… उस दिन श्यामली विशेष प्रसन्न थी. उसे लगा कि उसकी मंज़िल थोड़ी पास खिसक आई है, जब उसने पाया कि वह गर्भवती है. शुक्रवार का दिन था. उस रात वीरेन घर नहीं लौटा और फोन कर दिया कि दूसरे दिन सुबह आएगा. शनिवार की उसे छुट्टी रहती थी. श्यामली ने सुबह उठकर उसकी पसन्द के व्यंजन बनाए और तैयार होकर उसकी प्रतीक्षा करने लगी. वीरेन आया तो थोड़ा चुप सा, परेशान-सा लग रहा था.
नाश्ते पर ही उसने बात शुरू की कहा कि उसका अपनी प्रेयसी को छोड़ने का कोई इरादा नहीं है. परन्तु श्यामली के प्रति अपना उत्तरदायित्व भी समझता है. श्यामली चाहे तो आगे पढ़ लें अथवा जो कोर्स करना चाहे कर ले, जिससे उसे एक अच्छी-सी नौकरी मिल जाए और वह आत्मनिर्भर हो जाए. वीरेन उसकी हर संभव सहायता करने को तैयार था. वह जानता था कि उसका अपराध अक्षम्य है. श्यामली को स्वालम्बी बनाकर शायद वह अपने अपराधबोध को कुछ कम कर लेना चाहता था.
अब श्यामली को अपने गर्भवती होने की ख़बर देने में कोई तुक नज़र नहीं आई.
विडम्बना तो देखो, जो दोषी थे, जिन्हें दण्ड मिलना चाहिए था, उन्हें न मिलकर मिला उसको जिसका रति भर भी दोष नहीं था.
श्यामली ने अभी तक मां को इस परिस्थिति की भनक तक नहीं लगने दी थी. फोन पर बात होने पर कह देती कि सब ठीक है, पर अब उसने तय किया कि जब अकेली ही रहना है, तो अपने वतन में अपने लोगों के बीच जा कर रहेगी और एक न एक दिन मां को भी पता लगना ही था.
मां ने राघव को फोन पर ही श्यामली के नाकामयाब विवाह एवं लौट आने की सूचना दी थी. ‘क्या वह खुश है श्यामली के लौट आने की ख़बर पाकर?’ उसने स्वयं से पूछा. उसने तो सदैव श्यामली की मंगल कामना ही की थी न! राघव जब अगली छुट्टी में घर आया, उसी दिन श्यामली की बेटी हुई थी.
दो वर्ष पश्चात् राघव ने भी अपना तबादला वहीं करवा लिया. श्यामली की बेटी सलोनी लगभग दो वर्ष की हो चुकी थी, तो श्यामली ने उसे मां के पास छोड़ शाम को कंप्यूटर क्लास में जाना शुरू कर दिया था, ताकि नौकरी मिलने में आसानी हो. वही समय होता जब राघव भी दफ़्तर से लौटकर कहीं जा पाता था. तो वह सलोनी से खेलने आ जाता. वह श्यामली की मां को मौसी बुलाने लगा था.
वह सलोनी से ख़ूब खेलता. श्यामली से उसका बहुत साम्य था. उसी की तरह सलोनी की भी मुस्कुराते ही दोनों आंखें चमक उठतीं थीं. मौसी को इससे बहुत सहारा मिल गया. वह अपने मन की बात राघव से करने लगीं.
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मौसी ने एक दिन अपनी सबसे बड़ी परेशानी बयान की.
“मुझे श्यामली की बहुत चिंता है. अभी तो मैं हूं, परन्तु मेरे पश्चात उसका क्या होगा? तुम्हारे इतने संगी साथी होंगे, उनमें से कोई तलाक़शुदा हो अथवा पत्नी को खो चुका हो और श्यामली से विवाह करने को राज़ी हो. श्यामली को नई ज़िंदगी मिल जाएगी. बस आदमी अच्छा हो. बिटिया को तो मैं पाल लूंगी. भला दूसरे के बच्चे को कोई पर-पुरुष क्यों अपनाएगा?”..
उषा वधवा
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