कहानी- इंजूरियस टु हेल्थ 3 (Story Series- Injurious To Health 3)

अचानक राहुल की निगाह उस तरफ़ उठ गई, नीली साड़ी में नीली मैचिंग के साथ सौम्य चेहरा. हां, 20 बरस गुज़र जाने का और काम के असर ने बहुत कुछ बदल दिया था. ब्लू उसका फेवरेट कलर था और इसीलिए दोस्तों के बीच ‘नीलकंठ’ नाम पड़ गया था उसका. तभी छुटकू बोला, “भइया, वो साथ में उनकी छोटी बेटी है, राहिल.”  “क्या?” राहुल चौंका.  “कुछ नहीं भइया, आप चाहें तो मिल लीजिए.”  वह आगे बढ़ा. उसका दिमाग़ ज़ोर से घूम रहा था. बेटी का नाम राहिल, कितना अजीब-सा नहीं है. तो क्या नीलकंठ उसे… और वो… नहीं, नहीं, किसी बात का कोई अर्थ नहीं है.

उसका असली नाम कुछ और था. राहुल को लगा वह बेहोश होकर गिर जाएगा. आज कॉलेज में तीन साल बीतने के बाद नीलकंठ कहकर गई है, ‘तुम मुझे अपने लगे.’ माय गॉड, सचमुच उसे लगा वह ख़ुशी से पागल हो जाएगा और कुछ नहीं, कहीं ऐसा न हो शाम तक उसके मरने की ख़बर आ जाए.

इधर नीलकंठ गई, उधर दोस्तों ने घेर लिया, “क्यों बेटा, खा गए डांट, बोलो तो आज कॉलेज से लौटते समया सबक सिखा दें. हिम्मत कैसे हुई उसकी राहुल को लेक्चर देने की. इस बार 90 पर्सेंट आ गए, तो उड़ने लगी है.”

“ख़बरदार जो किसी ने उसे कुछ कहा. याद रखना, अगर उसे कुछ हुआ, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा.”

“हाय मेरे लाल! लगता है चोट दिल पर लगी है.” रवि बोला. तभी राकेश ने कहा, “चल हट यार, जा ज़रा कोई बाम लेकर आ राहुल को इश्क़ हो गया है. मरहम लगाना पड़ेगा.” इतना कहकर पूरा ग्रुप ठहाके लगाते हुए कैंटीन की तरफ़ चल पड़ा.

“ओय राहुल, ज़रा वापस आ जा, हम कैंटीन जा रहे हैं. आ जाओे, आज का बिल तुम दोगे.”

हां, उस दिन के बाद से कॉलेज में राहुल के होंठों से धुएं के छल्ले नहीं देखे गए.

उसने ख़ुद को देखा, सिगरेट अभी-अभी तो उसके हाथ में आई थी, “छुटके, तुम नीलकंठ को कैसे जानते हो.”

वह हंसा, “राहुल भइया, अब यहां रहकर हमने भी बाल धूप में नहीं सुखाए हैं.”

राहुल सॉफ्ट हो गया, “कुछ और जानते हो उनके बारे में, मेरा मतलब आजकल कहां हैं, कैसी हैं?”

“क्या भइया, अब तो शादी-ब्याह हो गया होगा, बच्चे बड़े हो गए होंगे. अभी भी नीलकंठ को भूले नहीं हैं.”

राहुल के दिल से टीस उठी. उसके हाथ से सिगरेट छूट गई थी. उसे गर्मी महसूस हुई, “छुटके, एक कोल्ड ड्रिंक दे.”

“और हां, बाक़ी छोड़, कुछ और बता नीलकंठ के बारे में.”

“कुछ नहीं भइया, इसी कॉलेज में लेक्चरर हो गई हैं, दो बेटियां हैं, दोनों टॉपर. शादी हुए 20 साल हो गए.

एक-दो बार काफ़ी पहले जब कभी मिनरल वॉटर लेती थीं, तो मुझसे पूछ लेती थीं, “राहुल की कोई ख़बर है क्या? एक बार रवि भइया आए थे, उन्हीं से पता चला कि आप सिविल सर्विसेज़ करके बड़े आदमी बन गए हैं.”

सिगरेट नीचे गिर चुकी थी, उसने अपने हुलिए पर नज़र डाली, गाड़ी पीछे खड़ी थी. न जाने शहर की कितनी निगाहें उसे देख रही थीं. वह अगर सिगरेट पीएगा, तो लोग क्रा सोचेंगे? उससे रहा नहीं गया. उसे ज़ोर की तलब लग रही थी. उसने ऊपरवाली पॉकेट से दूसरी सिगरेट निकाली. उसकी निगाह कॉलेज के गेट और उसके ग्राउंड पर थी. उसका दिल हो रहा था कि एक बार फिर उस ग्राउंड में जाए और आसमान की तरफ़ मुंह करके धुएं के छल्ले बनाए.

तभी छुटकू बोला, “राहुल भइया, वो रहीं नीलकंठ मैडम.”

अचानक राहुल की निगाह उस तरफ़ उठ गई, नीली साड़ी में नीली मैचिंग के साथ सौम्य चेहरा. हां, 20 बरस गुज़र जाने का और काम के असर ने बहुत कुछ बदल दिया था. ब्लू उसका फेवरेट कलर था और इसीलिए दोस्तों के बीच ‘नीलकंठ’ नाम पड़ गया था उसका.

तभी छुटकू बोला, “भइया, वो साथ में उनकी छोटी बेटी है, राहिल.”

“क्या?” राहुल चौंका.

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“कुछ नहीं भइया, आप चाहें तो मिल लीजिए.”वह आगे बढ़ा. उसका दिमाग़ ज़ोर से घूम रहा था. बेटी का नाम राहिल, कितना अजीब-सा नहीं है. तो क्या नीलकंठ उसे… और वो… नहीं, नहीं, किसी बात का कोई अर्थ नहीं है.

वह आगे बढ़ा, लेकिन यह क्या उसने अपनी तरफ़ देखा, सिगरेट जल रही थी, उसने सिगरेट नीचे फेंक दी. पैर से मसला. सिगरेट का पूरा डिब्बा उठाकर उसने कूड़ेदान में डाल दिया. वैसे भी यह सिगरेट करती क्या है, जिगर को जलाती है, लंग्स को ख़राब करती है.

लेकिन उसके पैर आगे बढ़ने से पहले ही पीछे की तरफ़ लौट गए, ‘राहुल, तुम एक अच्छे स्टूडेंट हो, कहीं डिस्प्लिनरी एक्शन हो गया, तो करियर ख़राब हो जाएगा.’

उसकी सिगरेट आज छूट गई थी, कॉलेज का रास्ता भी पीछे छूट गया था और उसका अतीत भी. वह गाड़ी में बैठा था, “सुनील, ज़रा गाड़ी तेज़ चलाओ और हां एसी नहीं चल रहा है क्या?”

सुनील को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, एसी तो फुल है और अभी 20 की स्पीड पर कह रहे थे कि गाड़ी तेज़ क्यों चला रहे हो और अब 40 की स्पीड पर कह रहे हैं कि गाड़ी तेज़ चलाओ, साहब लोगों का भी कोई भरोसा नहीं.

उसने मोबाइल स्क्रीन सेवर बनाया- ‘स्मोकिंग एंड लिविंग इन पास्ट इज़ इंजूरियस टु हेल्थ. दोनों से कुछ हासिल नहीं होता, दोनों ही जिगर को जलाती हैं.’

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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