… बीते कल की दोपहर की घटी घटना याद कर यामिनी भी चिंतित हो गई. सब खाना खाने जा रहे थे कि नव्या ने दाल चम्मच में लेकर सूंघा और पूछा, “मम्मी दाल किससे छौंकी है..?”
“हींग से, क्यों?”
“मम्मी मुझे ज़रा भी महक नही आ रही है…”
ये कोई पहली बार नहीं था, पहले भी कई बार नव्या ने सूंघकर अपनी सूंघने की क्षमता पर शक ज़ाहिर करके सबकी धड़कने बढ़ाई…
“नहीं-नही ख़ुशबू तो है…” दाल की कटोरी उठाकर सूंघते हुए नवल घबराकर बोले.
सबकी घबराहट को देख गोदावरी ने तसल्ली दी, “अरे, आजकल कौन-सा हींग असली आ रही है…”
“नहीं-नहीं दादी कुछ गड़बड़ है. मैं अपना खाना अपने कमरे में ले जा रही हूं. आज मुझे ख़ुद को ऑब्ज़र्व करना है. प्लीज़ मेरे कमरे में कोई न आना…” कहकर वह अपनी प्लेट लिए चली गई… फिर तो खाना किसी के गले नहीं उतरा…
पूरे दिन वह कमरे में बंद रही और नवल फोन पर ही डॉक्टरों से ‘लॉस ऑफ स्मेल’ पर चर्चा करते रहे. नव्या को कोविड हुआ है, यह संदेह पुख्ता होता उससे पहले ही शाम को कमरे का दरवाज़ा खोलकर उसने झांका और चिल्लाकर पूछा, “दादी, आटे का हलवा बना रही हो क्या?..”
यह सुनते ही सबने चैन की सांस ली और समझ गए कि मां ने नव्या की पसंद का आटे और देशी घी वाला हलवा बनाने की ज़िद क्यों की.
इस प्रसंग का ध्यान आते ही यामिनी चिंता भरे स्वर में बोली, “मां, मैं भी उसके डर से परेशान हूं…”
“परेशान हो तो कुछ करो बहू, वरना यह बौरा जाएगी… कोरोना तो नही उसका डर जान निकाल लेगा.”
“जानती हूं मां… मैं और नवल भी समझते हैं, पर क्या करें. आजकल किसी के भी हाथों में रिमोट आते ही न्यूज़ चैनल का बटन ही दबता है… और नव्या तो ख़ासकर न्यूज़ चैनल से चिपकी रहती है.”
“तो तुम भी नव्या की वह नस दबाओ, जो बीमारी पर दवा का काम करे.”
“मतलब?”
“मतलब यही कि उसका ध्यान कहीं और अटकाओ.”
“मां कहना आसान है, पर वह अब कोई छोटी बच्ची नहीं रही, जो खेल-खिलौने से बहल जाए… और उसका डर अनोखा नहीं है सभी डरे हैं…”
“बुरा लगे तो लगे पर मैं कहे बिना नहीं रह सकती उसका पगलप्पन बढ़ता जाएगा, जो ध्यान नही दिया.”
“तो बताओ न मां, कहां लगाए उसका ध्यान?”
“ये तुम लोग सोचो… वैसे एक दिन दुखी होकर सबसे कह नहीं रही थी कि मैं सोच रही थी कि कोरोना चला गया अब सब नॉर्मल होगा. ख़ूब घूमूंगी… बेकरी का कोर्स करूंगी.”
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…
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