… तैयार होने के बाद उसने नाश्ता किया ही था कि इंटरकाम की घंटी बज उठी.
‘‘हैलो.’’ उसने रिसीवर उठाया.
‘‘मैडम, प्रेसवाले आपसे मिलने आए हैं.’’ रिसेप्शनिस्ट की आवाज़ सुनाई पड़ी.
‘‘ओ.के., उन्हें बैठाइए. मैं रिर्हसल के लिए निकलनेवाली हूं. उससे पहले उनसे मिलती जाऊंगी.’’ कविता ने कहा.
इंटरव्यू देने और स्टूडियो में जाकर रिर्हसल करने में दिन कब बीत गया पता ही नहीं चला. रात में आयोजकों की तरफ़ से एक पार्टी रखी गई थी. उसमें फिल्मी दुनिया की बड़ी-बड़ी हस्तियां शामिल थी. सभी कविता की प्रतिभा की दिल खोलकर तारीफ़ कर रहे थे. कईयों ने तो उसे विजेता बनने की अग्रिम बधाई भी दे दी थी, जिसे सुन कविता बहुत रोमांचित हो रही थी. उधर शब्द कुमार को भी लोगों की भीड़ ने घेर रखा था. कईयों की नज़र में विजेता वह ही था.
पार्टी के बाद कविता अपने कमरे में आ गई. लोगों की प्रशंसा से वह अभिभूत थी. जिस तरह से उसने एक के बाद एक अलग-अलग धुन और राग पर सफलतापूर्वक गाया था, उसकी तारीफ़ करते लोगों की जुबान नहीं थक रही थी. जाने क्यूं कविता का उसी अंदाज़ में एक बार ख़ुद अपने को ही सुनने का मन होने लगा. मंच पर तो उसकी समस्त इंद्रियां धुनों को पकड़कर उस पर सही ढंग से गाने पर केंद्रित थीं, किंतु अब वह ख़ुद को एक बार सुनकर अपना आकलन स्वयं करना चाहती थी, ताकि कोई कमी रह गई हो, तो फाइनल राउंड से पहले उसे दूर किया जा सके.
कुछ सोच कर उसने अपने मोबाइल को निकालकर उसका रिकाॅर्डर ऑन किया और जिस क्रम में उसने सेमीफाइनल में गीत गाए थे, उसी क्रम में गाकर अपने गीत रिकाॅर्ड करने लगी. तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई. उसने उठकर दरवाज़ा खोला, तो सामने कुमार शेखर खड़े थे.
‘‘सर, आप?’’ कविता की आंखें आश्चर्य और ख़ुशी से फैल गईं. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जिस व्यक्ति को वह अपना आदर्श मानती थी वह उसके सामने खड़ा है.
‘‘कविताजी, ग़ज़ब की प्रतिभा है आपके अंदर. मैं कई दिनों से व्यक्तिगत रूप से मिलकर आपको बधाई देना चाहता था, लेकिन व्यस्तता के चलते आ न सका.” कुमार शेखर ने कहा.
‘‘सर, मैं जानती हूं, लोग आपसे मिलने के लिए महीनों इंतज़ार करते हैं. आपके पास किसी से मिलने का वक़्त कहां?’’ कविता ने अपनी ख़ुशी को दबाते हुए कहा.
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…
संजीव जायसवाल ‘संजय’
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