कहानी- एक अधूरी कहानी 3 (Story Series- Ek Adhuri Kahani 3)

“अनन्या, तुम ख़ुद सोचो न, तुम मेरी क्या हो! सब कुछ कहना पड़ेगा क्या?”

उसकी हथेली पर आया पसीना मैं महसूस कर रहा था… उसने बिना कुछ कहे, धीरे-से अपना हाथ छुड़ाया और अपनी छत की ओर बढ़ गई… उस धुंधलके में भी उसके चेहरे पर फैला सिंदूरी रंग मैंने देख लिया था, मुझे मेरी बात का जवाब मिल गया था!

 

 

… “सुन रहे हो? कितनी बार फोन किया.. यहां छत पर क्यों पढ़ रहे हो?”
मैंने धीमे से पूछा, “इतने फोन क्यों कर रही थी? कोई काम था?”
वो बनावटी ग़ुस्से से बोली, “मुझे पता था तुमको याद नहीं होगा.. आज फ्रेंडशिप डे है, तुमने विश तक नहीं किया.”
मैंने अपनी हथेलियां देखते हुए जवाब दिया, “तुम मेरी फ्रेंड नहीं हो, जो मैं विश करता.”
वो चौंककर बोली, “तो क्या दुश्मन हूं?”
मैंने अगल-बगल‌ की छतों पर नज़र दौड़ाई, कोई नहीं था. अनन्या सीढ़ियों के दरवाज़े के पास खड़ी थी, मैं धीमे-धीमे चलते हुए उसके पास पहुंचा. शाम का धुंधलका गहरा चुका था, मैंने एक लंबी सांस खींची और उसका हाथ थाम लिया, “अनन्या, तुम ख़ुद सोचो न, तुम मेरी क्या हो! सब कुछ कहना पड़ेगा क्या?”
उसकी हथेली पर आया पसीना मैं महसूस कर रहा था… उसने बिना कुछ कहे, धीरे-से अपना हाथ छुड़ाया और अपनी छत की ओर बढ़ गई… उस धुंधलके में भी उसके चेहरे पर फैला सिंदूरी रंग मैंने देख लिया था, मुझे मेरी बात का जवाब मिल गया था!
जिस तरह कुछ दिनों पहले मैं बदल गया था,वही बदलाव अब उसको अपनी‌ गिरफ़्त में ले चुका था. अब वो पहले जैसी अनन्या नहीं रही! मुझे देखते ही चेहरा गुलाबी पड़ जाता था और अगर मैं कोई मज़ाक कर दूं, तो ये गुलाबी रंग लाल होने लगता था. एक दिन उसके सामने मम्मी ने मेरे कमरे की हालत पर बोलना शुरू कर दिया, “सब सामान फैलाकर रखता है… आग भी लगे इस कमरे में तो फैलैगी नहीं, इतना कबाड़ भरा रहता है.”
अनन्या ने मम्मी की हां में हां मिलाते हुए कहा, “सही कह रही हैं आंटी! बहुत फैलाकर रखते हो तुम.”
मैंने फ़ौरन एक पर्ची में ‘तुम आ जाओ न मेरे साथ रहने, तब मिलकर साफ़ कर लिया करेंगे’ लिखकर उसकी ओर चुपचाप बढ़ा दिया. मम्मी की नज़रें बचाकर उसने वो पर्ची जैसे ही पढ़ी, ऐसा लगा जैसे एक साथ पूरा इंद्रधनुष उसके चेहरे पर खिंच गया हो. वो बहुत देर तक छुप-छुपकर मुस्कुराती रही और उसकी इस मुस्कान को याद करके मैं आनेवाले समय के न जाने कितने सपने देखता रहा. लेकिन तब मैं ये नहीं जानता था कि सपने हम अपनी मर्ज़ी से देख तो सकते हैं, लेकिन उनको पूरा करना किसी और के हाथ में होता है.

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अनन्या अपने किसी कज़िन की शादी में गई हुई थी, उसको गए दो दिन ही हुए थे, लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उससे मिले मुझे सालों हो गए हों… फोन उसका स्विच ऑफ जा रहा था. दो दिनों से उसका कोई मैसेज भी नहीं आया था. तीसरे दिन सुबह आंटी की आवाज़ से ही मेरी नींद खुली, वो मम्मी से आंगन में कुछ बातें कर रही थीं. कितना सुकून था इस ख़बर में ही कि अनन्या वापस आ गई थी!
मैंने मुस्कुराते हुए इस सुबह का स्वागत किया ही था कि मम्मी हाथ में एक मिठाई का डिब्बा लिए मेरे कमरे में घुसीं, मैंने उनके हाथ से वो डिब्बा लेते हुए कहा,
“शादीवाले घर से आई हैं आंटी.. सुबह-सुबह ही मिठाई बांटने लगीं.”
पता नहीं मम्मी का चेहरा सफ़ेद क्यों पड़ा हुआ था, मैंने चौंककर पूछा, “आपको क्या हुआ है?..”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

 

 

लकी राजीव

 

 

 

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Usha Gupta

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