… ‘हैप्पी बर्थडे…’ के समवेत स्वर के साथ केक कट गया. आधुनिक परंपरानुसार केक की क्रीम केतकी के चेहरे पर पोती जा चुकी थी. इस हंगामे के बीच उर्वशी भी पहुंच गई. देरी से आने की शिकायत पर बोली, “क्या करूं, एक सफल पति की सफलता के पीछे उसकी पत्नी का हाथ किस प्रकार है उस पर गंभीर चर्चा के चलते अटक गई.”
“सारे इंटरव्यू कवर कर लिए?” विकास दवे के पूछने पर वह कुछ मायूसी से बोली, “कहां सर, चार निपटे हैं. एक रह गया है. भई किसी की नज़र में कोई ऐसा सफल पुरुष हो तो बताए.”
उसकी इस बात पर सब हंस दिए. केतकी कहने लगी, “महिला दिवस पर सालों से हम वही घिसा-पिटा राग अलाप रहे हैं कि पत्नियों को समर्पित पांच सफल आदमियों की स्टोरी लेकर आओ. सब जानते हैं कि हर सफल आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है. अब इसमें नया क्या है.” केतकी का समर्थन एक अन्य महिला सहकर्मी ने तुरंत किया, “हम अपने दादा-नाना के ज़माने से देखते आए हैं कि उनकी सफलता में उनकी पत्नियों का यानी दादी-नानी का हाथ है. ये आदिकाल की सच्चाई है कि औरत ही पुरुष की सफलता के पीछे होती है. हर साल इसी घिसे-पिटे विषय पर इंटरव्यू लिए जाते हैं.”
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“आप को तो ख़ुश होना चाहिए मैडम कि हर साल महिलाएं पुरुषों की सारी सफलता और पूरे जीवन की मेहनत का श्रेय लूटकर ले जाती हैं. एक क्या हज़ार-लाख नाम मिलेंगे. ऐसे नामों की कमी थोड़े है. अनंत है महिलाओं यानी पत्नियों की कृपा…” विकास दवे की टिप्पणी पर उर्वशी बोली, “क्यों, सिर्फ़ पत्नी ही क्यों? कोई और महिला भी तो हो सकती है… मां-बहन-प्रेमिका-दोस्त… पर क्या करूं, जिसे देखो वह पत्नी को ही क्रेडिट दे रहा है. चार इंटरव्यू में तीन ने पत्नियों को सफलता का क्रेडिट दिया है. सिर्फ़ एक बन्दे ने मां को अपनी सफलता का क्रेडिट दिया है.”
“मैडम लिखवा लो. जिसने मां को श्रेय दिया है, वह पक्का कुंवारा होगा.” किसी की चुटकी पर उर्वशी हंसकर बोली,
“अरे हां, बिल्कुल ऐसा ही हुआ है. पक्का पांचवां इंटरव्यू ऐसे शादीशुदा का लूंगी, जो अपनी सफलता का दारोमदार पत्नी से इतर स्त्री पर डाले.”
विकास दवे माथा सिकोड़कर अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराए, “ऐसा इंटरव्यू छापकर क्यों किसी के दांपत्य का बेड़ा गर्क करने पर तुली हो. अरे, कौन-सी पत्नी होगी, जो पति की सफलता का क्रेडिट किसी अन्य महिला की ओर जाता देख बर्दाश्त करेगी.” यह सुनकर ठहाका लगा.
केतकी बोली, “विकास सर की बात से पूर्ण रूप से सहमत हूं. भई ऐसी जीवटता तो बस कुंआरे ही दिखा सकते हैं.”
हंसी-मज़ाक, खाना-पीना होते ही सब अपने-अपने घर के लिए निकले. उर्वशी का घर अमीषा के घर के रास्ते पर पड़ता था, इसलिए वह अमीषा की कैब में बैठी. बैठते के साथ ही अमीषा ने मोबाइल चेक किया. हर्ष की दो मिस कॉल देखकर उसे कॉल बैक किया.
“बस, 20-25 मिनट में पहुंचती हूं. फ्रिज में देखो, आलू-मटर की सब्ज़ी बनी रखी है. उसे बाहर निकाल दो. और हां, आटा भी निकालकर बाहर रख देना… नहीं-नहीं कुछ मंगवाना नहीं, मैं आकर रोटी सेंक दूंगी.” उसने भरसक धीमे स्वर में कहा, पर उर्वशी ने सुन लिया, तो अपनी बड़ी-बड़ी आंखों को विस्तार देते बोली, “क्यों न आपके घर जाकर आपके पति का ही इंटरव्यू ले लूं. क्या हुआ, जो वो आपको सारा क्रेडिट दे दें.”
मीनू त्रिपाठी
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