी मम्मी तुमको बुला‌ रही हैं कब से.”
सालों पहले यही थी हमारी पहली बातचीत या कहें हमारी पहली मुठभेड़ यही थी. उस दस-ग्यारह साल की लड़की ने अपनी सहेलियों के साथ खेलते हुए मुझे घूरकर देखा था.
“मेरा नाम अनन्या है… ऐ लड़की कहकर क्यों बुलाया? तुमको क्या बोलूं, ऐ लड़के?”
मैं उसकी अकड़ देखकर हैरान रह गया था! अरे,जब नाम नहीं पता तो कैसे बुलाऊंगा? लड़ाका है ये तो‌ एकदम. उसी दिन से अपने‌ इस पड़ोसी परिवार से मेरा मन हट गया था. अनन्या के पापा और मेरे पापा की दोस्ती धीरे-धीरे प्रगाढ़ होते हुए चाय-नाश्ते और साथ खाना खाने तक आ गई थी. हम दोनों की मम्मी बरसों पुरानी सहेलियों की तरह एक‌ साथ बाज़ार के चक्कर लगाने लगी थीं. बस हमारी ही दोस्ती नहीं हुई थी. मुझे देखते ही अनन्या मुंह बिचका लेती और मैं? मैं तो उस अक्खड़ लड़की से बात ही नहीं करना चाहता था.
“मैं नहीं बुलाऊंगा मम्मी उसको अपने बर्थडे पार्टी में… प्लीज़.”

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मैंने लगभग रुंआसे होकर अपनी बात रखी. मम्मी ने तुरंत डपटा, “उसके पापा-मम्मी आएंगे, तो वो‌ नहीं आएगी? तुम्हारी ही उम्र की है, तुम्हारी फ्रेंड हुई ना?आने को बोल दो एक‌ बार.”
मम्मी का आदेश टाला नहीं जा सकता था, मैंने न चाहते हुए भी फोन किया. वो‌ आई भी, लेकिन दोस्ती का खाता अब तक खुला नहीं था.
“अमन, ये तुम्हारे लिए.”
बर्थडे पार्टी से जाते समय उसने मेरी ओर एक लिफ़ाफ़ा बढ़ाया, “थैंक्स!” मैंने झिझकते हुए वो लिफ़ाफ़ा लिया…

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

लकी राजीव

 

 

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Usha Gupta

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