कहानी- दो प्याला ज़िंदगी 3 (Story Series- Do Pyala Zindagi 3)

सूरज तपाक से बोला, “अजनबी? कौन अजनबी..? कहीं आप मेरे बारे में तो नहीं कह रही? अजी, मुझे तो यहां का एक-एक पेड़, एक-एक पत्ता जानता है… और आपको तो मैं रोज़ बेंच पर बैठे हुए देखता हूं, पर एक अजीब बात तो ज़रूर है कि आप चाय नहीं पीती…” सूरज ने सीमा मखौल उड़ाया. सीमा सूरज की बातों से बहुत असहज हो रही थी. उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था.. या शायद अच्छा तो लग रहा था, पर इन सब की उसे आदत नहीं थी.

 

 

 

 

… सीमा को डॉक्टर की दी हुई इस नसीहत को आज़माते हुए छह दिन बीत चुके थे. आज जब सीमा टहल कर अपने बेंच पर आई, तो चायवाले की दुकान पर शांति थी. सीमा ने रोज़ की ही तरह अपना प्रोटीन शेक पिया, पर आज उसे कुछ अजीब-सा लग रहा था, क्योंकि आज ना तो वहां ठहाके थे और चायवाला भी उसे चाय पूछने नहीं आया. वह चाह तो रही थी कि इन सब चीज़ों को अनदेखा कर दे, पर यह बदलाव आज उसे कचोट रहा था. उसने अपना बैग उठाया और चायवाले की दुकान पर गई और बहुत रूखे से अंदाज़ में पूछा, “ओ चायवाले भैया… क्या हुआ? आज तुम चाय पूछने क्यों नहीं आए? और आज आपकी दुकान की जंगली मंडली कहां है?” चायवाले ने चाय बनाते-बनाते बेपरवाह-सा जवाब दिया, “क्यों पूछे मैडम आपको? आप तो रोज़ मना कर देती हैं. सोचा था एक दिन तो हां बोलेंगी, तो आपको बिल्कुल अदरक तोड़ चाय पिलाएंगे.”

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तभी पीछे से कुछ परिचित से आवाज़ आई, “छोटू, चल भाई कूट अदरक और बना दे एक प्याला ज़बरदस्त चाय.” सीमा सोच रही थी कि अक्सर यह आवाज़ उसी मंडली में से आती है. तभी चायवाला अनअपेक्षित तरीक़े से बोला, “सूरज भैया, आपकी चाय तो कब से तैयार है. अभी मैडम आपके ही बारे में पूछ रही थीं.” सीमा बिल्कुल सहम गई और बोली, “मैं…? मैंने कुछ कहा बोला..? अपने मन से कुछ भी बातें बनाकर मत बोलो.” चायवाला तपाक से बोला, “मैडम आप ही तो बोल रही थी कि जंगली मंडली कहां है?”
सीमा को चाय वाले के बेबाक़ स्वभाव पर ग़ुस्सा आया. वह सोच रही थी कि वहां से कैसे निकले कि तभी पीछे से उसे वही चिर-परिचित ठहाका सुनाई दिया. अब वह ख़ुद को पीछे मुड़ने से रोक नहीं पाई. जैसे ही वह पीछे मुड़ी, तो उस ठहाके को शक्ल मिल गई. उसने देखा कि लगभग उसकी ही उम्र का एक आदमी बेंच पर बड़ी ही बेफ़िक्री से बैठा है. और उतनी ही बेफ़िक्री से हंस भी रहा है.
डेनिम जॉगर्स, टी-शर्ट उसके मस्तमौलेपन को दिखा रहे थे. सीमा उसे और पढ़ लेती, पर तभी उसने सीमा से बात की, “मैडम, आपने तो बढ़िया नाम दे दिया जंगली मंडली…” इतना कहकर वह फिर एक बार हंसने लगा.
सीमा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया. उसे यह सब बहुत अजीब लग रहा था. उसने अपने रूखेपन को कायम रखते हुए जवाब दिया.
“वह तो मैं… बस यूं ही कह गई. चलिए… मैं चलती हूं.” सूरज की आवाज़ ने उसे फिर से एक बार रोका, “अरे, मोहतरमा रुकिए. अभी जंगली मंडली आती ही होगी. आप बाकी सब से भी मिल लीजिएगा. तब तक आइए एक-एक कप चाय हो जाए.” सीमा को इस पूरी परिस्थिति पर ग़ुस्सा आ रहा था. उसने खीझकर जवाब दिया, “माफ़ कीजिए, पर मैं अजनबियों के साथ बातें नहीं करती और मैं चाय भी नहीं पीती.”
सूरज तपाक से बोला, “अजनबी? कौन अजनबी..? कहीं आप मेरे बारे में तो नहीं कह रही? अजी, मुझे तो यहां का एक-एक पेड़, एक-एक पत्ता जानता है… और आपको तो मैं रोज़ बेंच पर बैठे हुए देखता हूं, पर एक अजीब बात तो ज़रूर है कि आप चाय नहीं पीती…” सूरज ने सीमा मखौल उड़ाया. सीमा सूरज की बातों से बहुत असहज हो रही थी. उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था.. या शायद अच्छा तो लग रहा था, पर इन सब की उसे आदत नहीं थी. इन बातों पर क्या प्रतिक्रिया दे… वह समझ नहीं पा रही थी. सूरज की बात को बीच से काटकर उसने बोला, “मुझे घर जाना है…” उसने अपना बैग उठाया और वहां से लगभग दौड़ती हुई निकल गई.
घर पहुंची तो रमेश बरामदे में ही बैठा हुआ था. वह बोला, “सीमा आज मैंने दफ़्तर से छुट्टी ली है… चलो कहीं घूम आते हैं.”
सीमा ने जवाब दिया, “जब मैं कह रही थी, तब तो तुम्हारे पास बात करने का भी समय नहीं था और आज देखो मुझसे बिना पूछे तुमने छुट्टी ले ली. और भला कहां जाएंगे? आज तो मेरा कोई डॉक्टर का अपॉइंटमेंट भी नहीं है.”
रमेश ने उसे समझाना चाहा , “वो सीमा उस दिन मुझे बहुत काम था. अब छोटी-सी बात का बतंगड़ मत बनाओ.”
सीमा अपना आपा खोने लगी थी उसने कहा, “मैं ही बातों का बतंगड़ बनाती हूं. आप सब बहुत समझदार है. मेरी बातों का तो कोई मोल ही नहीं है. मेरा मन कब बाहर जाने का होता है, कब नहीं इससे किसी को कोई लेना-देना नहीं है. बस, मैं आप लोगों के इशारों पर नाचती रहूं.”

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रमेश ने हार मानते हुए कहा, “सीमा, पता नहीं तुम आख़िरी बार कब ख़ुश हुई थी. तुम्हें हर चीज़ से शिकायत है.” इतना कहकर रमेश वहां से चला गया. सीमा पूरा दिन रोती रही. दूसरे दिन तड़के सीमा बगीचे में गई, टहली नहीं.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…


माधवी निबंधे

 

 

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Usha Gupta

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