… “अरे, अब कब तक सच से मुंह चुराऊंगी… खैर छोड़ो ये सारी बातें… इस मुये कोरोना के चलते तुम सब भूल ही गए कि परसों एकादशी को मेरा बर्थडे है… अबकी बार केक काटूंगी सुन लो सब… सब गाना गाना हैप्पी बर्थडे टू यू…”
घोर निराशा से अचानक बर्थडे पर पहुंच जानेवाली दादी का भी मानसिक संतुलन बिगड़ गया है या शायद वह अपने बर्थडे में मन की सारी दबी आकांक्षा पूरा कर लेना चाहती हों.
जहां नव्या यह सोच रही थी, वहीं नवल “ये केक-वेक के चोंचले नहीं सुहाते… अपने जन्मदिन पर मन्दिर जाऊंगी और कान्हा को खोए के पेड़े चढ़ाऊंगी.” हमेशा ऐसा बोलने वाली मां को केक काटने की बात कहां से सूझी, ये सोचकर चक्कर में था…
पर यामिनी उनके मन की थाह ले चुकी थी, इसलिए उसने नवल और नव्या को अकेले में समझाया, “हो सकता है मां के मन में ऐसी कोई इच्छा दबी हो… पर मां बाहर का केक नहीं खाती हैं… घर पर ही बनाना पड़ेगा. वैसे भी बूढ़े लोग मेहमान होते है, जाने कब उनकी कोई इच्छा…” अधूरी छोड़ी बात पर सब भावुक हो गए.
“मां ख़ुश हो जाओ नव्या ने ओ.टी.जी. खोल लिया…” शाम की चाय के समय यामिनी उनके कानों में फुसफुसाई, तो वे धीमे से बोलीं, “ये अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी है… जोश ठंडा न पड़े…”
पत्नी और मां के बीच हुई बातचीत के स्वर नवल के कानों पर पड़े, तो माजरे को समझकर हंस पड़े और बोले, “आप दोनों तो बड़ी ड्रामेबाज़ हो…”
“ज़हर को ज़हर ही काटता है. तेरी बौराई बिटिया का ध्यान कहीं और अटकाने के लिए ये करना पड़ा…”
नव्या ने आठ-दस वीडियो देखकर केक बनाया. जब हैप्पी बर्थडे के गाने के साथ काटा गया, तो लगा कुछ देर के लिए कोरोना गायब हो गया या यूं कहा जाए कि कोरोना का डर गायब हो गया.
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…
मीनू त्रिपाठी
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