कहानी- प्रणय परिधि 6 (Story Series-Pranay Paridhi 6)

कमरे में सिर्फ़ मैं और राहुल रह गए. आंखों में असीम प्यार का सागर समेटे वह एकटक मुझे निहार रहा था. यकायक वह मेरे क़रीब चला आया. मेरा हाथ थामकर बोला, ‘‘आई एम सॉरी अनु, मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया. किंतु देखो न कुछ दिनों की पीड़ा ने तुम्हारे मन की इच्छा पूरी कर दी. तुम्हारी प्रेम विवाह की इच्छा थी न. अब तो तुम मुझसे प्रेम करती हो…’’ मेरे गाल आरक्त हो उठे.

 

 

सारा दिन घड़ी पर नज़र रही और जब छह बज गए, तब लगने लगा मानो शरीर की समस्त शक्ति चुक गई हो. कैसे जाता देख पाऊंगी मैं राहुल को अपने से दूर हमेशा के लिए. थकी-मांदी मैं घर पहुंच, तो घर में हंसी के ठहाके गूंज रहे थे.
जीजू, मम्मी-पापा के साथ लाॅन में बैठे चाय पी रहे थे और कमरे में दीदी राहुल के साथ गप्पों में मशगूल थीं. सभी मुझे देख मुस्कुराए और स्वयं में व्यस्त हो गए. इस उपेक्षा ने मेरे तनबदन में आग लगा दी.
मैं कहां हूं… कैसी हूं… इससे किसी को कोई सरोकार नहीं. क्षोभ और पीड़ा अब असहनीय थी. भावनाओं की एक प्रचंड लहर ने मुझे दीदी और राहुल के समक्ष ला खड़ा किया.
मैं बिफर पड़ी, ‘‘दीदी, मैं आपसे कितना प्यार करती हूं, अपनी हर बात आपसे शेयर करती हूं और आपने मुझे बताना भी आवश्यक नहीं समझा कि राहुल शिकागो जा रहा है.’’
‘‘किंतु अनु, राहुल जा रहा है, इससे तुझे क्या फर्क़ पड़ता है?”
‘‘ओह दीदी, आप जानती हो कि मुझे फ़र्क पड़ता है. व्यर्थ ही… और तुम आख़िर समझते क्या हो अपने आपको? बहुत बड़े डाक्टर हो, तो किसी के साथ कैसा भी व्यवहार करोगे. जब इच्छा हुई हंसी-मज़ाक किया और जब चाहा विमुखता दिखा दी.’’ मेरा स्वर भीग उठा.
“अनु, हम सभी को तेरी पीड़ा का अंदाज़ा था, मगर मेरी बहन, राहुल ने तुझे नज़रअंदाज़ किया, तभी तू अपने मन को, अपनी भावनाओं को समझ सकी. अपने प्यार को पहचान सकी.’’ स्नेह से मेरे गालों को थपथपाकर वह बाहर चली गईं.
कमरे में सिर्फ़ मैं और राहुल रह गए. आंखों में असीम प्यार का सागर समेटे वह एकटक मुझे निहार रहा था. यकायक वह मेरे क़रीब चला आया. मेरा हाथ थामकर बोला, ‘‘आई एम सॉरी अनु, मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया. किंतु देखो न कुछ दिनों की पीड़ा ने तुम्हारे मन की इच्छा पूरी कर दी. तुम्हारी प्रेम विवाह की इच्छा थी न. अब तो तुम मुझसे प्रेम करती हो…’’ मेरे गाल आरक्त हो उठे.
‘‘किंतु तुम शिकागो…’’

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‘‘सिर्फ़ एक माह के लिए. उस दिन तुमसे कहा था न भगाने के लिए लड़की का ख़ूबसूरत होना ज़रुरी है. आज तुम्हें भगा ले जाने का मन कर रहा है. मेरे प्रणय की परिधि में क़ैद होकर तुम बहुत ख़ूबसूरत जो हो गई हो.’’ राहुल की गर्म सांसों की आंच मेरी रुह को पिघला रही थी. मैंने उसके सीने में अपना सिर छिपा लिया.


रेनू मंडल

 

 

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