कहानी- दो प्याला ज़िंदगी 1 (Story Series- Do Pyala Zindagi 1)

 

सीमा ने हाल ही में ही अपना 46वां जन्मदिन मनाया था, जो उसके लिए यादगार रहा. यादगार इसलिए, क्योंकि उसका जन्मदिन घर में ना तो उसकी बेटी को याद रहा और ना ही उसके पति को.
अधेड़ उम्र की सीमा की ना तो कोई सहेली या दोस्त था और ना ही वह किसी से ज़्यादा जान-पहचान बढ़ाने में विश्वास ही रखती थी. लेकिन सीमा हमेशा से ही ऐसी नहीं थी. अपने बेडौल शरीर के साथ ट्रेडमिल पर अपना ग़ुस्सा निकालती सीमा आज से कुछ 10-15 साल पहले बहुत ख़ुशमिजाज़ थी. धीरे-धीरे परिस्थितियों में आते बदलावों ने ना सिर्फ़ सीमा के शरीर, बल्कि मन को भी बदरंग बना दिया था.

 

 

 

जीवन किसी वीडियो गेम की तरह होता है, एक लेवल के बाद दूसरा लेवल, एक एडवेंचर के बाद दूसरा. यह सिलसिला तब तक चलता रहता है, जब तक जीवन है. पर तब क्या जब जीवन तो बचा हो, मगर एडवेंचर्स ख़त्म हो जाए. यह वह समय होता है, जब हमें वीडियो गेम के किसी पात्र की भांति स्वयं को अपग्रेड करना पड़ता है. तब आपको एक बार फिर से मज़ा देने लगेगी यह नई लाइफ 2.0.
“मैं हूं इसलिए टिकी हुई हूं, इस घर में और कोई होता, तो कब का इस पागलखाने से भाग गया होता. रोज़ नई सर्कस होती है और कलाबाज़ियां सिर्फ़ मुझे ही खानी पड़ती हैं.” कुछ ऐसी ही आवाज़ हम सभी के मन से कभी ना कभी तो निकलती ही हैं, पर आज सीमा के मन की इस बुदबुदाहट का कोई तोड़ नहीं था. हां, यह ज़रूर है कि जिम में चल रहे संगीत के शोर और ट्रेडमिल की घर्र-घर्र की आवाज़ के बीच सीमा के मन से निकलता यह दर्द किसी को सुनाई नहीं दे रहा था.
सीमा ने हाल ही में ही अपना 46वां जन्मदिन मनाया था, जो उसके लिए यादगार रहा. यादगार इसलिए, क्योंकि उसका जन्मदिन घर में ना तो उसकी बेटी को याद रहा और ना ही उसके पति को.
अधेड़ उम्र की सीमा की ना तो कोई सहेली या दोस्त था और ना ही वह किसी से ज़्यादा जान-पहचान बढ़ाने में विश्वास ही रखती थी. लेकिन सीमा हमेशा से ही ऐसी नहीं थी. अपने बेडौल शरीर के साथ ट्रेडमिल पर अपना ग़ुस्सा निकालती सीमा आज से कुछ 10-15 साल पहले बहुत ख़ुशमिजाज़ थी. धीरे-धीरे परिस्थितियों में आते बदलावों ने ना सिर्फ़ सीमा के शरीर, बल्कि मन को भी बदरंग बना दिया था.

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अपना जिम का वर्कआउट ख़त्म करके सीमा ठीक 9:00 बजे रोज़ की ही तरह घर पहुंची. नहा-धोकर 9:15 बजे नाश्ते की मेज पर आई, तो रमेश पहले से ही नाश्ता कर रहा था. सीमा ने रमेश से पूछा, “रमेश, आज का क्या प्लान है? मेरा मतलब है कि घर कब तक आओगे? मेरा शाम 4:00 बजे का गाइनाकोलॉजिस्ट का अपॉइंटमेंट है. क्या तुम मेरे साथ चलोगे?” रमेश सीमा की बातों को तवज्जो ना देते हुए अख़बार पढ़ते हुए अपना टोस्ट ख़त्म करने में लगा हुआ था. सीमा ने दूसरी बार राकेश को आवाज़ लगाई और इस बार आवाज़ में थोड़ी-सी चिल्लाहट भी थी, “रमेश, सुन भी रहे हो या नहीं…”
इस दमदार गर्जना से रमेश झेंप गया और इस बार उसने अपने हाथों में पकड़ा अख़बार नीचे रखा और बोला, “सीमा, देखो तुम्हारे डॉक्टरों के अपॉइंटमेंट तो ख़त्म ही नहीं होते. मैं कब तक दफ़्तर से जल्दी घर आता रहूंगा. तुम तो आत्मनिर्भर महिला हो, तो चली जाना अकेली.” मुस्कुराते हुए रमेश ने सीमा की चुटकी ली और उसके सिर पर एक थपकी मारते हुए वहां से चला गया.
आपको लगेगा कि रमेश कितना निष्ठुर पति है, पर वह भी क्या करें? आज से चार-पांच साल पहले सीमा को स्लिप डिस्क के कारण अपनी मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर घर पर एक साल आराम करना पड़ा. कमर का दर्द तो कम हो गया, पर सीमा की वापसी उसकी कंपनी में कभी नहीं हुई, तो अचानक से सीमा के जीवन में आया यह खालीपन सीमा को किसी भूलभुलैया में डाल गया. और उस पर से मेनोपॉज़ के आसपास पहुंच चुकी इस उम्र ने सीमा को हार्मोंन्स के ज्वार-भाटे में झोंक दिया.

 

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बेटी किशोरावस्था में थी, जिसे अब अपनी मां से ज़्यादा अपने दोस्तों की ज़रूरत थी. पति भी अब उसके नियंत्रण क्षेत्र से बाहर था. तो कुल मिलाकर अब कोई सीमा की सुननेवाला बचा था, तो वह थे उसके डॉक्टर, जो उससे मोटी फीस वसूल कर अपना कुछ समय उसे देते थे.
रोज़ किसी न किसी डॉक्टर से मिलना सीमा के लिए जैसे समय बिताने का नया ज़रिया बन गया था .कभी स्त्री रोग विशेषज्ञ, कभी हड्डी रोग विशेषज्ञ, कभी त्वचा का डॉक्टर, तो कभी मनोवैज्ञानिक… इन सब से मिलने में सीमा का पूरा दिन निकल जाता. दवाइयां तो घर में अनाज की तरह आती थीं. आजकल सीमा की फ़ेहरिस्त में एक नया शौक शामिल हुआ था, वह था पतले होने का. और इसी वजह से वह रोज़ नए फिटनेस ट्रेनर्स और डायट प्लानर्स से मिलती रहती थी. इतनी जद्दोज़ेहद और भागदौड़ के बाद भी शायद सीमा को ख़ुद को ही नहीं पता था कि वह आख़िर ढूंढ़ क्या रही है?

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…


माधवी निबंधे

 

 

 

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Usha Gupta

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