कहानी- नई किरण 2 (Story Series- Nai Kiran 2)

“अरी लड़कियों, ये बच्चे-बूढ़े एक समान होवे हैं. असहाय! दूसरों पर आश्रित! बस, फ़र्क़ ये है बच्चों से सब प्यार करते हैं और बूढ़ों से सब उपेक्षा! एक बनता है… दूसरा मिटता है. बच्चे के आते 13 दिन और बूढ़े के जाते 13 दिन…”

“… आप भी ना केशव… क्या-क्या सोच लेते हो?” कावेरी झिड़क देती.
“नहीं कावेरी! बुढापे में बच्चों का मोहताज़ नहीं होना.” केशव अपना पक्ष रखते.
“अरे नहीं, अपना प्रांजल ऐसा नहीं है और प्राची को भी ससुराल में कहां कमी है. इतना प्यार लुटाया है हमने बच्चों पर, कुछ तो देंगे हमें वापस.” कावेरी अपने पुत्र के पक्ष में दलील देती नज़र आती.
लेकिन जब प्रांजल का महाराष्ट्र से दिल्ली स्थानांतरण हुआ, तो उसने नोएडा में ही फ्लैट ले लिया यह कहते हुए, “मम्मा, दिल्ली का ट्रैफिक तौबा. सुभाष नगर से रोज़ नोएडा की यात्रा नहीं हो पाएगी हमसे.’’
कावेरी और केशव का मन दरका था, पर आवाज़ नहीं आई थी. अंदर से भीगे हुए मन से और ऊपर से मुस्कुराते हुए कावेरी ने कहा था, “कोई बात नहीं बेटा, जैसे तुम्हें सुविधा हो.”
कावेरी स्थानीय कन्या महाविद्यालय में प्राचार्य के पद से पांच साल पहले ही रिटायर हुई है और केशव विद्युत विभाग से इंजीनियर के पद से सात साल पहले रिटायर हुए थे. अपनी नौकरी के चलते दोनों ही अपने-अपने महकमे के बादशाह थे. ऑफिस, घर, कॉलेज, मीटिंग, सेमीनार, पार्टी, उत्सव, प्रोमोशन, प्रशिक्षण, नौकरी के तमाम तामझाम के बीच कभी विचार ही नहीं आया कि रिटायर्ड जीवन में कभी सोचना भी पड़ेगा.
कावेरी जब कॉलेज के उत्सवों में लड़कियों के सामने स्त्री विमर्श की बात रखती, तो स्वयं को सर्वोच्च पाती. स्वयं के निर्णयों पर मन ही मन इतराती. मनोविज्ञान की ढेरों किताबें लिख डाली. कुछ शोध परक, कुछ मन परक, कुछ दर्शन परक किताबें समाज के सभी वर्गों के विमर्श पर थी, पर कभी वृद्धावस्था विमर्श का ख़्याल ही नहीं आया. सोचती भी क्यों? वो तो अपने ही निर्णयों को सर्वोच्च मानती रही.
अपने आसपास के वृद्ध जीवन को देखकर उसने अपने जीवन के निर्णय पहले ही तय कर लिए थे. वह जब छात्राओं के बीच बात करती, तो पारिवारिक मूल्यों की बात करती, “भौतिकता को दरकिनार करो लड़कियों, आध्यात्मिकता ही काम आएगी, परिवार को स्नेह से सींचो, मज़बूती आएगी.” कावेरी को आज वृद्ध-विमर्श की आवश्यकता महसूस हो रही थी.
कावेरी फिर से पलंग पर लेट गई और पिछ्ली यादों के घेरे में प्रविष्ट हो गई.

यह भी पढ़ें: पीरियड्स के दौरान कोरोना वैक्सीन लेना बिल्कुल सेफ, एक्सपर्ट्स ने कहा वैक्सीन से नहीं बिगड़ती फर्टिलिटी (COVID Vaccine During Periods Is Safe, It Does Not Pose Any Risk To Fertility, Assures Experts)

वो याद कर रही थी जब कॉलेज की सखी माया के घर उसकी दादी से बात करती थी. वो कहा करती थीं, “अरी लड़कियों, ये बच्चे-बूढ़े एक समान होवे हैं. असहाय! दूसरों पर आश्रित! बस, फ़र्क़ ये है बच्चों से सब प्यार करते हैं और बूढ़ों से सब उपेक्षा! एक बनता है… दूसरा मिटता है. बच्चे के आते 13 दिन और बूढ़े के जाते 13 दिन…” माया की दादी अम्मा फिक्क से पोपले मुंह से हंस देती. कावेरी सोचती ये कैसा दर्शन है. वो आश्चर्य से दादी मां का चेहरा देखती और उनका रेडियो चालू रहता.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…


संगीता सेठी

 

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli