‘‘कुछ नहीं कर पाओगी तुम? रोनित और हिमानी मेरे साथ पांच साल के कांट्रैक्ट में बंधे हैं. उनका करियर मेरी मुट्ठी में हैं, इसलिए वे उसी को विजेता घोषित करेगें, जिसको मैं चाहूंगा. मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ मुंबई में कोई भी म्यूज़िक कंपनी तुम्हें काम देने की हिम्मत नहीं कर सकती. तुम्हारा करियर बनने से पहले ही ख़त्म हो जाएगा…”
… ‘‘तो क्या इसके बदले में मुझे दरवाज़े पर ही इंतज़ार करने की सज़ा दोगी? अंदर आने के लिए नहीं कहोगी.” कुमार शेखर मुस्कुराए.
‘‘साॅरी सर, ख़ुशी के मारे मैं भूल ही गई थी. आइए…’’ कविता दरवाज़े से हटते हुए बोली.
कुमार शेखर भीतर आ गए और सोफे पर बैठते हुए बोले, ‘‘जानती हो, जूरी के दोनों सदस्यों रोनित सिंह और हिमानी चतुर्वेदी को मैंने ही फिल्मों में चांस दिया था और आज वे सफलता के शिखर पर बैठे हैं.’’
“जानती हूं सर, अगर आप कोयले पर भी हाथ रख देंगें, तो वह हीरा बन जाएगा.’’ कविता ने श्रद्धापूर्वक कहा.
‘‘अब हीरा नहीं, बल्कि अनमोल हीरा बनने की बारी तुम्हारी है. ऐसा दुर्लभ हीरा, जिसकी चमक के आगे शेष सारे रत्न फीके होंगें.’’ कुमार शेखर ने कविता के चेहरे पर भरपूर नज़र डालते हुए कहा.
कविता अभिभूत हो उठी. उसने कुमार शेखर के पैर छूते हुए कहा, ‘‘बस, अपना आर्शीवाद दे दीजिए. मैं आपकी आकांक्षाओं पर उतरने की पूरी कोशिश करूंगी.’’
‘‘मेरा आर्शीवाद तुम्हारे साथ है, मगर तुम्हारा स्थान मेरे चरणों में नहीं, बल्कि हृदय में है.’’ कुमार शेखर ने आगे बढ़ कविता को अपने सीने से लगा लिया.
‘‘सर, ये क्या कर रहे हैं आप?’’ कविता चिहुंक उठी.
“तुम्हें सफलता की बुलंदियों पर पहुंचाने की तैयारी.’’ कुमार शेखर मुस्कुराए. उनकी आंखो में वासना छलक उठी थी.
“बुलंदियों पर पहुंचाने या पतन की गहराइयों में धकेलने की तैयारी कर रहे हैं आप?’’ कविता ने तड़पते हुए अपने को छुड़ाने की कोशिश की.
‘‘कविता, फिल्मी दुनिया की राह बहुत कंटीली है. यहां बिना गॉडफादर के एक कदम भी बढ़ोगी, तो लहुलुहान हो जाओगी. इसलिए मेरी बन जाओ, मैं तुम्हारी ज़िंदगी बना दूंगा. तुम न केवल यह प्रतियोगिता जीतोगी, बल्कि मेरी अगली सभी फिल्मों में गाने का मौक़ा तुम्हें ही मिलेगा. सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी.’’ कुमार शेखर ने अपने होंठ कविता के होंठों की ओर बढ़ाए.
झनाक… जैसे कोई मूर्ति खंडित हो गई हो. जैसे कोई स्वप्न टूट गया हो. कविता का रोम-रोम वितृष्णा से भर उठा. उसने पूरी शक्ति से धक्का दिया, तो कुमार शेखर लड़खड़ाकर गिर पड़े. कविता ने उन पर घृणाभरी दृष्टि डाली, फिर तड़पती हुई बोली, ‘‘मैं आपको पिता तुल्य तो मानती थी, लेकिन अपना गॉडफादर बनाने के लिए तैयार नहीं हूं. मैं इस प्रतियोगिता में यहां तक अपनी मेहनत से पहुंची हूं और आगे भी अपनी मेहनत से ही बढूंगी.’’
‘‘कुछ नहीं कर पाओगी तुम? रोनित और हिमानी मेरे साथ पांच साल के कांट्रैक्ट में बंधे हैं. उनका करियर मेरी मुट्ठी में हैं, इसलिए वे उसी को विजेता घोषित करेगें, जिसको मैं चाहूंगा. मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ मुंबई में कोई भी म्यूज़िक कंपनी तुम्हें काम देने की हिम्मत नहीं कर सकती. तुम्हारा करियर बनने से पहले ही ख़त्म हो जाएगा. इसलिए मेरा प्रस्ताव मान लो, चंद दिनों में ही तुम्हें देश की टाॅप की गायिका बना दूंगा.’’ कुमार शेखर ने अपने होंठों को पोंछते हुए कहा.
‘‘मैं आपकी पूजा करती थी, इसलिए शांत हूं, लेकिन इससे पहले कि मैं सिक्योरिटी बुलाऊं और आपकी इज्ज़त तार-तार हो जाए चुपचाप चले जाइए यहां से.’’ कविता की आंखें आग उगलने लगी और क्रोध की अधिकता से उसकी सांसें फूलने लगीं.
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…
संजीव जायसवाल ‘संजय’
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