… अच्छे प्रस्ताव पर विचार न कर बाबूजी गहन अन्वेषण में लग गए थे. अम्मा से कहने लगे, ‘‘मैंने ठीक समझा था लड़के या कुटुंब में कोई दोष है, इसलिये शर्माजी लड़की ढूंढ़ते-फिरते हैं. लड़का अच्छा है, पर शर्माजी तिगड्डा ब्राह्मण हैं (तिगड्डा ब्राह्मणों में तीन परिवारों की लड़कियां परस्पर एक-दूसरे परिवार में ब्याही जाती हैं. जैसे सोहनी का विवाह नृप से, नृप की बहन का विवाह अन्य परिवार में, उस अन्य परिवार की लड़की, रोहन से ब्याही जाए, तो जो समीकरण बनता है, उसमें तीनों परिवार एक-दूसरे के पैर पूजने और अपने पैर पुजवाने की पात्रता रखते हैं. इसलिए तिगड्डा को छोटा ब्राम्हण माना जाता है). शर्माजी अच्छे ब्राह्मण की लड़की लेकर अपनी ब्राह्मणी सुधारना चाहते हैं. शर्मा उपनाम से समझ में नहीं आता ब्राह्मण छोटे हैं या बड़े. संकोच है, पर शर्माजी से माफ़ी मांग लूंगा.’’
अच्छा अवसर ब्राह्मणवाद की भेंट चढ़ गया था. यही रोहिणी के साथ हुआ. बीए के उपरांत सिलाई सीख रही थी. बाबूजी बाहर खुलनेवाले कमरे को ऐसे किसी अकेले को किराए पर देते थे, जिसके रहने से अड़चन न हो. सिविल जज की परीक्षा उत्तीर्ण कर यहां ट्रेनिंग पर आया दिनकर सहाय कमरे में रह रहा था. उसके और रोहिणी के मध्य पनप गए आकर्षण का अनुमान होते ही बाबूजी ने दिनकर से कमरा खाली करा लिया था. रोहिणी का सिलाई सेंटर जाना बंद. जाएगी और दिनकर से मुलाक़ात करेगी. अम्मा की सहमति से प्रतिबंध के बावजूद वह कोर्स पूरा करने के लिए सिलाई सेंटर जाती रही. बाबूजी के लौटने से पहले लौट आती. एक दिन देर हो गई. घर आ चुके बाबूजी ने उसे कुंए में पानी भरनेवाली नारियल की मोटी रस्सी से पीटा भर नहीं था, आठ वर्ष बड़े व्यक्ति से आनन-फानन उसका विवाह कर मर्यादा भी बचा ली थी.
सोहनी ने निश्चिन्त सो रही रोहिणी को निहारा. रात्रि लट्टू के क्षीण प्रकाश में उसका मुख अकिंचन जान पड़ा. क्या यह दिनकर को भूल पाई? एक अच्छी संभावना को खो देने का अभाव इसे मथता है? अभाव से जन्मा है द्रोह? संजू से दो माह छोटा, छोटे ब्राह्मण कुल का प्रारब्ध. शादी जबलपुर जाकर करनी है. यह शायद परंपराओं को तोड़ने के लिए ख़ुद को दिनों से तैयार कर रही है. पिछड़ गईं अपनी कामनाओं को संजू के जीवन में घटित होते हुए देखना चाहती है.
विजयी हो इसका प्रयास. पूर्ण हों कामनाएं.
सोहनी लौट रही है.
रोहिणी बार-बार आग्रह कर रही है.
‘‘पूरे परिवार को जबलपुर चलना है.’’
जबलपुर.
पुजारी पैलेस (शादी घर) की लोमहर्षक सज-धज.
व्यंजनों की विविधता देख लगता नहीं लोग भूख से आत्महत्या कर लेते हैं. विधि-विधान सहजता से सम्पन्न हो रहे हैं. कोई हड़बड़ी नहीं. तब लड़की के विवाह में कैसी हड़बड़ी दिखती थी. मांग और पूर्ति, पूर्ति और मांग की चिल्लाहट. पंडितजी सूत मांग रहे हैं. नहीं मिल रहा. होश से रखना चाहिए न.
“अरे तुम, औरतों के पास न घुसो, बारातियों का स्वागत करो… लड़की को लाओ, क्या फेरों का मुहूर्त निकाल दोगे? विदाई में कितना समय लग रहा है…”
विदा होने तक कन्या पक्ष सूली पर लटका रहता था. पुजारी पैलेस में दोनों पक्ष अग्रणी बने बैठे हैं. रहिए महाराजा स्टाइल से. चलो, आज की तारीख़ में ख़ुद को महाराजा मान लिया जाए. मंशा बोली, ‘‘मां, संजू सुंदर लग रही है न?’’
सोहनी ने बगल में बैठी मंशा को देखा, कितनी सुंदर कितनी गुणी है. क्या इसे संजू की तरह दुल्हन बनने की आकांक्षा हो रही है? कहीं एक अच्छा लड़का है, जो इसके लिए हो? कहां होगा वह अच्छा लड़का? इंटरनेट पर?
ज़ेहन को सक्रिय कर रहे हैं कुछ वाक्य… हम लोग समय के बदलाव को मंज़ूर नहीं करेंगें, तो अपने बच्चों को वे मौक़े नहीं दे पाएंगे, जो उन्हें मिलने चाहिए… कस्बा कल्चर से बाहर निकल अपनी कसौटी बदलो. लड़कियां अपने लिए मौक़े रच रही हैं. लड़का पसंद कर रही हैं. ज़बर्दस्त घटना है… अद्भुत भाव में सोहनी.
वह बदल रही है. धारणा बदल रही है. कितना कुछ तो बदल गया. ऋतुओं का समय पर आना-जाना बदल गया. नदियों का पानी बदल गया. रिश्तों की परिभाषा बदल गई. दुनिया का नक्शा बदल गया. प्रतिमान बदल गए. वह बदलाव को नहीं रोक सकेगी. बदलाव से दूर रहना अर्थात् मौक़े खो देना है.
मंशा से कहेगी अपना प्रोफाइल मैट्रीमोनियल साइट पर डाल दो.
सुषमा मुनीन्द्र
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