कहानी- एक महानगर की होली 1 (Story Series- Ek Mahanagar Ki Holi 1)

डीजे के आसपास किशोर और युवा टोली थिरक रही थी. वहां होली खेलने से ज़्यादा सेल्फी खींची जा रही थी. सोशल मीडिया पर धड़ाधड़ स्टेटस अपडेट हो रहे थे. लड़कियां बीच-बीच में अपनी त्वचा की चिंताएं करती भी नज़र आ रही थी. किशोर टोली द्वारा हर दो सेकंड में गाना बदलने की रिक्वेस्ट से झल्लाकर सोसायटी का ऑफिस ब्वॉय धीमे स्वर में गालियां बकना आरंभ कर चुका था…

 

 

एक महानगर की सुबह ऐसी ही थी जैसी लगभग रोज़ होती है. प्रदूषण से धूमिल हो चुके आसमान मुश्किल से दिखते कुछ पंछी, गाड़ियों की आवाजाही का शोर, भवन निर्माण में लिप्त मशीनों की खड़खड़… आज बस वायु प्रदुषण के साथ-साथ वातावरण में तेज कानफोड़ू संगीत का ध्वनि प्रदूषण भी घुला था. जगह-जगह फिल्मी गाने बज रहे थे, वो भी होली के त्योहार पर आधारित… इसी से पता चल रहा था कि आज होली है, वरना कोई विशेष अंतर नहीं था.
सुबह दस बजे के आसपास का समय हो चला था. उस महानगर की एक पॉश सोसायटी में होली ऐसे ही खेली जा रही थी जैसे आजकल पढ़े-लिखे, सभ्य शहरियों की सोसायटी में खेली जाती है… सोसायटी के मुख्य गार्डन में एक तरफ़ डीजे की व्यवस्था थी, दूसरी तरफ़ जलपान और गुलाल का स्टॉल लगा था. सोसायटी निवासी घरों से निकल गार्डन में जमा होने शुरु हो गए थे. लोग एक-दूसरे को बडी सभ्यता से गुलाल लगाते, गले मिलते और आपसी गपशप में शामिल हो जाते. सीनियर सिटीजन की टोली अलग से पीछे बिछाई कुर्सियों पर जमी हुई थी. वे बीते समय की होली के मीठे अनुभवों को शेयर करते ठहाका लगा रहे थे और होली के चलन के अनुसार, एक-दूसरे की खिंचाई भी कर रहे थे.
बच्चे अपनी मस्ती में मगन पिचकारी, गुब्बारे और रंग लेकर साफ़-सुथरे शिकार ढूढ़ रहे थे और जैसे ही कोई दिखता उस पर टूट पडते… महानगरों में आए दिन रहनेवाली पानी की किल्लत के कारण सोसायटी ऑफिस से पहले ही आदेश जारी कर दिया गया था कि होली सिर्फ़ गुलाल से ही खेली जाएगी, उसमें पानी का प्रयोग बिल्कुल नहीं किया जाएगा. अगर कोई गार्डन के नलों को खोलते पाया गया, तो जुर्माना लगेगा… सेक्रेटरी और मैनेजर की पैनी नज़र नलों का बीच-बीच में निरीक्षण कर रही थी. अतः बच्चे जितना संभव हो सकता था अपने घरों से ही पिचकारी टैंक और गुब्बारे भरकर ला रहे थे।.
डीजे के आसपास किशोर और युवा टोली थिरक रही थी. वहां होली खेलने से ज़्यादा सेल्फी खींची जा रही थी. सोशल मीडिया पर धड़ाधड़ स्टेटस अपडेट हो रहे थे. लड़कियां बीच-बीच में अपनी त्वचा की चिंताएं करती भी नज़र आ रही थी. किशोर टोली द्वारा हर दो सेकंड में गाना बदलने की रिक्वेस्ट से झल्लाकर सोसायटी का ऑफिस ब्वॉय धीमे स्वर में गालियां बकना आरंभ कर चुका था…

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होली के दिन भी महिलाओं की बातों के वही घिसे-पिटे टॉपिक थे, घर के कामों का बखान, बाइयों का रोना और बच्चों की पढ़ाई की चर्चाएं… आज वे सब इसी बात से ज़्यादा ख़ुश थीं कि सोसायटी की तरफ़ से जलपान की बड़ी अच्छी व्यवस्था है. अतः उन्हें घर जाकर नाश्ता-खाना बनाने की टेंशन नहीं लेनी पड़ेगी. कुल मिलाकर कहें, तो उस सोसायटी में होली लोगों के चेहरों पर भले ही सज गई हो, मगर उनके मन और आत्मा होली की उल्लासित जादुई फुहारों से अछूते ही थे.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…


दीप्ति मित्तल

 

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Usha Gupta

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