कहानी- अस्तित्व 3 (Story Series- Astitva 3)

“अनु, ऐसे कई गुण हैं, जो कुदरत ने स़िर्फ औरत को दिए हैं, उनके महत्व को समझो. तुम हर तरह से क़ाबिल और गुणी हो. यूं चिढ़-कुढ़कर अपने घर का माहौल मत बिगाड़ो और न ही अपने आत्मविश्‍वास को डगमगाने दो.”

“क्या पढ़ाई-लिखाई स़िर्फ नौकरी पाने के लिए की जाती है, ज्ञान पाने के लिए नहीं? और उस ज्ञान का सही उपयोग यदि घर से शुरू हो, तभी तो समाज बदलेगा. तुम जैसी पढ़ी-लिखी, होनहार महिलाएं अपने घर-परिवार को संवारने के साथ ही अपने बच्चों को सही ज्ञान देकर समय का रुख़ बदल सकती हैं. अपने अस्तित्व को एक नई पहचान दे सकती हैं. अपने काम को छोटा मत समझो बेटी, तुम्हारे हाथों में ही भविष्य की नींव है.”

बुआजी की बातों में मुझे सच्चाई नज़र आ रही थी, इसलिए मैं उनका विरोध नहीं कर पाई. सच ही तो कहा था उन्होंने, हम औरतें ही समाज का नक्शा बदल सकती हैं.

बुआजी अपनी रौ में बोले जा रही थीं, “समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता बेटी. औरत की ज़िंदगी में कई पड़ाव आते हैं, जहां उसे अलग-अलग रूप में अपनी ज़िम्मेदारियां निभानी होती हैं. बेटी, बहू, पत्नी, मां, बहन, सास… हर रूप में उसे एक नया अनुभव मिलता है.

अपने अनुभव के आधार पर मैं तुम्हें बताना चाहती हूं कि शादी के शुरुआती कुछ साल भले ही संघर्षभरे हों, लेकिन उन सालों में यदि तुमने अपनी ज़िम्मेदारियां बख़ूबी निभा दीं, तो उसके बाद तुम्हें उसका प्रतिसाद मिलना शुरू हो जाता है. पूरा परिवार, रिश्तेदार सभी तुम्हें अच्छी पत्नी, बहू, मां… जैसी तमाम उपाधियों से नवाज़ना शुरू कर देते हैं.

35 की उम्र के बाद औरत की ज़िंदगी का एक नया अध्याय शुरू होता है, जहां परिवार का हर सदस्य उसके काम की सराहना करता है और उसकी ख़ुशी को भी महत्व देता है.

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आज तुम्हें मेरी बातें भले ही कोरी बकवास लगे, लेकिन कुछ सालों बाद तुम्हें मेरी बातें याद आएंगी. बस, अपने कर्त्तव्य से मुंह मत मोड़ना बेटी. ससुराल में ख़ूब नाम कमाना. तुम ऐसा करोगी ना?”

सहमति में सिर हिलाने के अलावा मेरे पास और कोई चारा नहीं था. क्या कहती? बुआ जी की एक-एक बात सच ही तो थी. इंसान की पहचान उसके घर से होती है और चारदीवारी के मकान को घर औरत ही बनाती है.

स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के लिए बने हैं, कुदरत ने ही उन्हें ऐसा बनाया है, फिर हम अपनी तरफ़ से खींचातानी क्यों करें? ख़ुशहाल जीवन जीने के लिए स्त्री-पुरुष दोनों को एक-दूसरे की ज़रूरत होती है.

पति-पत्नी के झगड़े की सबसे बड़ी वजह यह होती है कि पुरुष छोटी-छोटी बातों पर ध्यान नहीं देते और औरतों का ध्यान इन्हीं चीज़ों पर जाता है. दोनों की अपनी ख़ूबियां हैं, क्योंकि पुरुष बड़े-बड़े काम कर जाते हैं और औरतें उन्हें बारीक़ी से संवारती हैं. जब स्त्री-पुरुष दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, तो बेकार की खींचातानी क्यों..?

बस, उसके बाद से मैंने कुढ़ना छोड़ दिया और अपने परिवार की उन्नति व ख़ुशहाली के लिए हर मुमकिन कोशिश करती रही. पति, सास-ससुर, बेटी के हर काम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगी.

आज मेरे पति एक मशहूर मल्टी नेशनल कंपनी के डायरेक्टर हैं, मेरी बेटी मेडिकल की पढ़ाई कर रही है और मेरे सास-ससुर पूरी तरह स्वस्थ हैं तथा हर काम मुझसे पूछकर करते हैं.

मेरे डांस और लिखने के शौक के बारे में जानने के बाद मेरे पति ने ही मुझे प्रोत्साहित किया और कहा कि अब मैं अपने लिए जीऊं, अपने शौक पूरे करूं और पूरे परिवार ने इसमें मेरा सहयोग किया.

पहले मैं अपनी जिन सहेलियों को देखकर कुढ़ती थी कि मैं घरेलू ज़िम्मेदारियां निभा रही हूं और वो करियर बना रही हैं, आज मैं उन सभी से आगे निकल आई हूं. मेरी कुछ सहेलियां, जिन्होंने 35 की उम्र के बाद शादी करने का मूड बनाया, उनमें से कुछ को मनचाहा जीवनसाथी नहीं मिला, तो कुछ औलाद की ख़ुशी पाने के लिए संघर्ष कर रही हैं.

हम जब-जब कुदरत के साथ खिलवाड़ करते हैं, तब-तब हमें उसका भारी नुक़सान उठाना पड़ता है. करियर तो तुम फिर शुरू कर सकती हो, लेकिन तुम्हारे बच्चे का बचपन क्या फिर लौटकर आएगा? बस, कुछ सालों का संघर्ष है, उसके बाद तुम्हारा परिवार ही तुम्हारी ख़्वाहिश पूरा करेगा. औरत होने के गौरव और उसकी ज़िम्मेदारियों को समझो अनु, हमें मिलकर एक नए समाज का निर्माण करना है. अपनी पढ़ाई का सही इस्तेमाल करना है. अपने ज्ञान को पैसों से मत तोलो. तुम वो कर सकती हो, जो तुम्हारे पति कभी नहीं कर सकते. क्या वो तुम्हारी तरह बच्चे को जन्म दे सकते हैं? उसे अपना दूध पिला सकते हैं? लोरी गाकर सुला सुला सकते हैं..? नहीं ना!

अनु, ऐसे कई गुण हैं, जो कुदरत ने स़िर्फ औरत को दिए हैं, उनके महत्व को समझो. तुम हर तरह से क़ाबिल और गुणी हो. यूं चिढ़-कुढ़कर अपने घर का माहौल मत बिगाड़ो और न ही अपने आत्मविश्‍वास को डगमगाने दो.

मुझे पूरा विश्‍वास है कि जिस तरह बुआजी की बातों ने मेरा जीने का नज़रिया बदल दिया, तुम पर भी मेरी बातों का असर ज़रूर होगा. होगा ना अनु?”

जवाब में अनु की आंखें नम थीं. वो पूजा से लिपटकर ख़ूब रोई, तब तक, जब तक मन की पूरी कड़वाहट धुल नहीं गई.

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अब वो एक नई अनु बन चुकी थी, जिसे अपने परिवार के साथ-साथ समाज, देश, दुनिया का भविष्य संवारना था. औरत की शक्ति का परिचय देना था. अपने अस्तित्व को एक नई पहचान देनी थी.

कमला बडोनी

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