आज नैतिक, नैतिक नहीं प्रेमी बन गए थे. यामिनी ने उसके गालों पर गुलाल मला और फिर तो सारे रंग नैतिक के चेहरे पर चढ़ते चले गए… इससे पहले कि भावुक यामिनी की आंखें बरसती नैतिक ने नित्या से संपर्क साधा… पापा की रंग भरी मुठ्ठी मां के गालों की ओर बढ़ते देख वह भ्रम में डूबी थी कि अभी-अभी जो देखा वो सच था या…
… “अच्छा पापा कहां है… उनकी शक्ल तो दिखा दो इससे पहले कि वो स्टडी रूम में चले जाए…” नित्या हंसी… यामिनी भी हंसी…
और वह वर्तमान में आए और जल्दी से डाइनिंग टेबल की ओर बढ़े… कुछ सोचकर एक पैकेट गुलाल उठा लिया… मन में विचार आया गुलाल का टीका अभी ही लगा दूं… यामिनी के चेहरे की मुस्कान से नित्या की होली ‘हैप्पी’ हो जाएगी…
लाल, गुलाबी…पीला-हरा… कौन-सा खोलूं… उन रंगों को देखकर उसके मन में चुभा… समाज ने जो नाइंसाफी अम्मा के साथ की, वही आज तक वह यामिनी के साथ करता रहा… यामिनी ने होली ख़ूब खेली, पर उसके संग होली खेलने को तरस गई… सहसा अवचेतन मन में पड़ी सारी गुत्थियां उन रंगों के पैकेट के साथ खुलने लगी… सारे के सारे रंगों के पैकेट लिए वह धड़कते दिल के साथ बाहर आए… यामिनी अभी भी नित्या को उत्साहपूर्वक होली मनाने के लिए प्रेरित कर रही थी…
“पिछले साल तो तुम लोग हमारे साथ थे. देखा जाए तो असल में इस साल ही नीलेश के साथ तेरी पहली होली है…” नित्या कुछ कहती उससे पहले वह चौंक पडी..
“और हमारी भी… होली मुबारक…” दोनों मुट्ठी से गुलाल यामिनी के गालों में मलते हुए नैतिक फुसफुसाए…
यामिनी के हाथों से मोबाइल छूट गया और वह बेतरतीबी से रंगे-पुते चेहरे से गुलाल झाड़ती हुई आंखें मिचमिचाती हैरानी से नैतिक को देखने लगी…
“तुम्हारी बिटिया मेरी शक्ल देखना चाहती है, तो इसे ज़रा रंगीन बना दो…” अपने चेहरे के साथ नैतिक ने गुलाल बढ़ाया…
“और सुनो, कंजूसी मत करना… हर बार वही गुलाबी… बाकी रंग भी तो ट्राई करो… मैं भी तो देखूं मुझ पर कौन-सा ज्यादा सूट करता है.”
आज नैतिक, नैतिक नहीं प्रेमी बन गए थे. यामिनी ने उसके गालों पर गुलाल मला और फिर तो सारे रंग नैतिक के चेहरे पर चढ़ते चले गए… इससे पहले कि भावुक यामिनी की आंखें बरसती नैतिक ने नित्या से संपर्क साधा… पापा की रंग भरी मुठ्ठी मां के गालों की ओर बढ़ते देख वह भ्रम में डूबी थी कि अभी-अभी जो देखा वो सच था या… टूटा संपर्क जुड़ा तो भ्रम टूटा…
मायके में शुरू हुई एक नई रवायत ने उसे हर्ष और उत्साह से विभोर कर दिया था… यूं लगने लगा था मानो यकायक फाग बरसने लगा हो… टेसू और पलाश खिल उठे हो… और दिलों में बसंत ने अभी-अभी प्रवेश किया हो…
मीनू त्रिपाठी
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