कहानी- चिड़ियां दा चंबा 5 (Story Series- Chidiyan Da Chamba 5)

“सबसे बड़ा अपराधी तो मैं हूं मौसी. सदैव से श्यामली को चाहता रहा, पर कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. काश! मैंने हिम्मत की होती. यदि श्यामली को स्वीकार हो और आप अनुमति दें, तो मैं करूंगा श्यामली से विवाह और सलोनी भी हमारे पास रहेगी. अपनी मां का प्यार पाना, तो हर बच्चे का अधिकार है. मुझसे वह पिता का पूरा प्यार पाएगी. स्त्रियों से भी तो यह अपेक्षा की जाती रही है कि वह दूसरी स्त्री की संतान पालेंगी.”

 

 

 

 

 

 

 

“कैसा है न हमारा समाज? दोष पुरुष का हो, तो भी भोगना लड़की को ही पड़ता है. मां-बाप जानते थे अपने बेटे का सच, पर इस उम्मीद पर कि शायद वह अपनी प्रेमिका को छोड़ दे, उन्होंने एक निर्दोष लड़की का जीवन दांव पर लगा दिया! यही है हमारे समाज में एक लड़की की औक़ात.
ग़लती तो मेरी भी है कि मैंने अच्छी तरह जांच-पड़ताल नहीं की. शरीफ़ लोग लग रहे थे. बस  उनकी बातों में आ गई.”
“सबसे बड़ा अपराधी तो मैं हूं मौसी. सदैव से श्यामली को चाहता रहा, पर कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. काश! मैंने हिम्मत की होती. यदि श्यामली को स्वीकार हो और आप अनुमति दें, तो मैं करूंगा श्यामली से विवाह और सलोनी भी हमारे पास रहेगी. अपनी मां का प्यार पाना, तो हर बच्चे का अधिकार है. मुझसे वह पिता का पूरा प्यार पाएगी. स्त्रियों से भी तो यह अपेक्षा की जाती रही है कि वह दूसरी स्त्री की संतान पालेंगी.”

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राघव और श्यामली का विवाह हुए एक लम्बा अरसा बीत गया. सलोनी बड़ी हो गई और ब्याह कर पति गृह दूसरे शहर चली गई. वृद्ध एक-एक करके दूसरे लोक जा बसे. पर झटका तब लगा, जब अकस्मात् श्यामली का देहांत हो गया. बीमार भी नहीं थी. रात को सोई तो फिर सुबह उठी ही नहीं. डॉक्टरों के अनुसार ह्रदयाघात था.
पिछले आघात का बहादुरी से मुक़ाबला करनेवाली श्यामली पर इस बार विधि ने नींद में ही वार किया था.
महीना भर लग गया था सलोनी को अपने पापा को साथ चलने के लिए मनाने में. राघव श्यामली की यादों से भरे उस घर को छोड़ जाने के लिए राज़ी नहीं हो रहे थे और सलोनी उन्हें अकेला छोड़ने को तैयार नहीं थी.
शुरु में तो नए शहर में राघव बहुत उदास रहे, परन्तु फिर उनकी मुलाक़ात उसी कॉलोनी में रहते अपने एक पुराने सहपाठी अक्षज से हो गई, जो अब एक जाने-माने डाॅक्टर बन चुके थे. दिनभर तो डाॅक्टर साब व्यस्त रहते, परन्तु शामें प्रायः ही एक संग गुज़रने लगीं. उनकी पत्नी भी बहुत मिलनसार थीं. भोजन के समय सलोनी पापा को लेने आती, तो उनसे मिले बिना न जाती.
कुछ दिनों से राघव की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. भूख न लगती, अशक्त और थका-थका-सा महसूस करते. और जब वज़न भी कम होने लगा, तो डाॅक्टर ने कहा, “कभी आ जाओ मेरी क्लिनिक. चेकअप करके देखता हूं.”
सलोनी दूसरे ही दिन पापा को उनकी क्लिनिक ले गई. डाॅक्टर को कुछ संदेह हुआ और उन्होंने राघव को गुर्दे के डाॅक्टर के पास भेज दिया. वहां से रिपोर्ट यह आई कि उसके दोनों गुर्दे ख़राब हो चुके थे एवं एक को शीघ्र ही बदलना आवश्यक था.
सलोनी ने तुरन्त अपना एक गुर्दा देने का ऐलान कर दिया. उन दोनों का ब्लड ग्रुप तो एक था ही.

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वही रिपोर्ट लेकर सायंकाल राघव अपने डाॅक्टर मित्र के घर मशविरा करने आए. वह चाहते थे कि डाॅक्टर उन्हें कहीं से किडनी का इंतज़ाम करा दे.
“पर तुम तो बता रहे हो कि तुम्हारी बेटी अपनी किडनी देने को तैयार है.” डाॅक्टर ने कहा.
“हां, पर यदि बाहर से मिल जाए तो अच्छा है.”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

उषा वधवा

 

 

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Usha Gupta

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