कहानी- प्यार जैसा कुछ नहीं, लेकिन… 1 (Story Series- Pyar Jaisa Kuch Bhi Nahi, Lekin… 1)

 

शादी के बाद मैं और श्लोक ऑस्ट्रेलिया शिफ्ट होनेवाले हैं. मैं अपनी आगे की पढ़ाई भी वही से करनेवाली हूं. वहां के एक अच्छे कॉलेज में मेरा सिलेक्शन भी हो गया है. फिर क्यों मेरा दिल उस गली के आख़िरी मोड़ पर अटक गया है; जहां मात्र चुप के और कुछ नहीं. मेरे जीवन का यह मौन कॉलेज के पहले दिन के शोर के साथ आरंभ हुआ है.

 

 

 

 

मुझे रात के साथ का अकेलापन पसंद है. ख़ामोशी के झूले में लंबी उड़ान भरता मन का पंछी, यादों के आकाश पर मीलों का सफ़र तय कर लेता है. रात अपनी-सी लगती है, मां की गोद-सी, किसी पुराने दोस्त के कंधे-सी, प्रियतम की बांहों-सी!
पिछले कुछ दिनों से रात का यह एकांत भी बमुश्किल ही नसीब हो पा रहा था. घर में शादी का माहौल जो था. शादीवाले घर में दिन आधी रात तक रहता है, कभी-कभी तो उसके बाद भी. शादी के सौ काम होते हैं, काम समाप्त होते हैं, तो नाच-गाना आरंभ हो जाता है.
अरे, मेरा परिचय तो रह ही गया. मैं सौदामिनी, और यह घर मेरी ही शादी की तैयारियों में व्यस्त है. तीन रातों के बाद मेरी शादी है, श्लोक के साथ. मैं ख़ुश हूं! नाख़ुश होने जैसा कुछ है भी तो नहीं. श्लोक अच्छे हैं. उनका परिवार भी मुझे पसंद है.

 

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शादी के बाद मैं और श्लोक ऑस्ट्रेलिया शिफ्ट होनेवाले हैं. मैं अपनी आगे की पढ़ाई भी वही से करनेवाली हूं. वहां के एक अच्छे कॉलेज में मेरा सिलेक्शन भी हो गया है. फिर क्यों मेरा दिल उस गली के आख़िरी मोड़ पर अटक गया है; जहां मात्र चुप के और कुछ नहीं. मेरे जीवन का यह मौन कॉलेज के पहले दिन के शोर के साथ आरंभ हुआ है.
स्कूल का बचपन जब कॉलेज की जवानी में कदम रखता है, वह जीवन का वसंत होता है. पिंजड़े की चिड़िया को उड़ने के लिए आकाश मिल जाता है. हम इतने सालों के अटूट साथी स्कूल यूनिफॉर्म को अलविदा कहकर रंग-बिरंगे कपड़ों की दुनिया में पहला कदम रख देते हैं.
घर से कॉलेज जाने के लिए मेन रोड से ऑटो पकड़ना पड़ता था और मेन रोड तक पहुंचने का रास्ता दो गलियों से होकर जाता था.
बनारस के मोहल्लों की ख़ास बात होती हैं उनकी पतली गलियां. बनारस के बारे में तो कहा भी जाता है कि जो मज़ा बनारस में, न पेरिस में, न फारस में. फिर हमारा मोहल्ला गोविंदपुरी तो अस्सी घाट के पास ही है.
मशहूर साहित्यकार काशीनाथ सिंहजी ने अपने उपन्यास में जिस मोहल्ले अस्सी का ज़िक्र किया है, मेरे मोहल्ले की ज़िंदगी और ज़िंदादिली उससे कुछ कम भी नहीं है. यहां एक तरफ़ कमर में गमछा और कंधे पर लंगोट टांगे दिखते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ़ जींस-शर्ट पर गमछा टांगे और आंखों पर नकली रे बैन लगाए भी दिख जाते हैं. कुछ ऐसे हैं जिनकी सुबह सूरज की पहली किरण गंगा में नहाकर होती है, तो कुछ ऐसे जिनकी सुबह कई गंगा, जमुना और सरस्वतियों को ताड़कर होती है.
कॉलेज के पहले दिन की उस सुबह मैं समय के पहले तैयार हो गई थी. मैं जब गरिमा के घर पहुंची, तो वह भी तैयार ही बैठी थी. हम साथ ही निकाल पड़े थे. लेकिन मैं और गरिमा अभी दूसरी गली में मुड़े ही थे कि बिन मौसम बरसात ने आकर हमारे गर्म जोश को ठंडा कर दिया. हमें ख़ुद से अधिक अपने नए कपड़ों की चिंता थी. इसलिए आसपास कोई ठिकाना ढूंढ़ने लगे. सामने एक जेंटस पार्लर था. उसके आंगन में पहले से ही कुछ लोग खड़े थे, हम भी खड़े हो गए.

 

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मेरे बाल थोड़े गीले हो गए थे. उन्हें सूखाने के लिए मैं अपनी हथेली को गर्दन के पीछे ले गई और धीरे-धीरे बालों को नीचे से सहलाने लगी. तभी मैंने अचानक अपनी पीठ और गर्दन पर किसी की गर्म सांसों को महसूस किया. मैं तुरंत पीछे पलटी और चौंक गई. मैंने देखा एक चार-पांच साल का बच्चा कुर्सी पर खड़ा होकर मेरी गर्दन पर फूंक रहा है. मुझे कुछ समझ नहीं आया, तो मैंने इशारे से पूछा कि यह क्या हो रहा है. बच्चा भी घाघ था. बोला कुछ नहीं. मात्र दाहिनी तरफ़ इशारा कर दिया.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

पल्लवी पुंडीर

 

 

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Usha Gupta

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