कहानी- बांसुरीवाला 4 (Story Series- Bansuriwala 4)

 

“सर, मैं भिखारी नहीं हूं.’’ वो लड़का फफक कर रो पड़ा. उसके सब्र का बांध टूट गया था.
प्रधानाध्यपक का मन अपराधबोध से भर उठा. उन्हें लगा कि उस लड़के के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा कर उन्होंने अच्छा नहीं किया है. अतः बात बनाते हुए बोले, ‘‘तुम मुझे ग़लत समझ रहे हो. दरअसल, मैने तुम्हें यहां आने से मना किया है. उससे तुम्हारा जो नुक़सान होगा ये उसके बदले में है. रख लो तुम्हारे काम आएंगे.’’

 

 

 

 

… आस-पास खडे बच्चों पर एक दृष्टि डालने के बाद उसने अपनी पलकों को पोंछा और बिना कुछ कहे वापस जाने के लिए मुड़ पड़ा. भयभीत हिरण जैसी उसकी आंखो को देख कर जाने क्यूं प्रधानाध्यपक को लगा कि उस दिन की तरह आज भी ये लड़का कुछ कहना चाह रहा है, किन्तु कह नहीं पा रहा है.
किसी अन्जान भावना के वशीभूत होकर उन्होंने उसके कंधों पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘तुम कुछ कहना चाह रहे हो.’’
स्नेह का हल्का-सा स्पर्श पाते ही सप्रयास रोक कर रखे गए आंसू बाहर छलक आए. प्रधानाध्यपक ने ध्यान से देखा कि 15 दिनों में वो लडका काफी दुबला हो गया था और चेहरे की चमक खो-सी गई थी. उसके कपड़े तार-तार हो रहे थे. उन्हें उसकी हालत पर दया और अपनी कठोरता पर शर्म आने लगी. छोटे-से बच्चे की रोजी पर लात मारना उन्हें बहुत ग़लत काम लगा. कुछ सोच कर उन्होंने अपनी जेब में हाथ डालकर कुछ रूपए निकाले और उसकी ओर बढ़ाते हुए बोले, ‘‘लो इन्हें रख लो.’’
“सर, मैं भिखारी नहीं हूं.’’ वो लड़का फफक कर रो पड़ा. उसके सब्र का बांध टूट गया था.
प्रधानाध्यपक का मन अपराधबोध से भर उठा. उन्हें लगा कि उस लड़के के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा कर उन्होंने अच्छा नहीं किया है. अतः बात बनाते हुए बोले, ‘‘तुम मुझे ग़लत समझ रहे हो. दरअसल, मैने तुम्हें यहां आने से मना किया है. उससे तुम्हारा जो नुक़सान होगा ये उसके बदले में है. रख लो तुम्हारे काम आएंगे.’’
“सर, क्या आप भी समझते हैं कि मैं यहां बासुंरी बेच कर पैसा कमाने आता हूं.’’ उस लड़के ने डबडबाई आंखों से प्रधानाध्यापक की ओर देखा.

यह भी पढ़ें: पढ़ने के लिए बच्चे को कैसे करें प्रोत्साहित? (How To Motivate Your Child For Studies)

उन आंखों में एक ऐसी कसक थी कि प्रधानाध्यापक को कोई जवाब नहीं सूझा. तभी उस लड़के ने कहा, ‘‘मैं कक्षा पांच में पढ़ता था. हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आता था, मेरे गरीब मां-बाप अपना पेट काट कर मुझे पढ़ाते थे. वैसे छह महीने पहले अचानक एक दुर्घटना में उन दोनों की मौत हो गई. उसके बाद मेरी पढ़ाई छूट गई. पेट पालने के लिए मैंने बांसुरी बेचने का काम शुरू कर दिया.
एक दिन घूमता-फिरता इस स्कूल की तरफ़ आ गया. इन बच्चों को देख मैं अपना दुख-दर्द भूल गया. उनके बीच आकर मुझे ऐसा लगता है, जैसे मैं एक बार फिर स्कूल में आ गया हूं. इनके सानिध्य में मेरे अकेलेपान का एहसास कुछ कम हो जाता है, बस इसीलिए यहां आ जाता था…’’

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

संजीव जायसवाल ‘संजय’

 

 

यह भी पढ़ें: ज़्यादा अनुशासन न कर दे बच्चों को आपसे दूर… (Why Parents Avoid Disciplining Kids)

 

 

 

 

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

 

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli