लगभग दो माह ही गुज़रे होंगे, जब मां ने फोन पर बताया कि श्यामली का विवाह एक अप्रवासी भारतीय के साथ तय कर दिया गया है. मां ने यह भी बताया कि वर के माता-पिता उसी शहर के हैं और श्यामली से मिलकर उसे पसंद कर चुके हैं. उनके बेटे को अधिक छुट्टी नहीं थी और वह माता-पिता की पसन्द पर विवाह करने को राज़ी था. तय यह हुआ कि वह पन्द्रह दिन की छुट्टी लेकर आएगा और विवाह करके श्यामली को ले जाएगा.
विधि ने तो आना ही था अपनी सखी के विवाह में. उसकी मां ने राघव को भी बहुत मनुहार करके बुलाया था. श्यामली के पिता के न होने से उसकी ज़िम्मेदारी भी थी जाकर उनकी सहायता करना. विवाह से दो दिन पूर्व श्यामली किसी काम से विधि के पास आई थी, तो राघव का उससे सामना भी हुआ था. पर अब कहने का समय ही कहां रहा था? हिम्मत करके राघव ने उसे मुबारकबाद दी, तो उसने राघव के चेहरे पर प्रश्नसूचक भरपूर निगाह डालकर मुंह फेर लिया, बिना एक भी शब्द कहे. वह ख़ुश नहीं लग रही थी. सदा प्रफुल्लित रहनेवाली उसकी आंखों में चमक ग़ायब थी. विवाह का कोई उत्साह कोई ललक नहीं दिखी उसके चेहरे पर.
विवाह के लिए जल्दी मचाने का कारण अमरीका पहुंचकर ही पता चला श्यामली को. उसका नया नवेला पति वीरेन अमरीका में एक पूर्व एशियाई अमरीकी लड़की के साथ वर्षों से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा था. लड़की बहुत महत्वाकांक्षी थी और किसी भी सूरत में संतान नहीं चाहती थी. इसके इलावा वीरेन के माता-पिता को लगता था कि वीरेन ने उस लड़की से विवाह कर लिया, तो वह सदा के लिए उनके हाथ से निकल जाएगा. जबकि भारतीय मूल की कोई लड़की होने से उसका आना-जाना लगा रहेगा और श्यामली तो थी भी उसी शहर की. वीरेन ने इसी शर्त पर हामी भरी थी कि वह उस अमरीकी युवती से अपना रिश्ता नहीं तोड़ेगा, पर मां-बाप को एक उम्मीद थी कि श्यामली जैसी दुल्हन पाकर शायद वह विदेशी युवती को त्याग दे.
परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ.
काम के बाद वह सीधे ही अपनी प्रेयसी के पास चला जाता. देर रात को लौटता और कभी-कभी वह भी नहीं. उसने श्यामली को पूरी सच्चाई बता दी. माता-पिता के प्रति अपनी विवशता भी समझाई और अपनी इस कमज़ोरी के लिए माफ़ी भी मांगी. वह श्यामली की सब बातें मानने को तैयार था सिवाय अपना प्रेम संबंध तोड़ने के. मूल रूप से वह भला आदमी था और वफ़ादार भी. इसीलिए ही तो वह अपनी प्रेयसी को नहीं छोड़ पा रहा था.
मां ने आत्महत्या करने की धमकी देकर अपनी बात मनवा ली थी. उन्हीं के मोह से बंधे वीरेन ने हामी भर दी थी. जब तक वह श्यामली को नहीं जानता था वीरेन को उसके प्रति कोई कर्त्तव्यबोध नहीं हुआ था. परन्तु श्यामली के आने और जानने-समझने के बाद उसका अपराधबोध जागा. पहले यह बात उसके मस्तिष्क में क्यों नहीं आई? वह श्यामली को प्रसन्न रखने का पूरा प्रयास करता. उसे घर में सब सुविधाएं मुहैया करवा दीं, छुट्टी के दिन उसे घुमाने भी ले जाता, कपडे ख़रीद देता. श्यामली को भी भीतर से एक उम्मीद थी कि वह धीरे-धीरे अपने प्यार से वीरेन को अपना बना लेगी. वह भी उसकी पसन्द-नापसंद का पूरा ध्यान रखता.
उषा वधवा
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