कहानी- गुलाल 5 (Story Series- Gulal 5)

सोने के लिए अपने कमरे में आए, तो देखा यामिनी सो चुकी थी… नाइट बल्ब की हल्की रोशनी में यामिनी को ध्यान से देखा थके-थके चेहरे पर उम्र की लकीरें कुछ ज़्यादा ही उभर आई थी. वह अपने लेखन में इतना मसरूफ़ रहा कि ध्यान ही नहीं दिया कि अब जल्दी ही यामिनी थक जाती है… आज उसकी चाल में भी हल्की-सी धपक महसूस की थी… और आज तो इतना काम भी नहीं था.

 

 

… “तुम भी खेलो न होली…” वह जब भी कहता, तो वह बोलती, “मुझे न सुहाती होली-वोली… तू जाकर खेल न…” वह निकलता भी पर जल्दी ही अम्मा की गोद में दुबक जाता. धीरे-धीरे उनके रंग न खेलने की विवशता को वह समझता गया और स्वयं भी रंगों से दूरी बनाता गया… बाद में कभी खेलने का प्रयास भी किया, तो ख़ुद को सहज महसूस नहीं हुआ. लगा रंगों से एलर्जी हो जाती है. आंखों की जलन हफ़्तों नहीं जाती थी… यार-दोस्तों ने भी उससे ज़बर्दस्ती करना छोड़ दिया…
रंगों से एलर्जी ही जीवन का सत्य बन गया… मन फिर अनमना हो गया था… तो विचारों को झटका.. और एक बार फिर ब्लॉग के लिए ध्यान केन्द्रित किया, पर कलम और शब्दों में मानो ठनी हुई थी… कलम-काग़ज़ वापस वही रख दिए, जहां से उठाए थे. जब शब्द न मिले और भावों के अंकुर न फूटे, तो कलम रख देना ही बेहतर लगा…
सोने के लिए अपने कमरे में आए, तो देखा यामिनी सो चुकी थी… नाइट बल्ब की हल्की रोशनी में यामिनी को ध्यान से देखा थके-थके चेहरे पर उम्र की लकीरें कुछ ज़्यादा ही उभर आई थी. वह अपने लेखन में इतना मसरूफ़ रहा कि ध्यान ही नहीं दिया कि अब जल्दी ही यामिनी थक जाती है… आज उसकी चाल में भी हल्की-सी धपक महसूस की थी… और आज तो इतना काम भी नहीं था. पिछले साल नित्या और नीलेश दोनों थे… ढेर सारे कामों के बीच भी यामिनी का चेहरा फूल-सा खिला रहता था… आज यामिनी कुछ अलग-सी लगी थकी-थकी… बुझी-बुझी… उसने उसे ध्यान से देखा… फिर करवट बदलकर आंख मूंदकर सोने की कोशिश की… पर नींद नहीं आई… होली पर लेख न लिख पाने का मलाल था, सो देर तक फाग… रंग… सराबोर गुलाल… जैसे शब्दों को चुनकर भाव ढूंढ़ता रहा. धीरे-धीरे नींद हावी और शब्द गड्डमड्ड होने लगे… सुबह चिड़ियों की चहचहाहट के साथ मोबाइल भी बज उठा… ‘हैप्पी होली’ बोलती यामिनी के स्वर में घुली उदासी से अंदाज़ा लगाया दूसरी तरफ़ नित्या होगी… कुछ देर यूं हीं आंखें मूंदे लेटे रहने के बाद वह उठा.
यामिनी बरामदे की सीढ़ियों में बैठी नित्या से वीडियो कॉलिंग कर रही थी… मोबाइल घुमाकर लॉन में लगे अमलतास, मालती, गेंदा और गुलाब को दिखाकर उसे मायके का आभास करवा रही थी… नीलेश दरवाज़े के पास आकर खड़े हुए और मां-बेटी के वार्तालाप सुनने लगे, “और बता आज का क्या प्लान है?..” यामिनी के पूछने पर नित्या कहने लगी, “नीलेश के साथ क्लब हाउस जाने का प्रोग्राम था, पर अब… देखती हूं…”

यह भी पढ़ें: होली पर विशेष: क्या है होलिकादहन की पूरी कहानी? (Why Do We Celebrate Holi?)

“अरे, देखना क्या है… जा… न… नीलेश के साथ ये तेरी पहली होली है…” सहसा नैतिक को लगा मानो अम्मा बोल रही हों… “जा न… खेल होली…”
“तुम भी खेलो तब…” उसने अम्मा का आंचल पकड़कर कहा… और फिर चौंक पड़ा…
“आप भी तो अपना प्रोग्राम बनाओ न… जानती हूं… कहीं नहीं जाओगी.”
“अरे, मेरी छोड़… तू अपनी और नीलेश की रंग-बिरंगी फोटो भेजना…”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

मीनू त्रिपाठी

 

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