कहानी- मेघा की शादी 5 (Story Series- Megha Ki Shadi 5)

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मैंने गंभीरता से कहा, “हां, वो तो है, नुक़सान बहुत कराया तुमने.”
मेघा एक पल ठहरकर मुझे पर्स उठाकर मारने के लिए दौड़ी. मैं आगे-आगे भागते हुए हंसता जा रहा था, फिर थककर, पेट पकड़कर मैंने पूछा, “नुक़सान बचाना हो, तो जल्दी शादी कर लो. कोई लड़का नहीं पसंद आए तो, मैं हूं ना.”

 

 

 

 

… मेघा के घर में मातमी सन्नाटा पसरा हुआ था. अंकल-आंटी और उनके कुछ क़रीबी रिश्तेदार वहां मौजूद थे. सबके चेहरों के रंग उड़े हुए थे. कोने में रखे बक्से पर बैठी मेघा अपनी आंखें पोंछती जा रही थी. ख़ूब रोई हुई, सूजी हुई, लाल आंखें! मैं वहीं पास में रखी एक कुर्सी पर बैठ गया था. आंटी ने पहले छूटी कोई बात फिर से उठा दी थी, “देखो, वैसे कोई कमी नहीं है विनीत में. अपना-अपना स्वभाव है. किसी को ज़्यादा ग़ुस्सा आता है, किसी को कम.”
मेघा रोते हुए बोली, “हां तो फेंक आइए मुझे वहां. मत सुनिए मेरी बात! पहले जब भी आपसे कहा, आपने मुझे समझाकर चुप करा दिया. अरे, विनीत अजीब है. पूछिए ना आप आशीष से ये, एक बार मिलकर ही समझ गया था.”

 

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मुझे समझ में आने लगा था. मेघा इस रिश्ते से ख़ुद भी ख़ुश नहीं थी, पहले मना किया होगा, तो घरवालों ने हल्के से लिया होगा.
“क्या आज फंक्शन में कुछ हुआ है?”
मेरे पूछते ही मेघा ने अपना फोन मेरी ओर बढ़ा दिया था. विनीत ने एक लंबा-चौड़ा मैसेज भेजकर मेघा को ख़ूब सुनाया था कि एंगेजमेंट पार्टी में वो अपने किसी कज़िन जीजाजी के साथ डांस क्यों करने लगी थी? इतने वाहियात शब्द थे. इतने निचले स्तर की भाषा. मुझसे पूरा मैसेज पढ़ा ही नहीं गया. जी में आया, सुबकती हुई मेघा का हाथ थामकर कह दूं, “तुम रो नहीं यार… मैं हूं ना…”
सुबह तक बीसों तरह की बातें हुईं. कुछ लोग कहते कि ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं है कि शादी तोड़ी जाए. बाकी लोग कह देते कि पहले भी कई बातें ख़राब लगी हैं. अब वहां शादी करने का कोई सवाल ही नहीं उठता. सोच-विचार करके अंकल ने सुबह सूरज निकलने के साथ ही संदेश भेज दिया था, ये रिश्ता अब और निभाया नहीं जा सकता.
शादीवाले घर में सन्नाटा फैल गया था. कुछ रिश्तेदार तत्काल बुकिंग की टिकट देखने में लग गए थे. बाकी अपनी उसी टिकट से जाने के लिए अभी तक घर में जमे थे. दो दिन बीत चुके थे. इस बीच मैं कई बार अंकल-आंटी और मेघा से मिलकर उनको हिम्मत देता था और ‘सब ठीक हो जाएगा…’ कहकर उनको संभालने की कोशिश भी करता था. उस शाम घर गया, तो मेघा अपना पर्स टांगे कहीं जा रही थी. एकदम उखड़ी-उखड़ी… ग़ुस्से से भरी हुई. मैंने पूछा, ”कहां जा रही हो?”
वो तमककर बोली, “कहीं भी. जहां मेरा मन, तुमको चलना है तो चलो… पूछो मत.”
मैं बिना कोई सवाल किए उसके साथ सीढ़ी उतर आया. कार में भी वो चुपचाप बैठी रही. मैंने उसका मूड देखते हुए कार झील के पास ले जाकर रोक दी. बिना कुछ बोले तेज़-तेज़ क़दमों से चलती हुई वो झील के पास पहुंची. एकटक पानी को देखती रही, फिर धीरे से बोली, “तुमको कैसे पता कि मुझे इस समय यहीं आना था, पानी के पास?”
“क्योंकि मैं भी यहीं आता हूं, जब बहुत परेशान होता हूं.” मैं मुस्कुराया.
“अरे यार, हम एकदम एक से हैं… हम इतने सालों तक अलग कैसे रहे.” मेघा भावुक होने लगी थी. मैंने उसका संभला हुआ मूड देखकर पूछा, “पहले बताओ, आज घर में क्या हुआ? किस बात पर इतना हंगामा मचा हुआ था?”
“यार, अजीब लोग हैं परिवार में… अभी-अभी तो सब हुआ है. नया रिश्ता बताने लगे अभी से. और तो सुनो ताऊजी ने कहा कि छह महीने के अंदर शादी कर लो, तो मैरिज हॉलवाला भी उसी पेमेंट में कर देगा सब. मतलब इस माहौल में भी सबको नुक़सान की पड़ी है?” मेघा ने बताते हुए मेरी ओर देखा.
मैंने गंभीरता से कहा, “हां, वो तो है, नुक़सान बहुत कराया तुमने.”
मेघा एक पल ठहरकर मुझे पर्स उठाकर मारने के लिए दौड़ी. मैं आगे-आगे भागते हुए हंसता जा रहा था, फिर थककर, पेट पकड़कर मैंने पूछा, “नुक़सान बचाना हो, तो जल्दी शादी कर लो. कोई लड़का नहीं पसंद आए तो, मैं हूं ना.”

 

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मेघा एक पल को ठिठकी. फिर उसने भी हांफते हुए जवाब दिया, “पहले डिसाइड करो, सब्ज़ी कौन लाएगा घर में?”
मैं उसकी बात पर खिलखिलाकर हंसने लगा था, लेकिन वो मुझे मुस्कुराते हुए एकटक देख रही थी. शाम का सूरज सब कुछ सिंदूरी कर रहा था… हमारे चेहरे भी, हमारे मन भी!

लकी राजीव

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Usha Gupta

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