कहानी- ढलती सांझ के प्रेममयी रंग 1 (Story Series- Dhalti Sanjh Ke Premmayi Rang 1)

 

सामने बैठे वृद्ध दंपत्ति अपनी दुनिया में मगन थे. अंकल अपने मोबाइल से कुछ पढ़कर सुना रहे थे और दोनों हंसने लगे. क्षण भर को भी दोनों के बीच मौन नहीं होता था. एक के बाद एक अंकल कुछ न कुछ पढ़ते जा रहे थे और अपनी पत्नी को सुना रहे थे और आंटी भी तो खुलकर प्रतिक्रिया दे रही थीं.

 

 

 

 

देर तक विशाखा खिड़की से बाहर ढलते सूरज की लालिमा को गहराते देखती रही. देखती रही तेज़ गति से दौड़ती ट्रेन की खिड़की से पीछे छूटते पेड़ों और घरों को. ट्रेन तेज़ी से आगे भाग रही थी और मन पीछे छूटते जा रहे पेड़ों के साथ पीछे भाग रहा था. भाग रहा था पीछे छूटे अपने शहर की ओर, उस शहर की ओर जहां उसका घर था… वह घर जिसे उसने पूरे 33 बरस सहेजा था… जिसके हर हिस्से से उसे बहुत प्यार है. दीवारों से, खिड़की दरवाज़ों से, छोटे से आंगन से, फूलों से भरी बालकनी से. आज भी जिसे छोड़ते समय उसका मन भर आया था. मन को बहुत कड़ा करके ही वह निकल आई थी. गर्दन में जब दर्द होने लगा तब उसे ध्यान आया कि वह जब से ट्रेन में बैठी है, तभी से लगातार खिड़की से बाहर ही देख रही है. वह बहुत पहले ही ट्रेन में आकर बैठ गई थी. उसके बाद कौन आया, सामने पास में कौन बैठा है, उसे कुछ पता नहीं था.

 

 

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विशाखा ने धीरे से गर्दन सीधी की. सामने वाली सीट पर एक वृद्ध दंपत्ति बैठे थे, बगल वाली सीट पर एक सज्जन बैठे मोबाइल में व्यस्त थे. विशाखा ने एक किताब निकाल ली और पढ़ने लगी. अभी तो सात ही बजे थे शाम के, सोने में भी काफी समय था अभी. थोड़ी देर तक पढ़ने के बाद विशाखा किताब से भी ऊब गई. सच तो यही था कि उसका मन ही नहीं लग रहा था कहीं आज.
सामने बैठे वृद्ध दंपत्ति अपनी दुनिया में मगन थे. अंकल अपने मोबाइल से कुछ पढ़कर सुना रहे थे और दोनों हंसने लगे. क्षण भर को भी दोनों के बीच मौन नहीं होता था. एक के बाद एक अंकल कुछ न कुछ पढ़ते जा रहे थे और अपनी पत्नी को सुना रहे थे और आंटी भी तो खुलकर प्रतिक्रिया दे रही थीं. विशाखा ने पुनः किताब पढ़ने में ध्यान लगाने का प्रयत्न किया, लेकिन मन किताब की बजाय सामनेवाली सीट पर ही लगा रहा. कितनी आत्मीयता लग रही थी दोनों के बीच, एक सामंजस्य पूर्ण आत्मीयता… वह भी इस उम्र में. विशाखा को आश्‍चर्य हुआ. सत्तर के तो पार ही लग रहे हैं दोनों तब भी.
ट्रेन की गति कम होते हुए वह रुक गई. सीहोर आया था.
“मैं कचोरी ले आता हूं. तुम्हें पसंद है ना यहां की कचोरी. काफी समय से खाई भी तो नहीं.” बुजुर्ग अंकल उठते हुए बोले.
“ट्रेन यहां अधिक समय तक रुकती नहीं, मत उतरिए नीचे.” आंटी ने मना किया.

 

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“नहीं चढ़ पाया, तो तुम चेन खींच लेना.” अंकल परिहास करते हुए नीचे उतर गए.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

डॉ. विनीता राहुरीकर

 

 

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Usha Gupta

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