कहानी- बांसुरीवाला 3 (Story Series- Bansuriwala 3)

उसने अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से प्रधानाध्यापक के चेहरे की तरफ़ देखा. उन आंखों में पानी भर आया था. ऐसा लग रहा था कि चोट शरीर से ज़्यादा उसके मन पर लगी है.

 

 

 

… धीरे-धीरे 15 दिन बीत गए बांसुरीवाला दोबारा नहीं आया. स्कूल के बच्चे 4-5 दिन तो बहुत परेशान रहे. सूनी सड़क पर टकटकी बांधकर उसकी प्रतीक्षा करते रहे, फिर धीरे-धीर सब सामान्य हो गया.
आज अचानक इतने दिनों बाद ठीक 11 बजे बांसुरी की तान सुनाई पड़ी थी. इससे पहले कि प्रधानाध्यापक कोई निर्णय ले पाते, शास्त्रीजी तमतमाते हुए आए और बोले, ‘‘मैं जानता था कि ये छोकरा बहुत बेशर्म है. देखिए, फिर आ गया. अपनी बांसुरी बेचने के चक्कर में ये स्कूल के बच्चों को बर्बाद कर डालेगा.’’
प्रधानाध्यापक ने कोई उत्तर नहीं दिया. वे अनिर्णय की स्थित में थे. तभी शास्त्रीजी ने अपने तेवर तेज करते हुए कहा, “मैं अपने छात्रों को नाच-गाने में समय बर्बाद नहीं करने दूंगा. अगर आप कुछ नहीं करना चाहते, तो मुझे बता दीजिए. मैं आज इस छोकरे की टांगें तोड़ देता हूं. फिर दोबारा इधर कभी नहीं झांकेगा.’’
शास्त्रीजी की बात सुन प्रधानाध्यापक के चेहरा सख़्त हो गया. मेज पर रखा बेंत लेकर वे तेज कदमों से बाहर निकल पड़े. अपनी धोती संभालते हुए शास्त्रीजी भी पीछे-पीछे दौड़ रहे थे.
स्कूल के गेट के पास वो लडका झूम-झूमकर बांसुरी बजा रहा था और सारे बच्चे उसे घेरे हुए थे.

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प्रधानाध्यापक को आता देख, वो लडका सहम कर रूक गया. उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में भय के चिह्न उभर आए.
‘‘मैंने तुमको मना किया था, फिर क्यूं आ गया यहां. क्या बांसुरी बेचने के लिए तुम्हें कोई दूसरी जगह नहीं मिलती.’’ कहते हुये प्रधानाध्यापक ने एक बेंत उसे जड़ दिया.
उसने अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से प्रधानाध्यापक के चेहरे की तरफ़ देखा. उन आंखों में पानी भर आया था. ऐसा लग रहा था कि चोट शरीर से ज़्यादा उसके मन पर लगी है. कुछ कहने के लिए उसके होंठ थरथराए, किन्तु आज फिर उसने उन्हें सिल लिया.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

संजीव जायसवाल ‘संजय’

 

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Usha Gupta

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