कहानी- किटी पार्टी 5 (Story Series- Kitty Party 5)

 

“ईश्वर ने पुरुष को कोमल भावनाएं व्यक्त करने में नारी-सा समर्थ नहीं बनाया है. पर इतना संगदिल भी नहीं बनाया है कि वह अपने माता-पिता की ज़िम्मेदारी उठाने से बेवजह पल्ला झाडे. क्यों नहीं नारी अपने पैरेंट्स के साथ-साथ अपने पति के पैरेंट्स के प्रति भी कोमल भाव रखे. कौन बेटा शुरू से ये कहता है कि वह अपने माता-पिता को अपने साथ नहीं रखेगा. मुझे तो लड़के ‘बेचारे’ लगते है, जो अपने घर की शांति बरक़रार रखने के लिए अपनी पत्नियों की इच्छा-अपेक्षा को ख़ुद पर लादकर समाज में बदनाम होकर अधर्मी करार दिए जाते है…”

 

 

 

“तो तू मानती है कि बेटे अपने माता-पिता की चिंता करते हैं और उन्हें साथ रखना चाहते हैं.”
“कहां की बात कहां ले जा रही है…” सुनीता कुछ चिढ़-सी गई, तो सुधा ने हस्तक्षेप किया.
“अब छोड़ो इस ‘न’ सुलझनेवाले मु्द्दे को… सौ बात की एक बात कि सास-बहू के बीच खटपट और चुगलियों में बड़ा मज़ा है.”
“सोचो, यदि सोशल गैदरिंग में लड़के अपने सास-ससुर को हमारी तरह निशाना बनाए उनकी बुराई-चुगली करे. मज़ाक उड़ाए और मज़ा ले, तो हमें कितना बर्दाश्त होगा. जबकि अपने सास-ससुर के प्रति हमारा कमोबेश यही व्यवहार होता है.”

 

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“अरे, तो ठीक है न अनुभा… लड़के अपने सास-ससुर को डिस्कस नहीं करते, तो वह अपने माता-पिता के प्रति लाड-दुलार भी नहीं दिखाते. ये उनका जेंडर प्राॅब्लम है. तुमने ‘मेंस आर फ्रॉम मार्स विमेन आर फ्रॉम वीनस’ किताब नहीं पढ़ी क्या… उसमे साफ़-साफ़ लिखा है कि मेल-फीमेल अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में एक-दूसरे से उलट है. फीमेल अपनी भावनाएं बख़ूबी व्यक्त कर पाती हैं, जबकि मेल अपनी भावनाओं को तीव्रता से व्यक्त करने में असमर्थ है.” सुधा के कहने पर अनुभा गंभीर हो गई.
“ईश्वर ने पुरुष को कोमल भावनाएं व्यक्त करने में नारी-सा समर्थ नहीं बनाया है. पर इतना संगदिल भी नहीं बनाया है कि वह अपने माता-पिता की ज़िम्मेदारी उठाने से बेवजह पल्ला झाडे. क्यों नहीं नारी अपने पैरेंट्स के साथ-साथ अपने पति के पैरेंट्स के प्रति भी कोमल भाव रखे. कौन बेटा शुरू से ये कहता है कि वह अपने माता-पिता को अपने साथ नहीं रखेगा. मुझे तो लड़के ‘बेचारे’ लगते है, जो अपने घर की शांति बरक़रार रखने के लिए अपनी पत्नियों की इच्छा-अपेक्षा को ख़ुद पर लादकर समाज में बदनाम होकर अधर्मी करार दिए जाते है… वहीं बेटियां अपने माता-पिता की सेवा की वाहवाही लूट ले जाती है. काश! कोई बहू बोले कि तुम अपने मम्मी-पापा के साथ ग़लत कर रहे हो. उनका सम्मान करना सीखो, तब भी लड़का अपने मां-बाप के साथ ग़लत करे, तो मानू कि बेटे नालायक और बेटियां ईश्वर का वरदान हैं.”
अनुभा के मुंह से लड़कियों के प्रति इतनी कटुता झरती देख सब हैरान थे.

 

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“हे भगवान! आज लडकों की वकालत क्यों? कोई बात है क्या…” सुधा के पूछने पर अनुभा गंभीर स्वर में बोली, “आज मन में बहुत कुछ उमड़-घुमड़ रहा था. मन व्यथित है…”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

 

मीनू त्रिपाठी

 

 

 

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